कानपुर : डकैती छोड़कर नेता बनीं पूर्व सांसद फूलन देवी की कथित संलिप्तता वाले 40 साल पुराने बेहमई काण्ड मामले में कानपुर की एक विशेष अदालत ने फैसला टाल दिया. केस डायरी उपलब्ध नहीं होने की वजह से सुनवाई नहीं की जा सकी. अगली सुनवाई 24 जनवरी को है. कुल 35 लोगों पर मामला दर्ज किया गया था. मामले में मात्र चार आरोपी बचे हैं. तीन अभियुक्त अब भी फरार हैं. 20 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
जिला शासकीय अधिवक्ता राजीव पोरवाल ने शुक्रवार को बताया, 'हमें काफी उम्मीद है कि बेहमई काण्ड मामले में अदालत शनिवार को अपना फैसला सुनायेगी.' उन्होंने बताया कि बचाव पक्ष के वकील गिरीश नारायण दुबे ने उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कुछ सुनिश्चित व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए विशेष अदालत से कहा है कि वह बेहमई काण्ड मामले में निर्णय देते वक्त इनका भी ध्यान रखे.
पोरवाल ने बताया कि अदालत अब इस मामले में जिंदा बचे चार अभियुक्तों भीखा, विश्वनाथ, श्यामबाबू और पोशा के बारे में फैसला सुनाएगी. उन्होंने बताया कि उनमें से पोशा को छोड़कर बाकी तीनों आरोपी जमानत पर हैं, जबकि तीन अन्य अभियुक्त अभी फरार हैं.
क्या है मामला
फूलन देवी और उनके साथियों पर कानपुर देहात जिले के बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को 20 लोगों की सामूहिक हत्या करने का आरोप है. माना जाता है कि फूलन ने लाला राम तथा श्रीराम नामक दो लोगों से अपने बलात्कार का बदला लेने के लिये उस वारदात को अंजाम दिया था.
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फूलन का आत्मसमर्पण
फूलन ने वर्ष 1983 में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. बेहमई काण्ड में फूलन समेत 35 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. उनमें से आठ आरोपी पुलिस के साथ अलग—अलग मुठभेड़ों में मारे गये थे. मुख्य अभियुक्त फूलन की 25 जुलाई 2001 को नई दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस वक्त मामले के कुल सात अभियुक्त जिंदा हैं. उनमें से तीन फरार हैं.
ग्वालियर और जबलपुर जेल में रही थीं फूलन
फूलन 11 साल तक मध्य प्रदेश की ग्वालियर और जबलपुर जेल में रहीं और वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा फूलन के खिलाफ मुकदमा वापस ले लिये जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया. हालांकि कानपुर की अदालत ने यादव के निर्णय को खारिज कर दिया था और उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बहाल रखा था. बहरहाल, फूलन कानूनी लड़ाई लड़ती रहीं.
सपा से सांसद चुनी गई थीं फूलन
वर्ष 1996 में फूलन समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से सांसद चुनी गयी थी. उसके बाद वह 1999 में भी सांसद बनी.
ऐसी है फूलन की कहानी
फूलन की शादी 11 साल की उम्र में हुई थी, लेकिन उनके पति और पति के परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था.
प्रताड़ना और कष्ट झेलने के बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ था.
फूलनदेवी ने अपने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बनीं.
फूलन देवी को 80 के दशक में उनकी पहचान बीहड़ की एक खूंखार डकैत के रूप में थी.
1996 में मिर्जापुर भदोही से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बनी, तो यहां की जनता ने उन्हें जीत का तोहफा दिया.
फूलन देवी मिर्जापुर भदोही संसदीय क्षेत्र से पहले ही प्रयास में समाजवादी पार्टी से विजयी हुई.
पुराने राजनेताओं का कहना है कि फूलन के पास भी मानवीय पक्ष रहा, जो कभी-कभी झलकता था.
सांसद बनने के बाद भी वह सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों के घरों तक पहुंची. इसीलिए आज भी फूलन को याद किया जाता है.
संसद से फिल्म तक फूलन का सफर
फूलन पहली बार जब सांसद बनी उसी के बाद उनके जीवन पर एक फिल्म बहुचर्चित बनी.
इस फिल्म का नाम बैंडिट क्वीन है.
जब फूलन की जीवनी पर आधारित फिल्म हर घर तक पहुंचा तो उनकी असल कहानी लोगों के बीच आ गई.
फूलन के साथ हुआ अत्याचार लोगों के सामने आ गया. इसकी वजह से जनता के बीच फूलन देवी को सहानुभूति मिलने लगी.
इसका नतीजा यह रहा कि वर्ष 1999 में दोबारा समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ी. उस समय लगभग एक लाख मतों से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त को दोबारा शिकस्त दी.
फूलन के कार्यों को देखते हुए फूलन के लोगों के बीच पहुंचने की वजह से जब भी चुनाव आता है मिर्जापुर के लोग फूलन को जरूर याद करते हैं.