हिसार (हरियाणा) : बढ़ती जनसंख्या की वजह से इंसानी बस्तियां लगातार फैलती जा रही हैं. लोग हर संभव क्षेत्र में आशियाना बना रहे हैं और इसका सीधा असर वन्य क्षेत्रों पर पड़ता है. हरियाणा राजस्थान बॉर्डर से लगते जिलों में वन्यजीव लगातार घटते जा रहे हैं.
हाल ही में जीव रक्षा के लिए काम करने वाली एक एनजीओ की तरफ लगाई गई आरटीआई में चौकाने वाला खुलासा हुआ है. पिछले पांच सालों में हिसार, फतेहाबाद, सिरसा और भिवानी जिले में ढाई हजार से ज्यादा वन्यजीवों की मौत हो चुकी है.
क्यों इतनी बड़ी संख्या में वन्य जीवों की हुई मौत?
ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने वन्य जीवों की घटती तादाद को लेकर पड़ताल की, तो हमारी टीम को हैरान करने वाले आंकड़े मिले. पिछले पांच साल में (2016 से 2020 तक) हिसार मंडल में 2,682 वन्य जीवों की मौत हो चुकी थी और इन वन्य जीवों में हिरण, चिंकारा और राष्ट्रीय पक्षी मोर भी शामिल हैं.
- रिकॉर्ड के मुताबिक चारों जिलों में कुल 411 काले हिरणों में से 361 की मौत आवारा कुत्तों के काटने से हुई है. चार काले हिरणों का शिकार किया गया है, जबकि 23 बीमारी से और 23 सड़क दुर्घटना या कांटेदार तारों की वजह से मरे हैं.
- 68 राष्ट्रीय पक्षी मोर में से 25 मोर आवारा कुत्तों के काटने से मरे हैं. 12 मोर का शिकार हुआ है या जहरीले दाने खाने से मरे हैं. 23 मोर बीमारी से और 08 अन्य कारणों से मरे हैं.
- दुर्लभ प्रजाति के 35 चिंकारा हिरणों में से 29 आवारा कुत्तों के काटने से मरे हैं. दो हिरणों का शिकार हुआ है, जबकि चार बीमारी से मरे हैं.
- कुल 74 बंदरों में से 35 बंदर आवारा कुत्तों के काटने से मरे हैं. 3 बंदरों का शिकार हुआ है. तीन बीमारी से और 33 आपसी लड़ाई या करंट जैसे अन्य कारणों से मरे हैं.
- 2005 में से 1,641 नीलगायों को कुत्तों ने काटा, 46 का शिकार हुआ, 31 बीमारी से मरे और 287 सड़क दुर्घटना या कांटेदार तारों से मरे हैं.
कांटेदार तारों और चौकीदारों के छर्रे से घायल होते हैं जीव
जीवों की रक्षा को लेकर काम करने वाली संस्था के प्रदेशाध्यक्ष विनोद कड़वासरा ने बताया कि वन्य जीवों की मौत की मुख्य वजह कुत्ते नहीं है, पूरे इलाके में शिकारी बंदूकों के साथ फसल की रखवाली की आड़ में खेतों में घूमते हैं, जो जानवरों को मसाला/रांग/लोहे के दाने मारते हैं, जिससे जीव घायल हो जाता है. वहीं वाइल्ड लाइफ विभाग के पास कोई विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है, जिस वजह से जीवों की बचा पाना भी मुश्किल है.
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विभाग में है स्टॉफ की कमी
वहीं वाइल्डलाइफ इंस्पेक्टर रामेश्वर दास ने भी विभाग में बहुत कम कर्मचारी होने की दुहाई देते हुए कहा कि उनका विभाग ग्राम सभाओं के माध्यम से लोगों में प्रचार करता है, जिससे जीवों को बचाया जा सके. वहीं आवारा कुत्तों को भगाने की कोशिश भी की जाती है. उन्होंने कहा कि वन्य जीवों की रक्षा के लिए हमारा पूरा स्टॉफ जितना हो सकता है गश्त करता है.
तो राम भरोसे ही रहेंगे वन्य जीव?
ये हैरान करने वाली स्थिति है, वाइल्डलाइफ विभाग के मुखिया खुद को वन्य जीवों की रक्षा के लिए कमजोर और असहाय साबित कर चुके हैं. ऐसे में वन्य क्षेत्र और वन्य जीवों की रक्षा तो राम भरोसे ही है.
पिछले पांच सालों में इतनी बड़ी संख्या में जानवरों का मरना बेहद बुरे संकेत है, हैरानी की बात है कि सरकार की तरफ से भी वन्य जीवों की रक्षा के लिए कोई विशेष प्रबंध नहीं है. उम्मीद है तो बस जीव रक्षा के लिए काम करने वाली संस्थानों पर जो लोगों तक सच्चाई लाते हैं, और आगे आकर इन जीवों के लिए इंसाफ की आवाज उठाते हैं.