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सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को दी दिशा, नहीं चलेगी किसी की जिद - नहीं चलेगी किसी की जिद

कृषि कानूनों का पास होना और उससे भी बढ़कर उसके खिलाफ दिल्ली में हो रहे प्रदर्शन ने इस साल की सबसे बड़ी और चर्चित खबरों में अपनी जगह बना ली है. किसान आंदोलन, उसके मकसद और अंजाम को जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट.

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किसान आंदोलन
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Published : Dec 16, 2020, 7:21 PM IST

हैदराबाद : नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच ठनी हुई है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब के किसान ही कर रहे हैं. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी कुछ संख्या में इसके खिलाफ हैं. हालांकि, पंजाब के किसानों की तरह देश के अन्य इलाकों के किसान उग्र नहीं हैं. वहीं सिंघु बॉर्डर पर धरना देते हुए किसानों को 21 दिन बीत चुके हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है.

कमेटी बनाने का अदालत से प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट में आज सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाए जाने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने किसान संगठनों का पक्ष सुनने की बात कही है. साथ ही सरकार से पूछा कि अब तक समझौता क्यों नहीं हुआ? अदालत की तरफ से किसान संगठनों को नोटिस दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द समझौता होना चाहिए. अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने की बात कही है, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो सके. अब इस मामले की सुनवाई कल होगी.

मोदी ने किसानों से जताया प्यार, आंदोलन पर नाराजगी

मंगलवार को गुजरात के कच्छ में कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आजकल दिल्ली के आसपास किसानों को भ्रमित करने की बड़ी साजिश चल रही है. उन्हें डराया जा रहा है कि कृषि सुधारों के बाद किसानों की जमीन पर कब्जा कर लिया जाएगा. हाल में हुए कृषि सुधारों की मांग वर्षों से की जा रही थी और अनेक किसान संगठन भी यह मांग करते थे कि किसानों को उनका अनाज कहीं पर भी बेचने का विकल्प दिया जाए.आज देश ने जब यह ऐतिहासिक कदम उठा लिया तो विपक्षी दल किसानों को भ्रमित करने में जुट गए हैं जबकि वे जब सत्ता में थे, तब ऐसे कृषि सुधारों की वकालत करते थे. मैं अपने किसान भाइयों बहनों को बार-बार दोहराता हूं कि उनकी हर शंका के समाधान के लिए सरकार 24 घंटे तैयार है. किसानों का हित पहले दिन से हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है. खेती में किसानों का खर्च कम हो, उनकी आय बढ़े और मुश्किलें कम हों, नये विकल्प मिलें, इसके लिए हमने निरंतर काम किया है. प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताते हुए कहा कि किसानों के आशीर्वाद की ताकत से... जो भ्रम फैलाने वाले लोग हैं, जो राजनीति करने पर तुले हुए लोग हैं, जो किसानों के कंधे पर रखकर बंदूकें चला रहे हैं... देश के सारे जागरूक किसान, उनको भी परास्त करके रहेंगे.

किसान कानून वापस कराने पर अड़े

सिंधु बॉर्डर पर बुधवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता जगजीत डल्लेवाल ने कहा कि सरकार कह रही है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी. हम कह रहे हैं कि हम आपसे ऐसा करवाएंगे. उन्होंने कहा कि लड़ाई उस चरण में पहुंच गई है, जहां हम मामले को जीतने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम बातचीत से नहीं भाग रहे हैं लेकिन सरकार को हमारी मांगों पर ध्यान देना होगा और ठोस प्रस्ताव के साथ आना होगा. कई अन्य किसान नेताओं ने भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और लोगों से आह्वान किया कि 20 दिसंबर को उन किसानों को श्रद्धांजलि दें, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवा दी. किसान नेता ऋषिपाल ने कहा कि नवंबर के अंतिम हफ्ते में प्रदर्शन शुरू होने के बाद रोजाना औसतन एक किसान की मौत हुई है. कुछ दिन पहले ही भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि इस बार किसान झुकने वाले नहीं हैं. संशोधन से किसान मानने वाले नहीं हैं. सरकार को ये कानून वापस लेने ही होंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसान भी आंदोलन जारी रखेंगे. ऐसी ही राय लगभग सभी किसान नेताओं ने सरकार के साथ वार्ता के दौरान भी रखी. यही कारण है कि मामले में कोई समझौता नहीं हो पा रहा.

सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार

अब तक हुई किसान संगठनों से वार्ता में केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार देने को तैयार है. इसके साथ ही अगर किसान संगठन किसी अन्य ठोस बात पर नये कृषि कानूनों में संशोधन चाहते हैं तो सरकार इसके लिए भी तैयार है. सरकार ने किसान संगठनों से नये कृषि कानूनों में सुधार के लिए सुझाव देने की भी बात कही. खुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी किसान संगठनों से वार्ता की मगर किसान नेता कानून वापस कराने से कम पर आंदोलन वापस लेने पर राजी नहीं हो रहे हैं. सरकार किसान संगठनों से अब तक छह दौर की वार्ता कर चुकी है.

नक्सलियों के आंदोलन में शामिल होने का सरकार को शक

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने नाम लेकर बताया कि कैसे किसानों के कुछ नेताओं का माओवादियों से कनेक्शन हैं. एक टीवी चैनल से बात करते हुए संबित पात्रा ने कहा कि दर्शन पाल पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (पीडीएफआई) के संस्थापकों में से एक हैं. अभी जेल में बंद वामपंथी विचारक वरवरा राव इसके सह संस्थापकों में हैं. यूपीए सरकार ने इस संगठन को बैन कर दिया था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दर्शन पाल एक डॉक्टर थे, जिन्होंने कुछ साल पहले खेती का व्यवसाय चुना, लेकिन यह भी सच है कि दर्शन पाल एक माओवादी नेता भी हैं. वह पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (पीडीएफआई) के संस्थापक सदस्य हैं. माना जाता है कि यह संगठन माओवादियों को सहयोग करता है. दर्शनल पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन (केकेयू) के अध्यक्ष और ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं. वह लगातार किसान आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. इसी तरह से वामपंथी नेता हन्नान मुल्लाह भी लगातार सक्रिय हैं. किसान आंदोलन में लगातार राजनीतिक और देश विरोधी चेहरों के देखने के बाद और किसान संगठनों के कृषि कानूनों को समाप्त करने तक आंदोलन पर अड़े रहने के कारण ही सरकार को इसमें साजिश नहर आ रही है. खालिस्तान समर्थकों का इस किसान आंदोलन में योगदान भी किसी से छिपा नहीं है. यही कारण है कि सरकार और भाजपा अब खुलकर इस आंदोलन को साजिश बता रहे हैं.

एसोचैम का दावा, रोजाना हो रहा 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान

उद्योग मंडल एसोचैम ने मंगलवार को कहा कि किसानों के आंदोलन की वजह से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंच रही है. एसोचैम ने केंद्र और किसान संगठनों से नये कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को जल्द दूर करने का आग्रह किया है. उद्योग मंडल के मोटे-मोटे अनुमान के अनुसार किसानों के आंदोलन की वजह से रोजाना 3,000-3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. वहीं सोमवार को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की तरफ से व्यापार से जुड़े अलग-अलग संगठनों के साथ चर्चा के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया. इसमें ट्रांसपोर्टर, उपभोक्ता, लघु उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण व्यापार, कृषि उपकरण व्यापार समेत तमाम स्टेकहोल्डर शामिल हुए और किसानों के मुद्दों और केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों पर चर्चा की. इस दौरान कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने ईटीवी भारत को बताया पिछले करीब 20 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के चलते करीब 5000 करोड़ का व्यापार प्रभावित हुआ है. दिल्ली और आसपास के राज्यों में करीब 30 से 40 फीसदी तक व्यापार में गिरावट आई है.

आगे क्या होगा

देश भर के किसानों के अब तक किसान आंदोलन के नहीं जुड़ने के बाद भी केंद्र सरकार शक्ति प्रदर्शन से बच रही है. वह लगातार आंदोलनकारी किसानों को समझाने का प्रयास कर रही है. साथ ही पूरी सरकार और भाजपा नये कृषि कानूनों पर देश भर के किसानों को जागरूक कर रही है. सरकार को यह अच्छी तरह से पता है कि अगर किसी भी तरह का शक्ति प्रदर्शन आंदोलन को समाप्त करने के लिए किया गया तो आंदोलन गति पकड़ लेगा. यही कारण है कि केंद्र सरकार लगातार झुकने और बातचीत को तैयार दिख रही है. दिल्ली के आम लोग और व्यापारी भी धीरे-धीरे आंदोलन के खिलाफ होने लगे हैं. यह सरकार के पक्ष मे जा रहा है. साथ ही देश भर में यह संदेश जा रहा है कि सरकार तो कानून में संशोधन तक को तैयार है, मगर आंदोलनकारी किसान जिद पर अड़े हैं. मामले में सुप्रीम कोर्ट की एंट्री भी सरकार के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है. अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने की बात कही है, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो सके. अब जाहिर है आंदोलनकारी किसान संगठनों को वार्ता की टेबल पर आना होगा और ठोस बात सरकार से करनी होगी. कृषि कानूनों पर बिंदुवार बताना पड़ेगा कि आखिर किस बात पर आपत्ति है. इसके बाद अगर सरकार उन आपत्तियों का निराकरण कर देती है तो आंदोलन को उन्हें वापस लेना पड़ेगा.

