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गांव है, पर आबादी नहीं...कश्मीरी पंडितों की दर्दनाक व्यथा

कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हमेशा एक ज्वलंत मुद्दा रहा है. जम्मू के दक्षिण शोपियां जिले में स्थित नाडीमर्ग गांव में हुए नरसंहार के बाद आज यहां घर तो हैं, लेकिन कोई भी बाशिंदा नहीं. एक ऐसा गांव जो बिना आबादी का है.

नाडीमर्ग में तैनात भारतीय सेना का जवान
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Published : Mar 26, 2019, 7:43 PM IST

Updated : Mar 26, 2019, 8:51 PM IST

श्रीनगर: धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में आतंकियों के हौसले भले ही पस्त हों, लेकिन अब भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. ये सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है. इसका असर कई बस्तियों पर पड़ा है. सबसे ज्यादा प्रभावित कश्मीरी पंडित हुए हैं. लाखों की संख्या में वे वहां से विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिए गए. ऐसा ही एक गांव है नाडीमर्ग. यहां गांव तो है, लेकिन कोई आबादी नहीं बसती है.

नाडीमर्ग गांव के बारे में जानकारी देते ईटीवी भारत के संवाददाता


नाडीमर्ग जम्मू के दक्षिण शोपियां जिले में पड़ता है. 2003 तक यहां आबादी रहती थी. लेकिन फिर अचानक ही सबकुछ बिखर गया. आतंकियों ने पंडितों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
नाडीमर्ग गांव के घरों का हाल (साभार-गेटी इमेज)


आपको बता दें कि नाडी मर्ग गांव इकलौता ऐसा गांव था, जहां पूरी आबादी पंडितों की हुआ करती थी. यहां कोई मुसलमान नहीं था. गांव वाले मुस्लिमों से कभी खौफजदा भी नहीं थे. लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ, जिसने पूरी सोच बदल दी.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
सभी घरों में पसरा है सन्नाटा (साभार-गेटी इमेज)

2003 में 23 और 24 मार्च की शाम को कुछ लोग फौज की वर्दी में आए और वहां पर कोहराम मचा दिया. गांव में रहने वाले 24 पंडितों की हत्या कर दी. इनमें 11 पुरुष, 11 महिलाएं और दो बच्चे शामिल थे.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
नाडीमर्ग के कश्मीरी पंडितों का इंतजार पुराने ग्रामीणों की फोटो (साभार-गेटी इमेज)

इस हमले के बाद वहां के पंडितों ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. और धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता चला गया. वहां के पंडित कश्मीर छोड़ने लगे.

आज भी जब आप इस गांव आएंगे, तो उनके घर यूं ही पड़े हैं. दीवारें पुरानी हो गई हैं. कुछ ढह गए हैं. कुछ जगह आपको खंडहर भी मिल जाएंगे. मंदिर भी वैसा ही दिखता है. पर, इसकी रखवाली करने वाला कोई नहीं है.यहां के स्कूलों में बच्चे मिल जाएंगे, लेकिन वहां पर कोई भी पंडित नहीं है.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
गांव में सैनिकों की तैनाती है (साभार-गेटी इमेज)

पास में ही एक अन्य गांव है. हंसाया गांव. यहां के लोग मानते हैं कि पंडितों के रहने से यहां रौनक थी. उन दिनों दोनों धर्मो के लोग आपस में एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देते थे. उनके मुताबिक नाडीमर्ग के पंडित आस पास के सभी जमीनदारों की मदद करते थे.

क्यों शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नरसंहार
1986 में विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में गुलाम मुहम्मद शाह की सरकार बनी. उसके पहले फारूख अब्दुल्ला की सरकार थी. थोड़े ही दिनों बाद शाह की सरकार विवादों में आ गई. कहा जाता है कि एक इलाके में उनकी सरकार ने मस्जिद बनवाने का फैसला किया. वहां पर पहले से मंदिर था. इसे लेकर तनाव उत्पन्न हो गया. दूसरा बड़ा कारण था, कश्मीर में मुजाहिदीन का सक्रिय होना. ये लोग अफगानिस्तान में रूसी ताकत के खिलाफ काम कर रहे थे.

