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महामारी के बीच लोक कलाओं से बदल रही ट्रांसजेंडर की जिंदगी - लोक कलाकार

शंकर जो एक लोक कलाकार और प्रशिक्षक हैं, जिन्होंने जिले के कई लोगों को प्रशिक्षित किया है. वर्तमान में ट्रांसजेंडर को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं. ट्रांसजेंडर्स के साथ अपने काम के अनुभवों के बारे में शंकर ने कहा कि यह एक अलग अनुभव था. सभी ने 10 दिनों में अच्छी ट्रेनिंग ली है. वे अपने कौशल के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं. ग्रामीण कलाएं समाज को उनके देखने के तरीके को बदल सकती हैं.

लोक कलाएं सीख रहे हैं ट्रांसजेंडर
लोक कलाएं सीख रहे हैं ट्रांसजेंडर
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Published : Aug 31, 2020, 5:16 PM IST

थुथुकुडी (तमिलनाडु): कोरोना वायरस महामारी ने समाज के कमजोर और हाशिए वाले वर्गों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी है. तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने अपनी रोजी-रोटी के लिए लोक कला सीखना शुरू कर दिया है.

कोरोना संकट के दौरान किए गए लॉकडाउन में ट्रांसजेंडरों ने अपनी आजीविका खो दी थी. अब ड्रम, ओयिलट्टम, काराकट्टम और घोड़ा नृत्य सीखने के बाद उन्हें आशा की किरण दिखाई दे रही है.

लोक कलाएं सीख रहे हैं ट्रांसजेंडर

कोरोना संकट की वजह से लगे कर्फ्यू ने ट्रांसजेंडरों को कलाकारों में बदल दिया है. आजीविका कमाने के लिए ट्रांसजेंडर लॉकडाउन में नए कौशल सीख रहे हैं. 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने पहली बार लोक कलाओं में प्रशिक्षण शुरू किया.

कोरोना वायरस के कारण लगे कर्फ्यू ने तीसरे लिंग को गांव के कलाकारों में बदल दिया है. किसी भी आय से वंचित ट्रांसजेंडर्स ने नए कौशल सीखने के लिए लॉकडाउन का उपयोग किया है. 15 ट्रांसजेंडरों ने पहली बार लोक कलाओं जैसे ड्रम नृत्य, ओयिलट्टम, करगट्टम और पोइक्कल घोड़ा नृत्य में प्रशिक्षण शुरू किया.

ईटीवी भारत ने ट्रांसपर्सन विजी से बात की, जिन्होंने इस पहल के लिए दूसरों को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि हमें ट्रांसजेंडर्स के लिए समाज की धारणाओं को बदलने की जरूरत है. जब हम खुद को ग्रामीण कलाकारों के रूप में पेश करेंगे तो हम ये मानते हैं कि हमारी पहचान हमारे कौशल के कारण बनेगी.

शंकर जो एक लोक कलाकार और प्रशिक्षक हैं, जिन्होंने जिले के कई लोगों को प्रशिक्षित किया है, वर्तमान में ट्रांसजेंडरों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं. ट्रांसजेंडर्स के साथ अपने काम के अनुभवों के बारे में बोलते हुए शंकर ने कहा कि यह एक अलग अनुभव था. सभी ने 10 दिनों में अच्छी ट्रेनिंग ली है. वे अपने कौशल के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं. ग्रामीण कलाएं समाज को उनके देखने के तरीके को बदल सकती हैं.

मैं उन्हें ओइलट्टम, कट्टिगलाट्टम, कुदिरियट्टम सिखाता हूं. समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में गलत धारणा है कि वे वेश्यावृत्ति में शामिल होते हैं और दुकानों से पैसा इकट्ठा करते हैं. मैं उन्हें पेशेवर कौशल सिखाना चाहता था. सभी को ट्रांसजेंडर को अपने भाई या बहन के रूप में मानना ​​चाहिए. एकता में विविधता पर व्याख्यान देने का कोई फायदा नहीं है. हर चीज में एकता दिखानी चाहिए.

शंकर ने आगे कहा कि मुझे विश्वास है कि इससे समाज में बदलाव आएगा. ट्रांसजेंडर कई व्यवसायों में सफल रहे हैं, तो कला के क्षेत्र में क्यों नहीं? मैंने ट्रांसजेंडर विज से संपर्क किया, जो एक वकील हैं. हमने सुझाव दिया कि हम सभी ट्रांसजेंडरों को एक समूह में लाएं और इसे साकी आर्ट ग्रुप नाम दें.

एक ट्रांसजेंडर आरती ने कहा कि हम पराएट्टम और ओयिलट्टम जैसे कला के कई रूपों को सीख रहे हैं. शंकर सर हमारे गुरु हैं. हमारी सोच बदल रही है. हमारे पहले प्रदर्शन पर भी हमें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली. इसके अलावा हम सरकार से तिरुनेलवेली में साकी आर्ट ग्रुप को सभी जागरुकता उन्मुख कार्यक्रम सौंपने का अनुरोध कर रहे हैं.

'साकी' आर्ट ग्रुप का गठन अंबू ट्रस्ट द्वारा किया गया था, जिसका उद्घाटन 2004 में किया गया था. इसके माध्यम से 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने पहले चरण में प्रशिक्षण पूरा किया है.

