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ओडिशा: एकांतवास में उपचार ले रहे हैं भगवान जगन्नाथ - rituals of jagannath rath yatra

सदियों से भगवान जगन्नाथ को 14 दिन के लिए एकांतवास किए जाने की परंपरा रही है. मान्यता है कि पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को बुखार आता है, जिसके बाद वह उपचार के लिए 14 दिन तक एकांतवास में रहते हैं. इस दौरान भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है. जानें कैसे होता है भगवान का उपचार...

secret ritual of lord Jagannath
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Published : Jun 11, 2020, 7:22 PM IST

Updated : Jun 16, 2020, 3:03 PM IST

भुवनेश्वर : हिंदू संस्कृति अपनी मान्यताओं और परंपराओं के लिए जानी जाती है. इसमें भगवान को 14 दिन के लिए एकांतवास किए जाने की परंपरा भी शामिल है. ऐसी मान्यता है कि ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में 108 घड़ों के सुगंधित जल से पवित्र स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों के सामने हाथी के भेष में आते हैं, जिसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है.

बुखार के कारण भगवान को पूरे शरीर में दर्द होता है. इसके बाद भगवान को सीधे जगमोहन नाम के एकांत कमरे (अनासरा गृह) में ले जाया जाता है. वहां दैत सेवक उनकी सेवा करते हैं और 14 दिनों तक भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अनासरा गृह जहां दैत सेवक भगवान का गुप्त उपचार करते हैं, वह कालाहाट द्वार और सबसे भीतरी लकड़ी की दीवार के बीच स्थित है. पाती महापात्रा (एक सेवक) और दैत सेवक शाही चिकित्सक की सलाह के बाद मंदिर परिसर के एकांत कमरे में छिपे आसन बल्लभ पिंडी भगवान की सेवा करते हैं.

कैसे होता है भगवान का उपचार
एक सेवक ने बताया कि अनासरा गृह में भगवान के 14 दिन के उपचार के दौरान उनके लिए 10 जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाया जाता है और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दौरान भगवान को केवल फल, औषधीय जड़ी-बूटी और काढ़ा चढ़ाया जाता है और सभी अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि उपचार अवधि के दौरान भगवान को महाप्रसाद (पके चावल) की जगह सूखे प्रसाद का भोग लगाया जाता है. भगवान के शरीर से चंदन की लकड़ी और राल की परत निकाल ली जाती है और बुखार के कारण हो रहे दर्द का उपचार करने के लिए फुलूरी के तेल से शरीर की मालिश की जाती है.

उपचार पूरा होने तक चंदन की लकड़ी, चॉक, औषधियों, माड़ी और कढ़ाई अस्तर से कई अनुष्ठान किए जाते हैं. पखवाड़े के 14 वें दिन अमावस्या से एक दिन पहले भगवान अपने भक्तों के सामने प्रकट होने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसे नेत्रोत्सव कहा जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के एकांत काल में अगर आप ब्रह्मगिरि में भगवान के दर्शन करते हैं तो बहुत आशीर्वाद मिलता है. ऐसा विश्वास और आस्था है कि अलारनाथ और श्री जगन्नाथ मंदिर के चार पीठासीन देवताओं के दर्शन करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी.

क्या है 'रत्न सिंहासन'
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ आषाढ़ माह की अमावस्या पर अगले पखवाड़े के लिए एकांत में भेज दिया जाता है. इस अवधि के दौरान चतुर्दशी मूर्ति (यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बालभद्र, बहन देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन) को देखने की मनाही होती है. इस दौरान सिंहासन पर भगवान की फोटो रखकर उनके पृथ्वी पर दस अवतारों की पूजा की जाती है, जिसे 'रत्न सिंहासन' के नाम से जाना जाता है.

पढ़ें-जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव पर छाए कोरोना संकट के बादल

भुवनेश्वर : हिंदू संस्कृति अपनी मान्यताओं और परंपराओं के लिए जानी जाती है. इसमें भगवान को 14 दिन के लिए एकांतवास किए जाने की परंपरा भी शामिल है. ऐसी मान्यता है कि ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में 108 घड़ों के सुगंधित जल से पवित्र स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों के सामने हाथी के भेष में आते हैं, जिसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है.

बुखार के कारण भगवान को पूरे शरीर में दर्द होता है. इसके बाद भगवान को सीधे जगमोहन नाम के एकांत कमरे (अनासरा गृह) में ले जाया जाता है. वहां दैत सेवक उनकी सेवा करते हैं और 14 दिनों तक भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

अनासरा गृह जहां दैत सेवक भगवान का गुप्त उपचार करते हैं, वह कालाहाट द्वार और सबसे भीतरी लकड़ी की दीवार के बीच स्थित है. पाती महापात्रा (एक सेवक) और दैत सेवक शाही चिकित्सक की सलाह के बाद मंदिर परिसर के एकांत कमरे में छिपे आसन बल्लभ पिंडी भगवान की सेवा करते हैं.

कैसे होता है भगवान का उपचार
एक सेवक ने बताया कि अनासरा गृह में भगवान के 14 दिन के उपचार के दौरान उनके लिए 10 जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाया जाता है और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दौरान भगवान को केवल फल, औषधीय जड़ी-बूटी और काढ़ा चढ़ाया जाता है और सभी अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि उपचार अवधि के दौरान भगवान को महाप्रसाद (पके चावल) की जगह सूखे प्रसाद का भोग लगाया जाता है. भगवान के शरीर से चंदन की लकड़ी और राल की परत निकाल ली जाती है और बुखार के कारण हो रहे दर्द का उपचार करने के लिए फुलूरी के तेल से शरीर की मालिश की जाती है.

उपचार पूरा होने तक चंदन की लकड़ी, चॉक, औषधियों, माड़ी और कढ़ाई अस्तर से कई अनुष्ठान किए जाते हैं. पखवाड़े के 14 वें दिन अमावस्या से एक दिन पहले भगवान अपने भक्तों के सामने प्रकट होने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसे नेत्रोत्सव कहा जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के एकांत काल में अगर आप ब्रह्मगिरि में भगवान के दर्शन करते हैं तो बहुत आशीर्वाद मिलता है. ऐसा विश्वास और आस्था है कि अलारनाथ और श्री जगन्नाथ मंदिर के चार पीठासीन देवताओं के दर्शन करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी.

क्या है 'रत्न सिंहासन'
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ आषाढ़ माह की अमावस्या पर अगले पखवाड़े के लिए एकांत में भेज दिया जाता है. इस अवधि के दौरान चतुर्दशी मूर्ति (यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बालभद्र, बहन देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन) को देखने की मनाही होती है. इस दौरान सिंहासन पर भगवान की फोटो रखकर उनके पृथ्वी पर दस अवतारों की पूजा की जाती है, जिसे 'रत्न सिंहासन' के नाम से जाना जाता है.

पढ़ें-जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव पर छाए कोरोना संकट के बादल

Last Updated : Jun 16, 2020, 3:03 PM IST
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