नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क का स्वामित्व रखने वाली एआरजी आउटलायर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और उसके कर्मियों के खिलाफ महाराष्ट्र में दर्ज मामलों में संरक्षण का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई से सोमवार को इनकार कर दिया है.
सोमवार को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने एआरजी आउटलायर मीडिया की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मिलिंद साठे से कहा, 'यह याचिका महत्वाकांक्षी प्रकृति की है. आप चाहते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस किसी कर्मी को गिरफ्तार न करे और मामलों को सीबीआई को स्थानांतरित करे. बेहतर होगा कि आप इसे वापस ले लें.'
साठे ने पीठ से कहा कि उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस को मीडिया नेटवर्क, उसके प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी और उसके कर्मियों के 'पीछे पड़ने' से रोकने के लिए याचिका दायर की है.
पीठ ने कहा, 'आपने सभी राहतों के लिए अनुरोध किया है और इन सब पर एक याचिका में विचार नहीं किया जा सकता.' इसके बाद, साठे ने कहा कि वह याचिका को वापस लेंगे.
शीर्ष अदालत ने साठे को कानून के तहत उपलब्ध उचित उपचार की छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी.
याचिका में किया गया अनुरोध
मीडिया समूह, गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के कर्मियों के लिए संरक्षण के अनुरोध के अलावा याचिका में आग्रह किया गया था कि महाराष्ट्र सरकार को उनके 'पीछे पड़ने' से रोका जाना चाहिए और उनके खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकी या तो खारिज की जाएं या सीबीआई को स्थानांतरित की जाएं.
सीबीआई जांच की मांग
याचिका में यह भी कहा गया था कि मीडिया समूह और उसके कर्मियों के खिलाफ कई मामले दर्ज करने के लिए राज्य और उसकी पुलिस के विरुद्ध भी सीबीआई जांच होनी चाहिए. इसमें यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि महाराष्ट्र पुलिस मीडिया समूह की संपादकीय टीम के किसी सदस्य या अन्य कर्मी को गिरफ्तार न करे.
मुंबई पुलिस ने कथित टीआरपी घोटाले के सिलसिले में मामला दर्ज किया था. मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने दावा किया था कि रिपब्लिक टीवी समेत तीन चैनलों ने टीआरपी के साथ कथित रूप से छेड़छाड़ की.
एआरजी आउटलायर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने इन आरोपों को खारिज किया है.
इसके अलावा, महाराष्ट्र में गोस्वामी के खिलाफ कुछ अन्य मामले लंबित हैं.
शीर्ष अदालत ने आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में प्राथमिकी रद्द करने के लिए अर्नब और दो अन्य की याचिकाओं पर बंबई उच्च न्यायालय के फैसला करने की तारीख से चार सप्ताह के लिए उनकी अंतरिम जमानत की अवधि 27 नवंबर को बढ़ा दी थी. न्यायालय ने कहा था कि न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फौजदारी कानून मनमाने तरीके से उत्पीड़न का हथियार नहीं बनें.