पालमपुर: ये वीर किस मिट्टी के बने होते हैं...जान दूसरे की खतरे में होती है और प्राण अपने दांव पर लगा देते हैं. आज हम ऐसे ही एक वीर की कहानी लेकर आए हैं जिसे हर उस व्यक्ति को जानना जरूरी है जिसे भारतीय होने और भारतीय सेना पर गर्व है. हम यहां आपको युद्धभूमि में अदम्य साहस का परिचय देने वाले उस शख्स की कहानी बताएंगे जिसने खुद की जान को इस देश के लिए कुर्बान कर दिया...उस वीर का नाम है मेजर सुधीर कुमार वालिया.
मेजर सुधीर कुमार वालिया का जन्म 24 मई 1971 को हिमाचल के पालमपुर के बनूरी गांव में हुआ था. मेजर सुधीर वालिया 11 जून 1988 को 3 जाट रेजिमेंट में शामिल हुए. वालिया दिसंबर 1997 से जून 1999 तक तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक के अंगरक्षक भी रहे.
अब बात करेंगे मेजर सुधीर कुमार वालिया की शहादत की. 1999 को जब भारत और पाकिस्तान के साथ टकराव बढ़ता जा रहा था तो 29 अगस्त 1999 की सुबह को वीर जवान मेजर सुधीर कुमार वालिया पांच जवानों के एक दस्ते को लेकर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हफूरदा जंगल की घनी झाड़ियों की ओर बढ़े. जल्दी ही उन्हें आतंकवादियों की आवाजें सुनाई देने लगी, लेकिन वे उन्हें नजर नहीं आ रहे थे. मेजर सुधीर कुमार अपने एक साथी के साथ रेंगते हुए ऊंचे स्थान की ओर बढ़े. जब वे पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्हें केवल चार मीटर की दूरी पर खड़े दो सशस्त्र आतंकवादी और नीचे 15 मीटर की गहराई पर आतंकवादियों का एक बड़ा दल और बंद ठिकाना नजर आया.
मेजर सुधीर कुमार ने तुरंत एक नजदीकी आतंकी पर गोली चला कर उसको मार गिराया और दूसरे आतंकी पर हमला कर दिया, लेकिन वह कूद कर अपने ठिकाने में जा घुसा....... मेजर सुधीर कुमार ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने साथी सैनिक द्वारा की जा रही गोलीबारी की आड़ लेकर आतंकवादियों के ठिकाने पर धावा बोल दिया. उस ठिकाने के अंदर मौजूद लगभग 20 आतंकी मेजर सुधीर कुमार अकेले ही उनके साथ गुत्थमगुत्था हो गए और मात्र दो मीटर की दूरी से उनपर गोलीबारी कर चार आतंकवादियों को मार गिराया.
गंभीर घायल होने के कारण चल पाने में असमर्थ होने के बावजूद मेजर सुधीर कुमार ने अपने सभी कमांडरों और आसपास तैनात टुकड़ियों से रेडियो सेट पर संपर्क करते हुए उन्हें निर्देश दिए कि वे डटे रहें और बाकी बचे आतंकवादियों को भागने का मौका ना दिया जाए. इस भीषण मुठभेड़ में उनके चेहरे, सीने और बाहों में कई गोलियां लग गई और काफी ज्यादा खून बह जाने के कारण वे उस ठिकाने के द्वार पर गिर पड़े और अपना रेडियो सेट थामे हुए ही मेजर सुधीर कुमार वीरगति को प्राप्त हुए.
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मेजर सुधीर कुमार ने अति उत्कृष्ट वीरता, साहस और अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की उच्चतम परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. 26 जनवरी 2000 को उन्हें भारत के महामहिम राष्ट्रपति के आर नारायणन द्वारा शांतिकालीन सर्वाोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया. यह सम्मान उनके पिता रिटायर्ड सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया ने ग्रहण किया.