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तिब्बती प्रधानमंत्री बोले- तिब्बत के मुद्दे को हल करने से ही बनेगी बात

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. 15 जून को चीन के साथ हुई हिंसक झड़प में सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसको लेकर प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने कहा कि जब तक तिब्बत के मुद्दे को हल नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

Expansionist policy of china
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Published : Jun 20, 2020, 6:12 AM IST

Updated : Jun 20, 2020, 6:41 AM IST

धर्मशाला/हैदराबाद: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. इस पर तिब्बत के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय का कहना है कि चीन को भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और इस संकट के समय में पूरी दुनिया को भारत के साथ खड़े होना चाहिए. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में तिब्बती प्रधानमंत्री और निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति ने कहा कि तिब्बत मुख्य मुद्दा है, जिसे भारत की हिमालयी सीमाओं पर शांति बनाए रखने के लिए समाधान की आवश्यकता है.

तिब्बती प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन देश के आंतरिक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यह सब कर रहा है. चीन पर आंतरिक दबाव है, क्योंकि पार्टी गुटों के भीतर कुछ मतभेद हैं. देश में बेरोजागारी बढ़ गई है, अर्थव्यवस्था पर भी खासा असर पड़ा है. बाहर से कोविड-19 को लेकर देशों ने उसपर जांच के लिए दबाव बनाया है. इसलिए वह सीमा पर विवाद खड़े कर रहा है.

तिब्बती प्रधानमंत्री की ईटीवी भारत से बातचीत

चीन की विस्तारवादी नीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि चीन की अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घकालिक रणनीति है. अल्पावधि रणनीति का इस्तेमाल आंतरिक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए किया गया है. 1950 के दशक में तिब्बत पर कब्जा करना उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा था. चीन के लिए तिब्बत हथेली है. अब वह पांचों उंगलियों पर कब्जा जमाने की कोशिश करेंगे. इनमें लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं. डोकलाम में जो हुआ और नेपाल के उपर दबाव बनाना यह उनकी दीर्घकालिक रणनीति का ही हिस्सा है. जब तक तिब्बत के मुद्दे को हल नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

तिब्बत में चीन द्वारा मानाधिकारों के उल्लंघन को लेकर उन्होंने कहा कि वहां पर हालात बेहद गंभीर हैं. कोई भी विरोध नहीं कर सकता. यहां तक की दलाई लामा की तस्वीर तक रखने पर लोगों को जेल में डाल दिया जाता है. 154 तिब्बतियों ने आत्मदाह तक कर लिया है.

पर्यावरण की दृष्टि से तिब्बत एशिया का जल मीनार है. एशिया की 10 प्रमुख नदियां तिब्बत से निकलती हैं. चीन पूरे दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और एशिया के सभी जल संसाधनों को नियंत्रित करता है. चीन तिब्बत के संसाधनों और वहां के लोगों का शोषण कर रहा है. वह तिब्बती लोगों की कीमत पर खुद को समृद्ध बना रहा है. तिब्बत में तिब्बतियों के साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता है. उनके मानावाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है. उनके सांस्कृतिक अधिकारों उनसे छीन लिया गया है. उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.

वहां ढांचागत विकास हो रहा है, जिससे चीनी लोगों को वहां लाया जा सके. वहां वायुसेना के कई बेस बनाए गए हैं, जो भारतीय सीमा के बेहद करीब हैं. इनका इस्तेमाल लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के पास सैन्य गतिविधि को बढ़ाने के लिए किया जता है. वह इसे काठमांडू और उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती लुंबिनी तक लाना चाहते हैं. इन सभी बुनियादी ढांचे के पीछे सैन्य रणनीति है और इसका समाधान तभी हो सकता है जब तिब्बत के मुद्दे का समाधान होगा.

पढ़ें-तिब्बती प्रधानमंत्री बोले- चीन को भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए

धर्मशाला/हैदराबाद: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. इस पर तिब्बत के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय का कहना है कि चीन को भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और इस संकट के समय में पूरी दुनिया को भारत के साथ खड़े होना चाहिए. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में तिब्बती प्रधानमंत्री और निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति ने कहा कि तिब्बत मुख्य मुद्दा है, जिसे भारत की हिमालयी सीमाओं पर शांति बनाए रखने के लिए समाधान की आवश्यकता है.

तिब्बती प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन देश के आंतरिक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यह सब कर रहा है. चीन पर आंतरिक दबाव है, क्योंकि पार्टी गुटों के भीतर कुछ मतभेद हैं. देश में बेरोजागारी बढ़ गई है, अर्थव्यवस्था पर भी खासा असर पड़ा है. बाहर से कोविड-19 को लेकर देशों ने उसपर जांच के लिए दबाव बनाया है. इसलिए वह सीमा पर विवाद खड़े कर रहा है.

तिब्बती प्रधानमंत्री की ईटीवी भारत से बातचीत

चीन की विस्तारवादी नीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि चीन की अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घकालिक रणनीति है. अल्पावधि रणनीति का इस्तेमाल आंतरिक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए किया गया है. 1950 के दशक में तिब्बत पर कब्जा करना उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा था. चीन के लिए तिब्बत हथेली है. अब वह पांचों उंगलियों पर कब्जा जमाने की कोशिश करेंगे. इनमें लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं. डोकलाम में जो हुआ और नेपाल के उपर दबाव बनाना यह उनकी दीर्घकालिक रणनीति का ही हिस्सा है. जब तक तिब्बत के मुद्दे को हल नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

तिब्बत में चीन द्वारा मानाधिकारों के उल्लंघन को लेकर उन्होंने कहा कि वहां पर हालात बेहद गंभीर हैं. कोई भी विरोध नहीं कर सकता. यहां तक की दलाई लामा की तस्वीर तक रखने पर लोगों को जेल में डाल दिया जाता है. 154 तिब्बतियों ने आत्मदाह तक कर लिया है.

पर्यावरण की दृष्टि से तिब्बत एशिया का जल मीनार है. एशिया की 10 प्रमुख नदियां तिब्बत से निकलती हैं. चीन पूरे दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और एशिया के सभी जल संसाधनों को नियंत्रित करता है. चीन तिब्बत के संसाधनों और वहां के लोगों का शोषण कर रहा है. वह तिब्बती लोगों की कीमत पर खुद को समृद्ध बना रहा है. तिब्बत में तिब्बतियों के साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिक की तरह व्यवहार किया जाता है. उनके मानावाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है. उनके सांस्कृतिक अधिकारों उनसे छीन लिया गया है. उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.

वहां ढांचागत विकास हो रहा है, जिससे चीनी लोगों को वहां लाया जा सके. वहां वायुसेना के कई बेस बनाए गए हैं, जो भारतीय सीमा के बेहद करीब हैं. इनका इस्तेमाल लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के पास सैन्य गतिविधि को बढ़ाने के लिए किया जता है. वह इसे काठमांडू और उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती लुंबिनी तक लाना चाहते हैं. इन सभी बुनियादी ढांचे के पीछे सैन्य रणनीति है और इसका समाधान तभी हो सकता है जब तिब्बत के मुद्दे का समाधान होगा.

पढ़ें-तिब्बती प्रधानमंत्री बोले- चीन को भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए

Last Updated : Jun 20, 2020, 6:41 AM IST
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