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जानिए क्या है नेहरू-लियाकत समझौता और क्या था इसका उद्देश्य

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Published : Dec 13, 2019, 8:08 PM IST

8 अप्रैल 1950 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन पाक पीएम लियाकत अली खान के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता कहा जाता है. यह समझौता दोनों देशों के बीच छह दिनों तक चली लंबी बातचीत का नतीजा था और इसका लक्ष्य अपनी सीमाओं के भीतर मौजूद अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा और उनके अधिकार देना था.

नेहरू-लियाकत (फाइल फोटो)
नेहरू-लियाकत (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: संसद ने बहुचर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है. इस बिल को लेकर संसद के दोनों सदनों में तीखी बहस हुई. लेकिन बहस के केंद्र बिंदु में नेहरू-लियाकत समझौता ही रहा, जिसका उल्लेख गृह मंत्री अमित शाह ने अपने बयान में किया.

आखिर क्या है, नेहरू-लियाकत समझौता और क्यों अमित शाह ने इसका जिक्र नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान किया. दरअसल, 8 अप्रैल 1950 को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन पाक पीएम लियाकत अली खान के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता कहा जाता है. इसे दिल्ली समझौता भी कहा जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

यह समझौता दोनों देशों के बीच छह दिनों तक चली लंबी बातचीत का नतीजा था और इसका लक्ष्य अपनी सीमाओं के भीतर मौजूद अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा और उनके अधिकार देना था.

दरअसल, वर्ष1947 में हुए विभाजन के बाद भी लाखों शरणार्थियों का सीमा पार से आना-जाना था. पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश बन चुका है, पंजाब, सिंध और कई इलाकों से हिन्दू और सिख बड़ी तादाद में भारत आ रहे थे. वहीं

दूसरी ओर पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और भारत के दूसरे हिस्सों से मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. विभाजन के बाद से ही कई इलाकों में बड़े पैमाने पर दंगे हो रहे थे और बड़ी तादाद में हिन्दू-मुसलमान मारे जा रहे थे.

इस दौरान ऐसे भी ढेरों मामले सामने आ रहे थे, जिनमें अपना देश छोड़ चुके शरणार्थियों की जमीन-जायदाद पर कब्जा हो गया था या फिर उसे लूट लिया गया था. बालिकाओं-महिलाओं को अगवा कर लिया गया था, लोगों का जबरन धर्म-परिवर्तन करवाया गया था.

पढ़ें- अनुच्छेद 370 व CAB के बाद अब इन दो मुद्दों पर BJP की नजर, सुगबुगाहट शुरू!

ऐसी घटनाएं उन अल्पसंख्यकों के साथ भी हो रहीं थीं, जो विस्थापन के लिए तैयार नहीं थे. यानी पाकिस्तान के वो हिन्दू, जो भारत जाने को तैयार नहीं हुए या फिर वो मुस्लिम, जो भारत में ही रह गए थे. दोनों मुल्कों में मौजूद अल्पसंख्यक खौफ के माहौल में जी रहे थे. खौफ के साये में जी रहे इन अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार और सुरक्षा देने के लिए दोनों देशों के बीच नेहरू-लियाकत समझौता हुआ.

इस समझौते के तहत तय हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों के साथ हुए आचरण के लिए जिम्मेदार होंगे. शरणार्थियों के पास अपनी जमीन-जायदाद को बेचने या निबटाने के लिए वापस जाने का अधिकार होगा, जबरन कराए गए धर्म-परिवर्तन मान्य नहीं होंगे. इसके अलावा अगवा महिलाओं को वापस उनके नातेदारों-रिश्तेदारों के हवाले किया जाएगा. साथ ही दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे.

नई दिल्ली: संसद ने बहुचर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है. इस बिल को लेकर संसद के दोनों सदनों में तीखी बहस हुई. लेकिन बहस के केंद्र बिंदु में नेहरू-लियाकत समझौता ही रहा, जिसका उल्लेख गृह मंत्री अमित शाह ने अपने बयान में किया.

आखिर क्या है, नेहरू-लियाकत समझौता और क्यों अमित शाह ने इसका जिक्र नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान किया. दरअसल, 8 अप्रैल 1950 को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन पाक पीएम लियाकत अली खान के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता कहा जाता है. इसे दिल्ली समझौता भी कहा जाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

यह समझौता दोनों देशों के बीच छह दिनों तक चली लंबी बातचीत का नतीजा था और इसका लक्ष्य अपनी सीमाओं के भीतर मौजूद अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा और उनके अधिकार देना था.

दरअसल, वर्ष1947 में हुए विभाजन के बाद भी लाखों शरणार्थियों का सीमा पार से आना-जाना था. पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश बन चुका है, पंजाब, सिंध और कई इलाकों से हिन्दू और सिख बड़ी तादाद में भारत आ रहे थे. वहीं

दूसरी ओर पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और भारत के दूसरे हिस्सों से मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. विभाजन के बाद से ही कई इलाकों में बड़े पैमाने पर दंगे हो रहे थे और बड़ी तादाद में हिन्दू-मुसलमान मारे जा रहे थे.

इस दौरान ऐसे भी ढेरों मामले सामने आ रहे थे, जिनमें अपना देश छोड़ चुके शरणार्थियों की जमीन-जायदाद पर कब्जा हो गया था या फिर उसे लूट लिया गया था. बालिकाओं-महिलाओं को अगवा कर लिया गया था, लोगों का जबरन धर्म-परिवर्तन करवाया गया था.

पढ़ें- अनुच्छेद 370 व CAB के बाद अब इन दो मुद्दों पर BJP की नजर, सुगबुगाहट शुरू!

ऐसी घटनाएं उन अल्पसंख्यकों के साथ भी हो रहीं थीं, जो विस्थापन के लिए तैयार नहीं थे. यानी पाकिस्तान के वो हिन्दू, जो भारत जाने को तैयार नहीं हुए या फिर वो मुस्लिम, जो भारत में ही रह गए थे. दोनों मुल्कों में मौजूद अल्पसंख्यक खौफ के माहौल में जी रहे थे. खौफ के साये में जी रहे इन अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार और सुरक्षा देने के लिए दोनों देशों के बीच नेहरू-लियाकत समझौता हुआ.

इस समझौते के तहत तय हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों के साथ हुए आचरण के लिए जिम्मेदार होंगे. शरणार्थियों के पास अपनी जमीन-जायदाद को बेचने या निबटाने के लिए वापस जाने का अधिकार होगा, जबरन कराए गए धर्म-परिवर्तन मान्य नहीं होंगे. इसके अलावा अगवा महिलाओं को वापस उनके नातेदारों-रिश्तेदारों के हवाले किया जाएगा. साथ ही दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे.

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