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अनुच्छेद 370 के बाद भविष्य में जटिल मुद्दा हो सकता है स्टेट वर्सेज यूनियन - संविधान संशोधन

भारत का संविधान अपने समय का बहुत मौलिक दस्तावेज है. संविधान मूल रूप से न केवल कुछ व्यक्तिगत अधिकारों बल्कि समूह अधिकारों की भी गारंटी देता है. उनमें से कुछ की मांग बेहद मौलिक अधिकारों की तरह है.

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Published : Nov 28, 2019, 7:07 AM IST

नई दिल्ली : आजादी के बाद देश कई मुसीबतों का सामना कर रहा था. देश का धर्म के आधार पर विभाजन हो चुका था. स्वतंत्रता सेनानी अलग-अलग राजनीतिक दलों में बंट चुके थे और कई रियासतों को भारत में मिलाने की तैयारी चल रही थी. उस दौरान भारत का संविधान लिखा गया, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान था. इसका एक कारण यह था कि संविधान निर्माता उस समय जिन चुनौतियों का सामना कर रहे थे, वे सब कुछ संविधान में लिखना चाहते थे.

पिछले 70 सालों में भारत के संविधान में सौ से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं. भारत में हर पांच साल में इतने जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, जितनी कुछ देशों की जनसंख्या भी नहीं होती. मसलन, देश में 30 लाख पंच-सरपंच चुने जाते हैं.

ईटीवी भारत के साथ साक्षात्कार.
स्कॉलर्स से लेकर नेताओं के सामने जो मुख्य चुनौतियां हैं, उनमें क्षेत्रीय मुद्दे प्रमुख हैं. 2026 में परिसीमन अधिनियम के अंतर्गत भारत में लोकसभा सीटों की संख्या भी बढ़ जाएगी.

अनुच्छेद 370 के बाद छोटे राज्यों को लगता है कि केंद्र सरकार उनके राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बना सकती है. देश में एक पार्टी के शक्तिशाली होने से क्षेत्रीय दल कटा हुआ से महसूस कर रहे हैं. भविष्य में स्टेट वर्सेज यूनियन जटिल मुद्दा हो सकता है.

73-74वें संशोधन के बाद बहुत से बदलाव आए हैं. महिलाएं चुनावी कार्यक्रम में भाग लेने लगी हैं. नोबल पुरस्कार विजेता महिला विकास की योजनाओं पर काम कर रहे हैं, जो कस्बे और गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने से अब जम्मू-कश्मीर को भी देश के अन्य राज्यों की तरह अधिकार और अन्य सुविधाएं मिलने लगेंगी.

हालांकि, जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने के बाद 1950-60 जैसी चुनौतियां वापस सामने आ सकती हैं और अन्य राज्यों को भी चिंता है कि उनके साथ भी ऐसा ही न हो. इसके अलावा प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक भी कुछ नियमों के खिलाफ है, जिसे लेकर लोगों में भय की स्थिति है. असम में एनआरसी सही ढंग से काम नहीं किया तो इसे पूरे देश में लागू नहीं करना चाहिए.

नई दिल्ली : आजादी के बाद देश कई मुसीबतों का सामना कर रहा था. देश का धर्म के आधार पर विभाजन हो चुका था. स्वतंत्रता सेनानी अलग-अलग राजनीतिक दलों में बंट चुके थे और कई रियासतों को भारत में मिलाने की तैयारी चल रही थी. उस दौरान भारत का संविधान लिखा गया, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान था. इसका एक कारण यह था कि संविधान निर्माता उस समय जिन चुनौतियों का सामना कर रहे थे, वे सब कुछ संविधान में लिखना चाहते थे.

पिछले 70 सालों में भारत के संविधान में सौ से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं. भारत में हर पांच साल में इतने जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, जितनी कुछ देशों की जनसंख्या भी नहीं होती. मसलन, देश में 30 लाख पंच-सरपंच चुने जाते हैं.

ईटीवी भारत के साथ साक्षात्कार.
स्कॉलर्स से लेकर नेताओं के सामने जो मुख्य चुनौतियां हैं, उनमें क्षेत्रीय मुद्दे प्रमुख हैं. 2026 में परिसीमन अधिनियम के अंतर्गत भारत में लोकसभा सीटों की संख्या भी बढ़ जाएगी.

अनुच्छेद 370 के बाद छोटे राज्यों को लगता है कि केंद्र सरकार उनके राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बना सकती है. देश में एक पार्टी के शक्तिशाली होने से क्षेत्रीय दल कटा हुआ से महसूस कर रहे हैं. भविष्य में स्टेट वर्सेज यूनियन जटिल मुद्दा हो सकता है.

73-74वें संशोधन के बाद बहुत से बदलाव आए हैं. महिलाएं चुनावी कार्यक्रम में भाग लेने लगी हैं. नोबल पुरस्कार विजेता महिला विकास की योजनाओं पर काम कर रहे हैं, जो कस्बे और गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने से अब जम्मू-कश्मीर को भी देश के अन्य राज्यों की तरह अधिकार और अन्य सुविधाएं मिलने लगेंगी.

हालांकि, जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने के बाद 1950-60 जैसी चुनौतियां वापस सामने आ सकती हैं और अन्य राज्यों को भी चिंता है कि उनके साथ भी ऐसा ही न हो. इसके अलावा प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक भी कुछ नियमों के खिलाफ है, जिसे लेकर लोगों में भय की स्थिति है. असम में एनआरसी सही ढंग से काम नहीं किया तो इसे पूरे देश में लागू नहीं करना चाहिए.

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