ETV Bharat / bharat

आस्था या अंधविश्वास: महिलाओं को लिटाकर उनके ऊपर चलते हैं बैगा, जानिए क्यों - Fair organized at Angaramoti temple

छत्तीसगढ़ के धमतरी के पास स्थित अंगारमोती माता के मंदिर में शुक्रवार को मड़ई मेले का आयोजन किया गया. इस दिन संतान प्राप्ति की इच्छा लिए दूर-दूर से महिलाएं मंदिर में पहुंचीं. यहां सालों से संतान के लिए अनोखी परंपरा चली आ रही है, जानने के लिए आप भी पढ़िए पूरी खबर...

आस्था या अंधविश्वास
आस्था या अंधविश्वास
author img

By

Published : Nov 23, 2020, 11:06 PM IST

धमतरी : दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को होने वाले मड़ई मेले का अलग ही महत्व है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मां अंगारमोती के दरबार में पहुंचती हैं. महिलाएं पेट के बल लेट जाती हैं और उनके ऊपर से चलकर बैगा आगे बढ़ते हैं. हर साल दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को इसी मन्नत के साथ दूरदराज से बड़ी संख्या में महिलाएं गंगरेल आती हैं. 21वीं सदी में संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं के ऊपर से बैगा का निकलना हैरान करने वाला है. हालांकि, लोगों की आस्था अब भी इसमें है, यही वजह है कि दूर-दूर से महिलाएं यहां आती हैं.

शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित गंगरेल बांध के किनारे मां अंगारमोती विराजित हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. मान्यता के अनुसार दीपावली के बाद आने वाले पहले शुक्रवार को यहां मड़ई मेले का आयोजन होता है. शुक्रवार को दीपावली के बाद मड़ई देखने शहर सहित ग्रामीण इलाकों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. वनदेवी अंगारमोती का दर्शन कर उन्होंने अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की. मड़ई में करीब 52 गांवों से देवी-देवता शामिल हुए.

अंगारमोती माता मंदिर में मड़ई मेला

डूब प्रभावित गांवों की अधिष्ठात्री हैं अंगारमोती माता
जब गंगरेल बांध नहीं बना था, तो उस इलाके में बसे गांवों में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती अधिष्ठात्री देवी थीं. बांध बनने के बाद वह सभी गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों ने अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी. जहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. उनका मानना है कि माता से मांगी मन्नत जरूर पूरी होती है.

पढ़ें- पाकिस्तान में मिला 1,300 साल पुराना भगवान विष्णु का मंदिर

इस मेले का लोगों को होता है इंतजार
इलाके में पूरे साल में मड़ई का दिन सबसे खास होता है. इस दिन यहां सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. आदिवासी परंपराओं के साथ पूजा और रीतियां निभाई जाती हैं. इस दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने पहुंचती हैं. महिलाएं मंदिर के सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, नींबू लिए कतार में खड़ी होती हैं.

जमीन पर लेटी महिलाओं के ऊपर से चलकर आगे बढ़ते हैं बैगा
यहां के लोगों का कहना है कि यहां वे तमाम बैगा भी आते हैं, जिन पर देवी सवार होती हैं और झूमते-झूमते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं. चारों तरफ ढोल-नगाड़ों की गूंज रहती है. बैगाओं को आता देख कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती हैं और सारे बैगा उनके ऊपर से गुजरते हैं. मान्यता है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है, उसे संतान के रूप में माता अंगारमोती का आशीर्वाद मिलता है. बहरहाल, मौजूदा दौर में जहां संतान के लिए लोग आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक का सहारा लेते हैं, तो वहीं ऐसे समय में यह मान्यता हैरान करने वाली है.

धमतरी : दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को होने वाले मड़ई मेले का अलग ही महत्व है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मां अंगारमोती के दरबार में पहुंचती हैं. महिलाएं पेट के बल लेट जाती हैं और उनके ऊपर से चलकर बैगा आगे बढ़ते हैं. हर साल दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को इसी मन्नत के साथ दूरदराज से बड़ी संख्या में महिलाएं गंगरेल आती हैं. 21वीं सदी में संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं के ऊपर से बैगा का निकलना हैरान करने वाला है. हालांकि, लोगों की आस्था अब भी इसमें है, यही वजह है कि दूर-दूर से महिलाएं यहां आती हैं.

शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित गंगरेल बांध के किनारे मां अंगारमोती विराजित हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. मान्यता के अनुसार दीपावली के बाद आने वाले पहले शुक्रवार को यहां मड़ई मेले का आयोजन होता है. शुक्रवार को दीपावली के बाद मड़ई देखने शहर सहित ग्रामीण इलाकों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. वनदेवी अंगारमोती का दर्शन कर उन्होंने अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की. मड़ई में करीब 52 गांवों से देवी-देवता शामिल हुए.

अंगारमोती माता मंदिर में मड़ई मेला

डूब प्रभावित गांवों की अधिष्ठात्री हैं अंगारमोती माता
जब गंगरेल बांध नहीं बना था, तो उस इलाके में बसे गांवों में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती अधिष्ठात्री देवी थीं. बांध बनने के बाद वह सभी गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों ने अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी. जहां सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं. उनका मानना है कि माता से मांगी मन्नत जरूर पूरी होती है.

पढ़ें- पाकिस्तान में मिला 1,300 साल पुराना भगवान विष्णु का मंदिर

इस मेले का लोगों को होता है इंतजार
इलाके में पूरे साल में मड़ई का दिन सबसे खास होता है. इस दिन यहां सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. आदिवासी परंपराओं के साथ पूजा और रीतियां निभाई जाती हैं. इस दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने पहुंचती हैं. महिलाएं मंदिर के सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, नींबू लिए कतार में खड़ी होती हैं.

जमीन पर लेटी महिलाओं के ऊपर से चलकर आगे बढ़ते हैं बैगा
यहां के लोगों का कहना है कि यहां वे तमाम बैगा भी आते हैं, जिन पर देवी सवार होती हैं और झूमते-झूमते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं. चारों तरफ ढोल-नगाड़ों की गूंज रहती है. बैगाओं को आता देख कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती हैं और सारे बैगा उनके ऊपर से गुजरते हैं. मान्यता है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है, उसे संतान के रूप में माता अंगारमोती का आशीर्वाद मिलता है. बहरहाल, मौजूदा दौर में जहां संतान के लिए लोग आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक का सहारा लेते हैं, तो वहीं ऐसे समय में यह मान्यता हैरान करने वाली है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.