ट्रांसजेंडर्स ने राज्य प्रायोजित समारोहों में निरंतर भागीदारी और आजीविका के लिए मार्ग प्रशस्त करने के अवसरों के लिए अपील की है. ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना पहली बार 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने की थी. हालांकि सरकारों ने उस कल्याण बोर्ड को ज्यादा महत्व नहीं दिया इसलिए, ट्रांसजेंडर्स की प्रगति नहीं हो पाई.


यह भी पढ़ें - आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज में टियर 2-3 शहरों के युवा भी शामिल

थुथुकुडी (तमिलनाडु): कोरोना वायरस महामारी ने समाज के कमजोर और हाशिए वाले वर्गों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी है. तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने अपनी रोजी-रोटी के लिए लोक कला सीखना शुरू कर दिया है.

कोरोना संकट के दौरान किए गए लॉकडाउन में ट्रांसजेंडरों ने अपनी आजीविका खो दी थी. अब ड्रम, ओयिलट्टम, काराकट्टम और घोड़ा नृत्य सीखने के बाद उन्हें आशा की किरण दिखाई दे रही है.

लोक कलाएं सीख रहे हैं ट्रांसजेंडर

कोरोना संकट की वजह से लगे कर्फ्यू ने ट्रांसजेंडरों को कलाकारों में बदल दिया है. आजीविका कमाने के लिए ट्रांसजेंडर लॉकडाउन में नए कौशल सीख रहे हैं. 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने पहली बार लोक कलाओं में प्रशिक्षण शुरू किया.

कोरोना वायरस के कारण लगे कर्फ्यू ने तीसरे लिंग को गांव के कलाकारों में बदल दिया है. किसी भी आय से वंचित ट्रांसजेंडर्स ने नए कौशल सीखने के लिए लॉकडाउन का उपयोग किया है. 15 ट्रांसजेंडरों ने पहली बार लोक कलाओं जैसे ड्रम नृत्य, ओयिलट्टम, करगट्टम और पोइक्कल घोड़ा नृत्य में प्रशिक्षण शुरू किया.

ईटीवी भारत ने ट्रांसपर्सन विजी से बात की, जिन्होंने इस पहल के लिए दूसरों को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि हमें ट्रांसजेंडर्स के लिए समाज की धारणाओं को बदलने की जरूरत है. जब हम खुद को ग्रामीण कलाकारों के रूप में पेश करेंगे तो हम ये मानते हैं कि हमारी पहचान हमारे कौशल के कारण बनेगी.

शंकर जो एक लोक कलाकार और प्रशिक्षक हैं, जिन्होंने जिले के कई लोगों को प्रशिक्षित किया है, वर्तमान में ट्रांसजेंडरों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं. ट्रांसजेंडर्स के साथ अपने काम के अनुभवों के बारे में बोलते हुए शंकर ने कहा कि यह एक अलग अनुभव था. सभी ने 10 दिनों में अच्छी ट्रेनिंग ली है. वे अपने कौशल के माध्यम से समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं. ग्रामीण कलाएं समाज को उनके देखने के तरीके को बदल सकती हैं.

मैं उन्हें ओइलट्टम, कट्टिगलाट्टम, कुदिरियट्टम सिखाता हूं. समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में गलत धारणा है कि वे वेश्यावृत्ति में शामिल होते हैं और दुकानों से पैसा इकट्ठा करते हैं. मैं उन्हें पेशेवर कौशल सिखाना चाहता था. सभी को ट्रांसजेंडर को अपने भाई या बहन के रूप में मानना ​​चाहिए. एकता में विविधता पर व्याख्यान देने का कोई फायदा नहीं है. हर चीज में एकता दिखानी चाहिए.

शंकर ने आगे कहा कि मुझे विश्वास है कि इससे समाज में बदलाव आएगा. ट्रांसजेंडर कई व्यवसायों में सफल रहे हैं, तो कला के क्षेत्र में क्यों नहीं? मैंने ट्रांसजेंडर विज से संपर्क किया, जो एक वकील हैं. हमने सुझाव दिया कि हम सभी ट्रांसजेंडरों को एक समूह में लाएं और इसे साकी आर्ट ग्रुप नाम दें.

एक ट्रांसजेंडर आरती ने कहा कि हम पराएट्टम और ओयिलट्टम जैसे कला के कई रूपों को सीख रहे हैं. शंकर सर हमारे गुरु हैं. हमारी सोच बदल रही है. हमारे पहले प्रदर्शन पर भी हमें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली. इसके अलावा हम सरकार से तिरुनेलवेली में साकी आर्ट ग्रुप को सभी जागरुकता उन्मुख कार्यक्रम सौंपने का अनुरोध कर रहे हैं.

'साकी' आर्ट ग्रुप का गठन अंबू ट्रस्ट द्वारा किया गया था, जिसका उद्घाटन 2004 में किया गया था. इसके माध्यम से 15 ट्रांसजेंडर लोगों ने पहले चरण में प्रशिक्षण पूरा किया है.

ट्रांसजेंडर्स ने राज्य प्रायोजित समारोहों में निरंतर भागीदारी और आजीविका के लिए मार्ग प्रशस्त करने के अवसरों के लिए अपील की है. ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना पहली बार 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने की थी. हालांकि सरकारों ने उस कल्याण बोर्ड को ज्यादा महत्व नहीं दिया इसलिए, ट्रांसजेंडर्स की प्रगति नहीं हो पाई.


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