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राफेल पुनर्विचार याचिका : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

केंद्र सरकार ने फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये किये गए सौदे को लेकर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई पर अपना पक्ष रखा.

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
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Published : May 11, 2019, 9:44 AM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये किये गए सौदे को लेकर उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राफेल सौदे को क्लीन चिट देने के न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा. सरकार ने पक्ष रखते हुए कहा कि राफेल विमान 'सजावट' के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरुरी हैं.

आपको बता दें कि इन याचिकाओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की याचिकाएं भी शामिल हैं.

केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल इस तथ्य का उल्लेख किया कि वायुसेना ने 2001-02 में 156 लड़ाकू विमानों को हासिल करने का मुद्दा उठाया था.
उन्होंने कहा, '2007 से 2015 तक का समय बड़े झटके जैसा था क्योंकि लड़ाकू विमान देश के लिये बेहद जरूरी हैं. यह सजावट के उद्देश्य के लिये नहीं है. यह सुरक्षा के लिये बेहद जरूरी है.'

रक्षा सौदों से जुड़े मामलों में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश से जूझ रहे सर्वोच्च विधि अधिकारी ने कहा, 'दुनिया की कोई अदालत यह नहीं देखेगी कि रक्षा सौदे में क्या खरीदा जाना है.'
वकील प्रशांत भूषण के प्रतिवेदन का विरोध करते हुए कहा कि इन याचिकाओं का मूल आधार मुख्य मामले जैसा ही है इसलिए खारिज कर देने चााहिए.

उन्होंने कहा, 'उच्चतम न्यायालय राफेल सौदे को दी गई चुनौती पर पहले ही फैसला सुना चुका है. मैं अब भी कहूंगा कि याचिकाकर्ता चोरी किये गए गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर फैसले की समीक्षा चाहते हैं.'

पढ़ें- अयोध्या भूमि विवाद: SC ने मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए 15 अगस्त तक का समय दिया

उन्होंने भारत और फ्रांस के बीच हुए अंतर सरकारी करार (आईजीए) की धारा 10 का संदर्भ दिया और कहा कि यह करार की गोपनीयता को बरकरार रखने की बात करता है.

आईजीए में संप्रभु गारंटी से छूट और इसे लेटर ऑफ कंफर्ट (एक तरह का आश्वासन पत्र) से बदलने से जुड़े अदालत के सवाल पर वेणुगोपाल ने कहा कि यह अभूतपूर्व प्रक्रिया नहीं है और इस संदर्भ में रूस और अमेरिका के साथ हुए करारों का हवाला दिया जहां संप्रभु गारंटी से छूट दी गई थी.

उन्होंने कहा, 'यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है। दुनिया की कोई दूसरी अदालत इस तरह की दलीलों पर रक्षा समझौतों की जांच नहीं करेगी.'

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये किये गए सौदे को लेकर उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राफेल सौदे को क्लीन चिट देने के न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा. सरकार ने पक्ष रखते हुए कहा कि राफेल विमान 'सजावट' के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरुरी हैं.

आपको बता दें कि इन याचिकाओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की याचिकाएं भी शामिल हैं.

केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल इस तथ्य का उल्लेख किया कि वायुसेना ने 2001-02 में 156 लड़ाकू विमानों को हासिल करने का मुद्दा उठाया था.
उन्होंने कहा, '2007 से 2015 तक का समय बड़े झटके जैसा था क्योंकि लड़ाकू विमान देश के लिये बेहद जरूरी हैं. यह सजावट के उद्देश्य के लिये नहीं है. यह सुरक्षा के लिये बेहद जरूरी है.'

रक्षा सौदों से जुड़े मामलों में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश से जूझ रहे सर्वोच्च विधि अधिकारी ने कहा, 'दुनिया की कोई अदालत यह नहीं देखेगी कि रक्षा सौदे में क्या खरीदा जाना है.'
वकील प्रशांत भूषण के प्रतिवेदन का विरोध करते हुए कहा कि इन याचिकाओं का मूल आधार मुख्य मामले जैसा ही है इसलिए खारिज कर देने चााहिए.

उन्होंने कहा, 'उच्चतम न्यायालय राफेल सौदे को दी गई चुनौती पर पहले ही फैसला सुना चुका है. मैं अब भी कहूंगा कि याचिकाकर्ता चोरी किये गए गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर फैसले की समीक्षा चाहते हैं.'

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उन्होंने भारत और फ्रांस के बीच हुए अंतर सरकारी करार (आईजीए) की धारा 10 का संदर्भ दिया और कहा कि यह करार की गोपनीयता को बरकरार रखने की बात करता है.

आईजीए में संप्रभु गारंटी से छूट और इसे लेटर ऑफ कंफर्ट (एक तरह का आश्वासन पत्र) से बदलने से जुड़े अदालत के सवाल पर वेणुगोपाल ने कहा कि यह अभूतपूर्व प्रक्रिया नहीं है और इस संदर्भ में रूस और अमेरिका के साथ हुए करारों का हवाला दिया जहां संप्रभु गारंटी से छूट दी गई थी.

उन्होंने कहा, 'यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है। दुनिया की कोई दूसरी अदालत इस तरह की दलीलों पर रक्षा समझौतों की जांच नहीं करेगी.'

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