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विशेष लेखः नई तकनीक तक आतंकियों की पहुंच विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा

इंटरनेट ने आईएसआईएस के नेटवर्क को इराक और सीरिया से निकालकर दुनियाभर में फैलाने में सबसे बड़ा रोल अदा किया है. आईएसआईएस ने दुनियाभर में मौजूद अपने समर्थकों को एक साथ लाने के लिए कम विकसित देशों में मौजूद इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल किया. वहीं विकसित देशों के बेहतरीन इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल अपने संदेशों को फैलाने के लिए भी किया. इस रणनीति के कारण जांच ऐजेंसियां संदेशों को फैलाने वलों तक तो पहुंच जाती हैं, लेकिन असली गुनहगारों तक पहुंचने में नाकाम रहती हैं. जानें आतंकवाद के प्रचार-प्रसार में इंटरनेट का कैसे हो रहा है दुरुपयोग...

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प्रतीकात्मक चित्र
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Published : Nov 29, 2019, 7:39 PM IST

Updated : Nov 30, 2019, 12:16 PM IST

दुनियाभर में इंटरनेट के बढ़ते जाल से सूचना और तकनीक के क्षेत्र में क्रांति आ गई है. आधुनिक तकनीक न केवल हमारी मदद कर रही है, बल्कि इसका फायदा असामाजिकतत्व भी उठा रहे हैं. उनके लिए भी अपने कारनामों को अंजाम देने का उन्हें आसान विकल्प मिल गया है. इसके चलते देश की सुरक्षा के लेकर नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं.

सूचना क्रांति आने से पहले आतंकवादियों द्वारा फैलाया जाने वाला संदेश लंबे समय के बाद ही आम लोगों तक पहुंचते थे. किसी भी संदेश की पहले सरकारी ऐजेंसियां जांच करती थीं और उसके बाद ही वह आम लोगों के बीच पहुंच सकता था. इसके ठीक विपरीत आज कल सोशल मीडिया की पहुंच के कारण कुछ पलों के अंदर ही करोड़ों लोगों तक कोई भी संदेश पहुंचाया जा सकता है. आतंकवादी तकनीक के इस पहलू का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

यह बात सभी को साफ है किस तरह से इराक और सीरिया में आईएसआईएस और इस्लामिक स्टेट ने अपनी गतिविधियों को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया था. श्रीलंका में हुए ईस्टर के धमाकों के मास्टर माइंड जाहरान हाशिम ने युवाओं को इस घटना को अंजाम देने के दिशा निर्देश सोशल मीडिया के जरिये ही दिए थे.

इसे भी पढ़ें- ODF मिशन : क्या है सरकारी दावों की हकीकत, जानें विशेषज्ञ की राय

इंटरनेट ने आईएसआईएस के नेटवर्क को इराक और सीरिया से निकालकर दुनियाभर में फैलाने में सबसे बड़ा रोल अदा किया है. आईएसआईएस ने दुनियाभर में मौजूद अपने समर्थकों को एक साथ लाने के लिए कम विकसित देशों में मौजूद इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल किया. वहीं विकसित देशों के बेहतरीन इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल अपने संदेशों को फैलाने के लिए भी किया. इस रणनीति के कारण जांच ऐजेंसियां संदेशों को फैलाने वलों तक तो पहुंच जाती हैं, मगर असली गुनहगारों तक पहुंचने में नाकाम रहती हैं. इस तरह के प्रचार के कारण दुनियाभर से हजारों युवक सीरिया जाकर लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए तैयार किए गए. एक बार इंटरनेट से जुड़ने के बाद, कंप्यूटर और स्मार्टफोन के जरिये हम बिना किसी रुकावट के दुनियाभर से जुड़ जाते हैं. इसे देखते हुए यह साफ है कि आतंकवादियों द्वारा दिया गया कोई छोटे से छोटा संदेश भी अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बन सकता है.

इसी साल मार्च में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुए गोली कांड में 51 लोगों की जान चली गई थी. इस हमले का सीधा प्रसारण हमलावर ने अपने सोशल मीडिया चैनल पर किया था. इस हमले को 'क्राईस्ट चर्च किलिंग' कहा जाता है. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डेन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मार्कोन ने इस तरह के आंतकी हमलों पर काबू पाने के कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. 17 देशों ने एक करार के जरिये इंटरनेट पर आतंकवाद और अशांति फैलाने वाले कंटेंट पर रोक लगाने की शुरुआत कर दी है. इस करार में 31 और देश अबतक जुड़ चुके हैं. फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर और यूट्यूब जैसी इंटरनेट कंपनियों ने भी ग्लोबल इंटरनेट फोरम टू काउंटर टेररिज्म (जीआईएफसीटी) का गठन किया है. इसके माध्यम से इंटरनेट पर मौजूद आतंकी प्रचार पर रोक लगाई जाती है.

जीआईएफसीटी चार तरीकों से इंटरनेट पर मौजूद आतंकी प्रचार पर रोक लगाने की बात कर रही है. इसमें बड़ी टेक कंपनियों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक साथ लाना, नागरिक समाज में खुले मंच पर ऑनलाइन बातचीत बढ़ाना, आम लोगों को भी आतंकवाद के खिलाफ मुहिम का हिस्सा बनाना शामिल है. अमेजन, लिंक्डइन और वाट्सएप जैसी कंपनियां भी इस मुहिम में अपना सहयोग दे रही हैं. इस सबमें सबसे ज्यादा हैशटैग (#) लगे संदेशों पर नजर रखी जा रही है.

इसे भी पढ़ें- भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य का पतन

जीआईएफसीटी इंटरनेट पर आतंकवाद के प्रचार को रोकने के लिए नई तकनीक के आदान-प्रदान और नई शोध को साझा कर रही है. क्राइस्टचर्च जैसे हादसों ने यह भी बताया है कि अब आतंकी संगठन तकनीक के इस्तेमाल से बिना अपने संदेशों को ऑनलाइन अपलोड किए लोगों तक पहुंचा रहे हैं. अब ऐसे सॉफ्टवेयर आ गए हैं, जो इंटरनेट पर ऐसे संदेशों को डालने से रोकते हैं. इसके लिए खासतौर पर आतंकी विचारधारा से सहानुभूति रखने वाले लोगों का एक डाटाबेस तैयार किया गया है. भारत में आतंकी गुटों द्वारा भी लंबे समय से सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपना प्रचार करने के लिए किया जा रहा है. हिजबुल मुजाहिद्दीन के आंतकवादी बुरहान वानी ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल से कई युवाओं को कश्मीर में अपने मकसद से जोड़ा.

जैश, लश्कर-ए-तैय्यबा ने भी भारत के लिहाज से अपने इंटरनेट प्लान बनाए हैं. इसी दुरुपयोग के कारण भारतीय खुफिया ऐजेंसियां समय-समय पर कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाती रहती हैं. जीआईएफसीटी द्वारा विकसित कई सॉफ्टवेयर इंटरनेट पर आतंकी संदेशों को रोकने में कामयाब हो रहे हैं. इनके चलते आने वाले दिनों में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने की जरूरत नहीं रहेगी. सरकारी संस्थानों और आम लोगों को आंतकी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए आगे आकर एक साथ काम करने की जरूरत है. आज के दौर में इंटरनेट से जुड़ी सेवाएं जैसे कि ई कॉमर्स, ईमेल आदि आम जरूरतें बन गई हैं. इस वजह से आंतकवाद को इन संवाओं में बाधा डाले बिना जड़ से खत्म करना बेहद जरूरी है.

(लेखक- के श्रीधर)

दुनियाभर में इंटरनेट के बढ़ते जाल से सूचना और तकनीक के क्षेत्र में क्रांति आ गई है. आधुनिक तकनीक न केवल हमारी मदद कर रही है, बल्कि इसका फायदा असामाजिकतत्व भी उठा रहे हैं. उनके लिए भी अपने कारनामों को अंजाम देने का उन्हें आसान विकल्प मिल गया है. इसके चलते देश की सुरक्षा के लेकर नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं.

सूचना क्रांति आने से पहले आतंकवादियों द्वारा फैलाया जाने वाला संदेश लंबे समय के बाद ही आम लोगों तक पहुंचते थे. किसी भी संदेश की पहले सरकारी ऐजेंसियां जांच करती थीं और उसके बाद ही वह आम लोगों के बीच पहुंच सकता था. इसके ठीक विपरीत आज कल सोशल मीडिया की पहुंच के कारण कुछ पलों के अंदर ही करोड़ों लोगों तक कोई भी संदेश पहुंचाया जा सकता है. आतंकवादी तकनीक के इस पहलू का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

यह बात सभी को साफ है किस तरह से इराक और सीरिया में आईएसआईएस और इस्लामिक स्टेट ने अपनी गतिविधियों को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया था. श्रीलंका में हुए ईस्टर के धमाकों के मास्टर माइंड जाहरान हाशिम ने युवाओं को इस घटना को अंजाम देने के दिशा निर्देश सोशल मीडिया के जरिये ही दिए थे.