हैदराबाद : नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच ठनी हुई है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब के किसान ही कर रहे हैं. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी कुछ संख्या में इसके खिलाफ हैं. हालांकि, पंजाब के किसानों की तरह देश के अन्य इलाकों के किसान उग्र नहीं हैं. वहीं सिंघु बॉर्डर पर धरना देते हुए किसानों को 21 दिन बीत चुके हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है.

कमेटी बनाने का अदालत से प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट में आज सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाए जाने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने किसान संगठनों का पक्ष सुनने की बात कही है. साथ ही सरकार से पूछा कि अब तक समझौता क्यों नहीं हुआ? अदालत की तरफ से किसान संगठनों को नोटिस दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द समझौता होना चाहिए. अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने की बात कही है, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो सके. अब इस मामले की सुनवाई कल होगी.

मोदी ने किसानों से जताया प्यार, आंदोलन पर नाराजगी

मंगलवार को गुजरात के कच्छ में कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आजकल दिल्ली के आसपास किसानों को भ्रमित करने की बड़ी साजिश चल रही है. उन्हें डराया जा रहा है कि कृषि सुधारों के बाद किसानों की जमीन पर कब्जा कर लिया जाएगा. हाल में हुए कृषि सुधारों की मांग वर्षों से की जा रही थी और अनेक किसान संगठन भी यह मांग करते थे कि किसानों को उनका अनाज कहीं पर भी बेचने का विकल्प दिया जाए.आज देश ने जब यह ऐतिहासिक कदम उठा लिया तो विपक्षी दल किसानों को भ्रमित करने में जुट गए हैं जबकि वे जब सत्ता में थे, तब ऐसे कृषि सुधारों की वकालत करते थे. मैं अपने किसान भाइयों बहनों को बार-बार दोहराता हूं कि उनकी हर शंका के समाधान के लिए सरकार 24 घंटे तैयार है. किसानों का हित पहले दिन से हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है. खेती में किसानों का खर्च कम हो, उनकी आय बढ़े और मुश्किलें कम हों, नये विकल्प मिलें, इसके लिए हमने निरंतर काम किया है. प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताते हुए कहा कि किसानों के आशीर्वाद की ताकत से... जो भ्रम फैलाने वाले लोग हैं, जो राजनीति करने पर तुले हुए लोग हैं, जो किसानों के कंधे पर रखकर बंदूकें चला रहे हैं... देश के सारे जागरूक किसान, उनको भी परास्त करके रहेंगे.

किसान कानून वापस कराने पर अड़े

सिंधु बॉर्डर पर बुधवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता जगजीत डल्लेवाल ने कहा कि सरकार कह रही है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी. हम कह रहे हैं कि हम आपसे ऐसा करवाएंगे. उन्होंने कहा कि लड़ाई उस चरण में पहुंच गई है, जहां हम मामले को जीतने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम बातचीत से नहीं भाग रहे हैं लेकिन सरकार को हमारी मांगों पर ध्यान देना होगा और ठोस प्रस्ताव के साथ आना होगा. कई अन्य किसान नेताओं ने भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और लोगों से आह्वान किया कि 20 दिसंबर को उन किसानों को श्रद्धांजलि दें, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवा दी. किसान नेता ऋषिपाल ने कहा कि नवंबर के अंतिम हफ्ते में प्रदर्शन शुरू होने के बाद रोजाना औसतन एक किसान की मौत हुई है. कुछ दिन पहले ही भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि इस बार किसान झुकने वाले नहीं हैं. संशोधन से किसान मानने वाले नहीं हैं. सरकार को ये कानून वापस लेने ही होंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसान भी आंदोलन जारी रखेंगे. ऐसी ही राय लगभग सभी किसान नेताओं ने सरकार के साथ वार्ता के दौरान भी रखी. यही कारण है कि मामले में कोई समझौता नहीं हो पा रहा.

सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार

अब तक हुई किसान संगठनों से वार्ता में केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार देने को तैयार है. इसके साथ ही अगर किसान संगठन किसी अन्य ठोस बात पर नये कृषि कानूनों में संशोधन चाहते हैं तो सरकार इसके लिए भी तैयार है. सरकार ने किसान संगठनों से नये कृषि कानूनों में सुधार के लिए सुझाव देने की भी बात कही. खुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी किसान संगठनों से वार्ता की मगर किसान नेता कानून वापस कराने से कम पर आंदोलन वापस लेने पर राजी नहीं हो रहे हैं. सरकार किसान संगठनों से अब तक छह दौर की वार्ता कर चुकी है.

