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1991 से 2019 : जानें क्या है सबरीमाला मंदिर का पूरा मामला - सबरीमाला विवाद

सबरीमाला मंदिर को लेकर 1991 से चले आ रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने वाला है. दरअसल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी गई थी. करीब 30 वर्षों से चले आ रहे इस मामले पर डालें एक नजर.

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Published : Nov 13, 2019, 9:35 PM IST

Updated : Nov 14, 2019, 1:23 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई थी. लेकिन कोर्ट के इस फैसले को चुनौती भी दी गई. पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने केस को सात जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है. फैसला 3:2 के बहुमत से किया गया है.

गौरतलब है कि यह विवाद पिछले करीब 30 वर्षों से चला आ रहा है. दरअसल, मतभेद इस बात पर है कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाए या नहीं. मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था.

एक नजर सबरीमाला विवाद के पूरे घटनाक्रम पर :

1991 : केरल हाई कोर्ट ने एक विशेष आयु-वर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया.

इस फैसले को लेकर अदालत का मानना था कि प्रतिबंध सिर्फ एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं के लिए है, इसलिए यह संविधान का उल्लंघन नहीं करता.

इस निर्णय में ये भी तर्क दिया गया कि प्रतिबंध मंदिर के रीति-रिवाजों के अनुसार लगाया गया है, जिसका मंदिर की बेहतरी के लिए पालन किया जाना चाहिए.

2006 : कन्नड़ अभिनेत्री ने 1987 में मंदिर में प्रवेश करने का दावा किया. अभिनेत्री का दावा था कि उसने 28 साल की उम्र में पुजारी के साथ मंदिर में प्रवेश किया था.

सबरीमाला मामले में ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2008 : केरल की एलडीएफ सरकार ने महिला पक्ष के वकीलों द्वारा प्रतिबंध पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका का समर्थन कर, हलफनामा दायर किया.

2016 : महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को SC में चुनौती दी गई. इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. इसमें दावा किया गया कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध समानता, गैर-भेदभाव और संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.

अप्रैल, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं पर प्रतिबंध से लैंगिक न्याय खतरे के दायरे में आता है. साथ ही अदालत ने कहा कि कोई भी परम्परा इस तरह के प्रतिबंध को सही नहीं ठहरा सकती.

नवम्बर, 2016 : सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को LDF सरकार का समर्थन. केरल की एलडीएफ सरकार ने सबरीमामला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करते हुए, हलफनामा दाखिल किया.

2017 : मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई की. इसके बाद मंदिर की देखरेख करने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने कहा कि वह मंदिर के रीति-रिवाजों और परम्पराओं को नहीं तोड़ेगा.

2018 : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुआई वाली पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान पीठ ने मंदिर प्रबंधन से महिलाओं के विशेष वर्ग के प्रवेश को प्रतिबंधित करने पर सवाल उठाया.

सितम्बर, 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत का फैसला सुनाया. पीठ ने सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिए.

नवम्बर, 2018 : शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के लिए सहमति जतायी.

नवम्बर, 2019 - शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई पर फैसला सुनाया. अदालत ने 3:2 से बहुमत के फैसले में कहा कि ये फैसला मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को भी प्रभावित कर सकता है. ऐसी प्रथा सिर्फ एक धर्म तक सीमित नहीं है, लिहाजा, इस पर व्यापक बहस और चर्चा की जरूरत है. इसलिए केस की सुनवाई सात जजों की संविधान पीठ करेगी.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई थी. लेकिन कोर्ट के इस फैसले को चुनौती भी दी गई. पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने केस को सात जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है. फैसला 3:2 के बहुमत से किया गया है.

गौरतलब है कि यह विवाद पिछले करीब 30 वर्षों से चला आ रहा है. दरअसल, मतभेद इस बात पर है कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी जाए या नहीं. मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था.

एक नजर सबरीमाला विवाद के पूरे घटनाक्रम पर :

1991 : केरल हाई कोर्ट ने एक विशेष आयु-वर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया.

इस फैसले को लेकर अदालत का मानना था कि प्रतिबंध सिर्फ एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं के लिए है, इसलिए यह संविधान का उल्लंघन नहीं करता.

इस निर्णय में ये भी तर्क दिया गया कि प्रतिबंध मंदिर के रीति-रिवाजों के अनुसार लगाया गया है, जिसका मंदिर की बेहतरी के लिए पालन किया जाना चाहिए.

2006 : कन्नड़ अभिनेत्री ने 1987 में मंदिर में प्रवेश करने का दावा किया. अभिनेत्री का दावा था कि उसने 28 साल की उम्र में पुजारी के साथ मंदिर में प्रवेश किया था.

सबरीमाला मामले में ईटीवी भारत की रिपोर्ट

2008 : केरल की एलडीएफ सरकार ने महिला पक्ष के वकीलों द्वारा प्रतिबंध पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका का समर्थन कर, हलफनामा दायर किया.

2016 : महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका को SC में चुनौती दी गई. इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. इसमें दावा किया गया कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध समानता, गैर-भेदभाव और संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.

अप्रैल, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं पर प्रतिबंध से लैंगिक न्याय खतरे के दायरे में आता है. साथ ही अदालत ने कहा कि कोई भी परम्परा इस तरह के प्रतिबंध को सही नहीं ठहरा सकती.

नवम्बर, 2016 : सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को LDF सरकार का समर्थन. केरल की एलडीएफ सरकार ने सबरीमामला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करते हुए, हलफनामा दाखिल किया.

2017 : मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई की. इसके बाद मंदिर की देखरेख करने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने कहा कि वह मंदिर के रीति-रिवाजों और परम्पराओं को नहीं तोड़ेगा.

2018 : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुआई वाली पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान पीठ ने मंदिर प्रबंधन से महिलाओं के विशेष वर्ग के प्रवेश को प्रतिबंधित करने पर सवाल उठाया.

सितम्बर, 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत का फैसला सुनाया. पीठ ने सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिए.

नवम्बर, 2018 : शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के लिए सहमति जतायी.

नवम्बर, 2019 - शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई पर फैसला सुनाया. अदालत ने 3:2 से बहुमत के फैसले में कहा कि ये फैसला मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को भी प्रभावित कर सकता है. ऐसी प्रथा सिर्फ एक धर्म तक सीमित नहीं है, लिहाजा, इस पर व्यापक बहस और चर्चा की जरूरत है. इसलिए केस की सुनवाई सात जजों की संविधान पीठ करेगी.

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Last Updated : Nov 14, 2019, 1:23 PM IST
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