इसे भी पढ़ें- ODF मिशन : क्या है सरकारी दावों की हकीकत, जानें विशेषज्ञ की राय

इंटरनेट ने आईएसआईएस के नेटवर्क को इराक और सीरिया से निकालकर दुनियाभर में फैलाने में सबसे बड़ा रोल अदा किया है. आईएसआईएस ने दुनियाभर में मौजूद अपने समर्थकों को एक साथ लाने के लिए कम विकसित देशों में मौजूद इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल किया. वहीं विकसित देशों के बेहतरीन इंटरनेट ढांचे का इस्तेमाल अपने संदेशों को फैलाने के लिए भी किया. इस रणनीति के कारण जांच ऐजेंसियां संदेशों को फैलाने वलों तक तो पहुंच जाती हैं, मगर असली गुनहगारों तक पहुंचने में नाकाम रहती हैं. इस तरह के प्रचार के कारण दुनियाभर से हजारों युवक सीरिया जाकर लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए तैयार किए गए. एक बार इंटरनेट से जुड़ने के बाद, कंप्यूटर और स्मार्टफोन के जरिये हम बिना किसी रुकावट के दुनियाभर से जुड़ जाते हैं. इसे देखते हुए यह साफ है कि आतंकवादियों द्वारा दिया गया कोई छोटे से छोटा संदेश भी अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बन सकता है.

इसी साल मार्च में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुए गोली कांड में 51 लोगों की जान चली गई थी. इस हमले का सीधा प्रसारण हमलावर ने अपने सोशल मीडिया चैनल पर किया था. इस हमले को 'क्राईस्ट चर्च किलिंग' कहा जाता है. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डेन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मार्कोन ने इस तरह के आंतकी हमलों पर काबू पाने के कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. 17 देशों ने एक करार के जरिये इंटरनेट पर आतंकवाद और अशांति फैलाने वाले कंटेंट पर रोक लगाने की शुरुआत कर दी है. इस करार में 31 और देश अबतक जुड़ चुके हैं. फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर और यूट्यूब जैसी इंटरनेट कंपनियों ने भी ग्लोबल इंटरनेट फोरम टू काउंटर टेररिज्म (जीआईएफसीटी) का गठन किया है. इसके माध्यम से इंटरनेट पर मौजूद आतंकी प्रचार पर रोक लगाई जाती है.

जीआईएफसीटी चार तरीकों से इंटरनेट पर मौजूद आतंकी प्रचार पर रोक लगाने की बात कर रही है. इसमें बड़ी टेक कंपनियों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक साथ लाना, नागरिक समाज में खुले मंच पर ऑनलाइन बातचीत बढ़ाना, आम लोगों को भी आतंकवाद के खिलाफ मुहिम का हिस्सा बनाना शामिल है. अमेजन, लिंक्डइन और वाट्सएप जैसी कंपनियां भी इस मुहिम में अपना सहयोग दे रही हैं. इस सबमें सबसे ज्यादा हैशटैग (#) लगे संदेशों पर नजर रखी जा रही है.

इसे भी पढ़ें- भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य का पतन

जीआईएफसीटी इंटरनेट पर आतंकवाद के प्रचार को रोकने के लिए नई तकनीक के आदान-प्रदान और नई शोध को साझा कर रही है. क्राइस्टचर्च जैसे हादसों ने यह भी बताया है कि अब आतंकी संगठन तकनीक के इस्तेमाल से बिना अपने संदेशों को ऑनलाइन अपलोड किए लोगों तक पहुंचा रहे हैं. अब ऐसे सॉफ्टवेयर आ गए हैं, जो इंटरनेट पर ऐसे संदेशों को डालने से रोकते हैं. इसके लिए खासतौर पर आतंकी विचारधारा से सहानुभूति रखने वाले लोगों का एक डाटाबेस तैयार किया गया है. भारत में आतंकी गुटों द्वारा भी लंबे समय से सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपना प्रचार करने के लिए किया जा रहा है. हिजबुल मुजाहिद्दीन के आंतकवादी बुरहान वानी ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल से कई युवाओं को कश्मीर में अपने मकसद से जोड़ा.

जैश, लश्कर-ए-तैय्यबा ने भी भारत के लिहाज से अपने इंटरनेट प्लान बनाए हैं. इसी दुरुपयोग के कारण भारतीय खुफिया ऐजेंसियां समय-समय पर कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाती रहती हैं. जीआईएफसीटी द्वारा विकसित कई सॉफ्टवेयर इंटरनेट पर आतंकी संदेशों को रोकने में कामयाब हो रहे हैं. इनके चलते आने वाले दिनों में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने की जरूरत नहीं रहेगी. सरकारी संस्थानों और आम लोगों को आंतकी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए आगे आकर एक साथ काम करने की जरूरत है. आज के दौर में इंटरनेट से जुड़ी सेवाएं जैसे कि ई कॉमर्स, ईमेल आदि आम जरूरतें बन गई हैं. इस वजह से आंतकवाद को इन संवाओं में बाधा डाले बिना जड़ से खत्म करना बेहद जरूरी है.

(लेखक- के श्रीधर)

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Last Updated : Nov 30, 2019, 12:16 PM IST
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