ETV Bharat / bharat

1962 में भारतीय सेना के गाइड बने थे स्वामी सुंदरानंद, आर्मी के लिए की थी रेकी

1962 में स्वामी सुंदरानंद सेना ने 30 भारतीय जवानों को बर्फ के बीच के रास्तों, घाटियों, नदी, झरनों के बारे में एक-एक जानकारी दी थी, जिसकी उस समय भारतीय सेना को बहुत जरूरत थी. जानें विस्तार से...

swami-sundaranand-became-the-guide-of-indian-army-in-1962-war
भारतीय सेना के गाइड बने थे स्वामी सुंदरानंद
author img

By

Published : Jun 21, 2020, 10:55 PM IST

Updated : Jun 22, 2020, 6:47 PM IST

उत्तरकाशी : भारतीय सेना और सीमांत इलाकों में बसे गांव के लोगों के जुड़ाव के कई किस्से और कहानियां इतिहास में दर्ज हैं. इनमें सीमा की रेकी से लेकर, सेना की मदद की कहानियां प्रमुख हैं. ऐसी ही एक कहानी गंगोत्री धाम में रहने वाले साधु स्वामी सुंदरानंद की भी है. 1962 में स्वामी सुंदरानंद सेना के 30 जवानों के लिए गाइड बने थे. इस दौरान इन जवानों को नेलांग से बदरीनाथ घाटी में स्थित सीमा तक ले जाने रास्तों की जानकारी दी थी और रेकी करवाई थी.

साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय उत्तरकाशी से चमोली तक अंतरराष्ट्रीय सीमा पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई थी. उस समय इन रास्तों पर जाने का मतलब मौत को दावत देना था. मगर फिर भी भारतीय सेना ने सीमित संसाधनों के बीच चमोली जाने का निर्णय लिया था. अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर शुरू हुए युद्ध के बीच सेना ने सभी राज्यों से सटी सीमाओं पर गश्त और रेकी शुरू की थी. तब गंगोत्री और बदरीनाथ घाटी पूरी तरह बर्फ से ढकी थी. ऐसे समय में स्वामी सुंदरानंद ने भारतीय सेना के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाई थी.

1962 में भारतीय सेना के गाइड बने थे स्वामी सुंदरानंद

स्वामी सुंदरानंद सेना ने 30 भारतीय जवानों को बर्फ के बीच के रास्तों, घाटियों, नदी, झरनों के बारे में एक-एक छोटी जानकारी दी. जिसकी जरूरत भारतीय सेना को थी. इसके साथ ही उन्होंने जवानों का गाइड बनकर नेलांग से बदरीनाथ घाटी स्थित सीमा तक जाने वाले रास्तों की जानकारी और रेकी कराई थी.

गंगोत्री धाम की तपोवन कुटिया में रहने वाले 95 वर्षीय स्वामी सुंदरानंद ने अपने अनुभवों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया. स्वामी सुंदरानंद ने बताया 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय 3 बॉर्डर स्काउट फौज के मेजर कुछ जवानों को लेकर उनके पास पहुंचे. उन्होंने उनसे नेलांग से बदरीनाथ घाटी तक अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे मार्गों की रेकी के लिए गाइड बनने की बात कही. तब स्वामी सुंदरानंद ने मेजर से कहा आप पूरे देश की रक्षा कर रहे हो, ऐसे में ये मेरा सौभाग्य होगा कि मैं देश की रक्षा में आपका गाइड बनकर मदद कर सकूं. स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि उन्होंने नेलांग घाटी से गश्तोली सहित कालिंदी पास, माणा पास, नीति-घोती आदि घाटियों में सेना के लिए गाइड का काम किया.

स्वामी सुंदरानंद ने बताया कि जब वह मेजर और जवानों के साथ 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बर्फीले कालिंदी पास को पार कर रहे थे, तब वे सब तूफान में फंस गए थे. मेजर ने स्वामी से कहा था कि आज वे सब भी पांडवों की तरह इन घाटियों में समा जाएंगे. जिसके बाद स्वामी सुंदरानंद ने हिमालय का आह्वान किया. थोड़ी देर बाद ही मौसम साफ हो गया. जिसके बाद वे सेना के जवानों के साथ सुरक्षित जोशीमठ पहुंचा सकें.

