नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण न्याय प्रशासन के लिए अहम है और इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप इस संस्था के लिए अच्छा नहीं है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने न्यायमूर्ति अकील कुरैशी की पदोन्नति के मामले में कॉलेजियम की सिफारिश लागू करने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
बता दें, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने 10 मई को न्यायमूर्ति कुरैशी को पदोन्नति देकर मप्र उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी. हालांकि, बाद में कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की.
पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका लंबित रखते हुए कहा, ‘नियुक्तियां और तबादले न्याय प्रशासन की तह तक जाते हैं और जहां न्यायिक समीक्षा प्रतिबंधित है. न्याय प्रशासन की व्यवस्था में हस्तक्षेप संस्थान के लिये अच्छा नहीं है.'
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याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार ने पीठ से कहा कि न्यायमूर्ति कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश पर केन्द्र द्वारा अमल किये जाने तक इस याचिका को लंबित रखा जाए.
पीठ ने जीएचसीएए के इस कथन से सहमति व्यक्त की और कहा कि इस मामले को केन्द्र के निर्णय के बाद सूचीबद्ध किया जाए.
न्यायमूर्ति कुरैशी को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश करने के लिये कॉलेजियम ने पांच सितंबर को हुई बैठक में निर्णय लिया था. कॉलेजियम के इस प्रस्ताव को शुक्रवार को न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था.
इस संगठन के अध्यक्ष यतीन ओजा ने कथित रूप से कहा था कि न्यायमूर्ति कुरैशी को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने ही 2010 में वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह को पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया था.