नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के बागी विधायकों की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत बुधवार सुबह 10.30 बजे अपना फैसला सुनाएगी. आज की सुनवाई में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन पेश हुए. बागी विधायकों के लिए मुकुल रोहतगी ने पैरवी की. स्पीकर रमेश कुमार की ओर से कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा.
पढ़ें बिंदुवार विवरण
- CM कुमारस्वामी की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. बिंदुवार पढ़ें राजीव धवन की दलीलें
- स्पीकर के फैसला लेने के पहले न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती.
- जब इस्तीफे की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ हो तब न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष को शाम छह बजे तक इस पर फैसला करने का निर्देश नहीं दे सकता.
- न्यायालय को विधायकों की अर्जी सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी.
- यह विधानसभा अध्यक्ष बनाम न्यायालय का मामला नहीं है, यह मुख्यमंत्री और एक ऐसे व्यक्ति के बीच का मामला है जो सरकार गिराकर खुद मुख्यमंत्री बनना चाहता है.
- न्यायालय के पास विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश देने का अधिकार नहीं है.
- बागी विधायक एकजुट होकर सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं, वे सभी साथ में होटल गए थे
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी विधानसभा अध्यक्ष की पैरवी कर रहे हैं. सिंघवी ने न्यायालय से कहा:
- कृपया पुराने आदेश में संशोधन करें, मैं अयोग्यता और इस्तीफा दोनों पर कल तक फैसला कर लूंगा
- विधानसभा अध्यक्ष को तय समय में फैसला करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.
रोहतगी की दलीलें
- मुकुल रोहतगी ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के कारण इस्तीफा देने का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि स्पीकर दुर्भावनापूर्ण, पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य कर रहे हैं
- कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने अभी तक विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर फैसला नहीं लिया है, न्यायालय के पास दंडित करने का पूरा अधिकार है.
- कांग्रेस-जेडीएस के बागी विधायकों ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को दोपहर दो बजे तक इस्तीफों पर फैसला लेने, और अयोग्यता पर बाद में निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है.
- विधानसभा अध्यक्ष ने हमें अयोग्य ठहराने के लिए इस्तीफे को लटकाए रखा, अयोग्य ठहराए जाने से बचने के लिए इस्तीफा देने में कुछ भी गलत नहीं है.
- कांग्रेस- जेडीएस की सरकार अल्पमत में रह गई है, विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा स्वीकार नहीं कर हमें विश्वासमत परीक्षण के दौरान सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए बाध्य करने का प्रयास कर रहे हैं.
- अयोग्यता कार्यवाही कुछ नहीं है बल्कि विधायकों के इस्तीफा मामले पर टाल-मटोल करना है
- बागी विधायकों ने भाजपा के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा है इसे साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है
- अयोग्य घोषित करना संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत संक्षिप्त-सुनवाई है, जबकि इस्तीफ अलग है.
- इस्तीफा स्वीकार किया जाना सिर्फ एक मानक पर आधारित है कि वह स्वैच्छिक है या नहीं.
- विधानसभा में विश्वास मत परीक्षण होना है. बागी विधायकों को इस्तीफा देने के बावजूद पार्टी की व्हिप का मजबूरन पालन करना पड़ेगा.
- कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करना ही होगा, उससे निपटने का और कोई तरीका नहीं है.
- विधानसभा अध्यक्ष को देखना होगा कि इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया है या नहीं
- इस्तीफा सौंपे जाने के बाद उसका निर्णय गुण-दोष के आधार पर होता है न कि अयोग्यता की कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर.