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विधि शासन सूचकांक से जुड़ी याचिका पर न्यायालय का विचार से इंकार

कानून के शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत की 'दयनीय' 69 वीं रैंकिंग है. इसको सुधारने के लिए, विशेषज्ञों की समितियां गठित करने के निर्देश की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी. उसपर न्यायालय ने कहा कि सरकार कानून का शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत के स्थान में सुधार के लिए आज से छह महीने के भीतर समितियां गठित करने का निर्णय ले सकती है.

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Published : Jun 19, 2020, 3:23 AM IST

supreme court directs govt on plea seeking improvement in law
उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली : दुनिया में कानून के शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत की 'दयनीय' 69 वीं रैंकिंग में सुधार के लिए केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विशेषज्ञों की समितियां गठित करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सुनवाई करने से इंकार कर दिया.

इस सूचकांक में दुनिया के 128 देशों को शामिल किया गया है. शासकीय खुलापन, मौलिक अधिकार, दीवानी और फौजदारी न्याय व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने जैसे कई बिन्दुओं के आधार पर कानून का शासन वाला सूचकांक तैयार किया गया है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान उनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कहा कि यह न्यायालय के लिए उचित मामला नहीं है. पीठ ने सिंह से कहा कि इस संबंध में उचित कार्रवाई के लिए वह सरकार को प्रतिवेदन दे सकते हैं.

पीठ ने कहा कि सरकार कानून का शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत के स्थान में सुधार के लिए आज से छह महीने के भीतर समितियां गठित करने का निर्णय ले सकती है.

अश्विनी उपाध्याय ने इस याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ही विधि आयोग, गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है.

याचिका में कहा गया कि एक स्वतंत्र संगठन 'वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट' द्वारा तैयार की गयी कानून का शासन सूचकांक-2020 में शामिल शीर्ष 20 देशों की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं का विशेषज्ञ समितियों को अध्ययन करना चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि वैकल्पिक उपाय के रूप में विधि आयोग को इस सूचकांक में शामिल शीर्ष 20.

नई दिल्ली : दुनिया में कानून के शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत की 'दयनीय' 69 वीं रैंकिंग में सुधार के लिए केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विशेषज्ञों की समितियां गठित करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सुनवाई करने से इंकार कर दिया.

इस सूचकांक में दुनिया के 128 देशों को शामिल किया गया है. शासकीय खुलापन, मौलिक अधिकार, दीवानी और फौजदारी न्याय व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने जैसे कई बिन्दुओं के आधार पर कानून का शासन वाला सूचकांक तैयार किया गया है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान उनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कहा कि यह न्यायालय के लिए उचित मामला नहीं है. पीठ ने सिंह से कहा कि इस संबंध में उचित कार्रवाई के लिए वह सरकार को प्रतिवेदन दे सकते हैं.

पीठ ने कहा कि सरकार कानून का शासन वाले देशों के सूचकांक में भारत के स्थान में सुधार के लिए आज से छह महीने के भीतर समितियां गठित करने का निर्णय ले सकती है.

अश्विनी उपाध्याय ने इस याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ही विधि आयोग, गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है.

याचिका में कहा गया कि एक स्वतंत्र संगठन 'वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट' द्वारा तैयार की गयी कानून का शासन सूचकांक-2020 में शामिल शीर्ष 20 देशों की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं का विशेषज्ञ समितियों को अध्ययन करना चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि वैकल्पिक उपाय के रूप में विधि आयोग को इस सूचकांक में शामिल शीर्ष 20.

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