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कोरोना : तिहाड़ जेल 3,000 कैदियों को रिहा करने की तैयारी

जेलों में लगातार बढ़ रही कैदियों की भीड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे उच्च शक्ति समिति का गठन करें, जो यह निर्धारित करे कि किस श्रेणी के दोषियों या अपराधियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है. प्रकोप के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया. पढे़ं खबर विस्तार से...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Mar 23, 2020, 1:30 PM IST

Updated : Mar 23, 2020, 7:44 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों को उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है. इस समिति को निर्देश दिया गया है कि जेलों में भीड़ कम करने के लिए कैदियों के ऐसे वर्ग का निर्धारण किया जाए, जिन्हें चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सकता है. वहीं तिहाड़ प्रशासन भी आने वाले दिनों में लगभग तीन हजार कैदियों को रिहा कर सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे कैदियों को पैरोल पर रिहा किया जा सकता है जिन्हें सात साल की कैद हुई हो या फिर उनके खिलाफ ऐसे अपराध में अभियोग निर्धारित हो चुका हो, जिसमें सात साल तक की सजा का प्रावधान हो.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि यह उच्च स्तरीय समिति कैदियों की रिहाई के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के परामर्श से काम करेगी.

पीठ ने कहा, 'हम, इसलिए, निर्देश देते हैं कि प्रत्येक राज्य चार से छह सप्ताह के पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने योग्य कैदियों के वर्ग का निर्धारण करने के लिये गृह सचिव और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष की सदस्यता वाली उच्च स्तरीय समिति गठित करेगी.'

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि कोविड-19 के नाम से चर्चित इस महामारी की वजह से जेलों में अधिक भीड़ से बचने के प्रयास में इन कैदियों को रिहा किया जा रहा है.

कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर देश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से उत्पन्न खतरे और इससे निबटने की तैयारियों को ध्यान में रखते हुये शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को स्वत: ही इस मामले का संज्ञान लिया था.

न्यायालय ने कहा था कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से उनके लिये कोरोना वायरस, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित कर दिया है, से बचाव के लिये एक दूरी बनाकर रखना बहुत मुश्किल है.

पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट ने दिए वकीलों के चैंबर बंद करने के आदेश, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई

शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया था कि अगर तत्काल ठोस कदम नहीं उठो गए तो भारत में हालत खराब हो सकते हैं.

न्यायालय ने जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा था कि देश में 1,339 जेलों में करीब 4,66,084 कैदी हैं. न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार भारतीय जेलों में 117.6 प्रतिशत केदी हैं जबकि उत्तर प्रदेश की जेलों में तो 176.5 प्रतिशत कैदी हैं.

न्यायालय ने कहा था कि इन जेलों के अनेक कर्मचारी नियमित रूप से जेल के भीतर जाते हैं और इसी तरह मुलाकाती और वकील भी जेल पहुंचते हैं. ऐसी स्थिति में जेल के कैदियों के लिये भी कोविड-19 से संक्रमित होने का बहुत ज्यादा खतरा है. बता दें कि जेलों में लगातार बढ़ रही कैदियों की भीड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह क उच्च शक्ति समिति का गठन करे, जो यह निर्धारित करें कि किस श्रेणी के दोषियों या अपराधियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा, 'हम प्रत्येक राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह एक उच्च शक्ति समिति का गठन करे, जिसमें कानून सचिव और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष यह निर्धारित करें कि किस श्रेणी के दोषियों या अपराधियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.'

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) देश की 1,400 जेलों में करीब 4.33 लाख कैदी बंद हैं. इनमें से करीब 67 प्रतिशत कैदियों के मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों को उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है. इस समिति को निर्देश दिया गया है कि जेलों में भीड़ कम करने के लिए कैदियों के ऐसे वर्ग का निर्धारण किया जाए, जिन्हें चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सकता है. वहीं तिहाड़ प्रशासन भी आने वाले दिनों में लगभग तीन हजार कैदियों को रिहा कर सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे कैदियों को पैरोल पर रिहा किया जा सकता है जिन्हें सात साल की कैद हुई हो या फिर उनके खिलाफ ऐसे अपराध में अभियोग निर्धारित हो चुका हो, जिसमें सात साल तक की सजा का प्रावधान हो.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि यह उच्च स्तरीय समिति कैदियों की रिहाई के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के परामर्श से काम करेगी.

पीठ ने कहा, 'हम, इसलिए, निर्देश देते हैं कि प्रत्येक राज्य चार से छह सप्ताह के पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने योग्य कैदियों के वर्ग का निर्धारण करने के लिये गृह सचिव और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष की सदस्यता वाली उच्च स्तरीय समिति गठित करेगी.'

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि कोविड-19 के नाम से चर्चित इस महामारी की वजह से जेलों में अधिक भीड़ से बचने के प्रयास में इन कैदियों को रिहा किया जा रहा है.

कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर देश की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से उत्पन्न खतरे और इससे निबटने की तैयारियों को ध्यान में रखते हुये शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को स्वत: ही इस मामले का संज्ञान लिया था.

न्यायालय ने कहा था कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से उनके लिये कोरोना वायरस, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित कर दिया है, से बचाव के लिये एक दूरी बनाकर रखना बहुत मुश्किल है.

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शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया था कि अगर तत्काल ठोस कदम नहीं उठो गए तो भारत में हालत खराब हो सकते हैं.

न्यायालय ने जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा था कि देश में 1,339 जेलों में करीब 4,66,084 कैदी हैं. न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार भारतीय जेलों में 117.6 प्रतिशत केदी हैं जबकि उत्तर प्रदेश की जेलों में तो 176.5 प्रतिशत कैदी हैं.

न्यायालय ने कहा था कि इन जेलों के अनेक कर्मचारी नियमित रूप से जेल के भीतर जाते हैं और इसी तरह मुलाकाती और वकील भी जेल पहुंचते हैं. ऐसी स्थिति में जेल के कैदियों के लिये भी कोविड-19 से संक्रमित होने का बहुत ज्यादा खतरा है. बता दें कि जेलों में लगातार बढ़ रही कैदियों की भीड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह क उच्च शक्ति समिति का गठन करे, जो यह निर्धारित करें कि किस श्रेणी के दोषियों या अपराधियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा, 'हम प्रत्येक राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह एक उच्च शक्ति समिति का गठन करे, जिसमें कानून सचिव और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष यह निर्धारित करें कि किस श्रेणी के दोषियों या अपराधियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है.'

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) देश की 1,400 जेलों में करीब 4.33 लाख कैदी बंद हैं. इनमें से करीब 67 प्रतिशत कैदियों के मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं.

Last Updated : Mar 23, 2020, 7:44 PM IST
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