नक्सलियों के आंदोलन में शामिल होने का सरकार को शक

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने नाम लेकर बताया कि कैसे किसानों के कुछ नेताओं का माओवादियों से कनेक्शन हैं. एक टीवी चैनल से बात करते हुए संबित पात्रा ने कहा कि दर्शन पाल पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (पीडीएफआई) के संस्थापकों में से एक हैं. अभी जेल में बंद वामपंथी विचारक वरवरा राव इसके सह संस्थापकों में हैं. यूपीए सरकार ने इस संगठन को बैन कर दिया था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दर्शन पाल एक डॉक्टर थे, जिन्होंने कुछ साल पहले खेती का व्यवसाय चुना, लेकिन यह भी सच है कि दर्शन पाल एक माओवादी नेता भी हैं. वह पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (पीडीएफआई) के संस्थापक सदस्य हैं. माना जाता है कि यह संगठन माओवादियों को सहयोग करता है. दर्शनल पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन (केकेयू) के अध्यक्ष और ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं. वह लगातार किसान आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. इसी तरह से वामपंथी नेता हन्नान मुल्लाह भी लगातार सक्रिय हैं. किसान आंदोलन में लगातार राजनीतिक और देश विरोधी चेहरों के देखने के बाद और किसान संगठनों के कृषि कानूनों को समाप्त करने तक आंदोलन पर अड़े रहने के कारण ही सरकार को इसमें साजिश नहर आ रही है. खालिस्तान समर्थकों का इस किसान आंदोलन में योगदान भी किसी से छिपा नहीं है. यही कारण है कि सरकार और भाजपा अब खुलकर इस आंदोलन को साजिश बता रहे हैं.

एसोचैम का दावा, रोजाना हो रहा 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान

उद्योग मंडल एसोचैम ने मंगलवार को कहा कि किसानों के आंदोलन की वजह से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंच रही है. एसोचैम ने केंद्र और किसान संगठनों से नये कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को जल्द दूर करने का आग्रह किया है. उद्योग मंडल के मोटे-मोटे अनुमान के अनुसार किसानों के आंदोलन की वजह से रोजाना 3,000-3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. वहीं सोमवार को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की तरफ से व्यापार से जुड़े अलग-अलग संगठनों के साथ चर्चा के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया. इसमें ट्रांसपोर्टर, उपभोक्ता, लघु उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण व्यापार, कृषि उपकरण व्यापार समेत तमाम स्टेकहोल्डर शामिल हुए और किसानों के मुद्दों और केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों पर चर्चा की. इस दौरान कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने ईटीवी भारत को बताया पिछले करीब 20 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के चलते करीब 5000 करोड़ का व्यापार प्रभावित हुआ है. दिल्ली और आसपास के राज्यों में करीब 30 से 40 फीसदी तक व्यापार में गिरावट आई है.

आगे क्या होगा

देश भर के किसानों के अब तक किसान आंदोलन के नहीं जुड़ने के बाद भी केंद्र सरकार शक्ति प्रदर्शन से बच रही है. वह लगातार आंदोलनकारी किसानों को समझाने का प्रयास कर रही है. साथ ही पूरी सरकार और भाजपा नये कृषि कानूनों पर देश भर के किसानों को जागरूक कर रही है. सरकार को यह अच्छी तरह से पता है कि अगर किसी भी तरह का शक्ति प्रदर्शन आंदोलन को समाप्त करने के लिए किया गया तो आंदोलन गति पकड़ लेगा. यही कारण है कि केंद्र सरकार लगातार झुकने और बातचीत को तैयार दिख रही है. दिल्ली के आम लोग और व्यापारी भी धीरे-धीरे आंदोलन के खिलाफ होने लगे हैं. यह सरकार के पक्ष मे जा रहा है. साथ ही देश भर में यह संदेश जा रहा है कि सरकार तो कानून में संशोधन तक को तैयार है, मगर आंदोलनकारी किसान जिद पर अड़े हैं. मामले में सुप्रीम कोर्ट की एंट्री भी सरकार के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है. अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने की बात कही है, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो सके. अब जाहिर है आंदोलनकारी किसान संगठनों को वार्ता की टेबल पर आना होगा और ठोस बात सरकार से करनी होगी. कृषि कानूनों पर बिंदुवार बताना पड़ेगा कि आखिर किस बात पर आपत्ति है. इसके बाद अगर सरकार उन आपत्तियों का निराकरण कर देती है तो आंदोलन को उन्हें वापस लेना पड़ेगा.

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