यह भी पढ़ें- जानें, कैसे बिहार रेजिमेंट ने गलवान में चीनी पोस्ट को उखाड़ फेंका

स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि इस दौरान कई स्थानों पर वे गुड़ और चने के सहारे पत्थरों के बीच रहे. जोशीमठ पहुंचने पर सेना के जवानों ने स्वामी सुंदरानंद का धन्यवाद करते हुए उन्हें सम्मानित किया था.

उत्तरकाशी : भारतीय सेना और सीमांत इलाकों में बसे गांव के लोगों के जुड़ाव के कई किस्से और कहानियां इतिहास में दर्ज हैं. इनमें सीमा की रेकी से लेकर, सेना की मदद की कहानियां प्रमुख हैं. ऐसी ही एक कहानी गंगोत्री धाम में रहने वाले साधु स्वामी सुंदरानंद की भी है. 1962 में स्वामी सुंदरानंद सेना के 30 जवानों के लिए गाइड बने थे. इस दौरान इन जवानों को नेलांग से बदरीनाथ घाटी में स्थित सीमा तक ले जाने रास्तों की जानकारी दी थी और रेकी करवाई थी.

साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय उत्तरकाशी से चमोली तक अंतरराष्ट्रीय सीमा पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई थी. उस समय इन रास्तों पर जाने का मतलब मौत को दावत देना था. मगर फिर भी भारतीय सेना ने सीमित संसाधनों के बीच चमोली जाने का निर्णय लिया था. अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर शुरू हुए युद्ध के बीच सेना ने सभी राज्यों से सटी सीमाओं पर गश्त और रेकी शुरू की थी. तब गंगोत्री और बदरीनाथ घाटी पूरी तरह बर्फ से ढकी थी. ऐसे समय में स्वामी सुंदरानंद ने भारतीय सेना के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाई थी.

1962 में भारतीय सेना के गाइड बने थे स्वामी सुंदरानंद

स्वामी सुंदरानंद सेना ने 30 भारतीय जवानों को बर्फ के बीच के रास्तों, घाटियों, नदी, झरनों के बारे में एक-एक छोटी जानकारी दी. जिसकी जरूरत भारतीय सेना को थी. इसके साथ ही उन्होंने जवानों का गाइड बनकर नेलांग से बदरीनाथ घाटी स्थित सीमा तक जाने वाले रास्तों की जानकारी और रेकी कराई थी.

गंगोत्री धाम की तपोवन कुटिया में रहने वाले 95 वर्षीय स्वामी सुंदरानंद ने अपने अनुभवों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया. स्वामी सुंदरानंद ने बताया 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय 3 बॉर्डर स्काउट फौज के मेजर कुछ जवानों को लेकर उनके पास पहुंचे. उन्होंने उनसे नेलांग से बदरीनाथ घाटी तक अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे मार्गों की रेकी के लिए गाइड बनने की बात कही. तब स्वामी सुंदरानंद ने मेजर से कहा आप पूरे देश की रक्षा कर रहे हो, ऐसे में ये मेरा सौभाग्य होगा कि मैं देश की रक्षा में आपका गाइड बनकर मदद कर सकूं. स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि उन्होंने नेलांग घाटी से गश्तोली सहित कालिंदी पास, माणा पास, नीति-घोती आदि घाटियों में सेना के लिए गाइड का काम किया.

स्वामी सुंदरानंद ने बताया कि जब वह मेजर और जवानों के साथ 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बर्फीले कालिंदी पास को पार कर रहे थे, तब वे सब तूफान में फंस गए थे. मेजर ने स्वामी से कहा था कि आज वे सब भी पांडवों की तरह इन घाटियों में समा जाएंगे. जिसके बाद स्वामी सुंदरानंद ने हिमालय का आह्वान किया. थोड़ी देर बाद ही मौसम साफ हो गया. जिसके बाद वे सेना के जवानों के साथ सुरक्षित जोशीमठ पहुंचा सकें.

यह भी पढ़ें- जानें, कैसे बिहार रेजिमेंट ने गलवान में चीनी पोस्ट को उखाड़ फेंका

स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि इस दौरान कई स्थानों पर वे गुड़ और चने के सहारे पत्थरों के बीच रहे. जोशीमठ पहुंचने पर सेना के जवानों ने स्वामी सुंदरानंद का धन्यवाद करते हुए उन्हें सम्मानित किया था.

Last Updated : Jun 22, 2020, 6:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.