इन लोगों ने पंडितों पर हमले शुरू कर दिए. इस्लाम खतरे में है, ऐसा नारा लगाना शुरू कर दिया. राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था का हवाला देकर तत्कालीन गवर्नर जगमोहन ने शाह की सरकार बर्खास्त कर दी. इसके बाद राज्य के हालात और ज्यादा बदतर हो गए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 में भाजपा नेता टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई थी. इसे पंडितों की पहली हत्या मानी गई. इसके बाद तो जैसे वहां का पूरा माहौल खराब हो गया. इसी साल नीलकंठ गंजू की हत्या हुई. गंजू सेवानिवृत न्यायाधीश थे. उन्होंने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को सजा सुनाई थी. उसे मौत की सजा दी गई थी. इस मामले में शामिल वकील की भी हत्या कर दी गई.

अगले साल 1990 में भी कश्मीरी पंडितों की हत्या जारी रही. जहां पंडित रहते थे, उन्हें बार-बार निशाना बनाया जाता रहा. इस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी. सरकार पर आरोप लगता रहा कि उसने कई कट्टरपंथियों को जेल से रिहा कर दिया. ये सब किसी न किसी जुर्म के आरोप में जेल में थे.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक आतंकी बिट्टा कराटे ने 20 लोगों को मारा था. 1997, 1998 और 2003 में भी नरसंहार हुए.

तकरीबन चार लाख कश्मीरी विस्थापित हुए थे. मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों को दोबारा बसाने के लिए पैकेज की घोषणा की, लेकिन कुछ भी नहीं हो सका.

श्रीनगर: धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में आतंकियों के हौसले भले ही पस्त हों, लेकिन अब भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. ये सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है. इसका असर कई बस्तियों पर पड़ा है. सबसे ज्यादा प्रभावित कश्मीरी पंडित हुए हैं. लाखों की संख्या में वे वहां से विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिए गए. ऐसा ही एक गांव है नाडीमर्ग. यहां गांव तो है, लेकिन कोई आबादी नहीं बसती है.

नाडीमर्ग गांव के बारे में जानकारी देते ईटीवी भारत के संवाददाता


नाडीमर्ग जम्मू के दक्षिण शोपियां जिले में पड़ता है. 2003 तक यहां आबादी रहती थी. लेकिन फिर अचानक ही सबकुछ बिखर गया. आतंकियों ने पंडितों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
नाडीमर्ग गांव के घरों का हाल (साभार-गेटी इमेज)


आपको बता दें कि नाडी मर्ग गांव इकलौता ऐसा गांव था, जहां पूरी आबादी पंडितों की हुआ करती थी. यहां कोई मुसलमान नहीं था. गांव वाले मुस्लिमों से कभी खौफजदा भी नहीं थे. लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ, जिसने पूरी सोच बदल दी.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
सभी घरों में पसरा है सन्नाटा (साभार-गेटी इमेज)

2003 में 23 और 24 मार्च की शाम को कुछ लोग फौज की वर्दी में आए और वहां पर कोहराम मचा दिया. गांव में रहने वाले 24 पंडितों की हत्या कर दी. इनमें 11 पुरुष, 11 महिलाएं और दो बच्चे शामिल थे.

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नाडीमर्ग के कश्मीरी पंडितों का इंतजार पुराने ग्रामीणों की फोटो (साभार-गेटी इमेज)

इस हमले के बाद वहां के पंडितों ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. और धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता चला गया. वहां के पंडित कश्मीर छोड़ने लगे.

आज भी जब आप इस गांव आएंगे, तो उनके घर यूं ही पड़े हैं. दीवारें पुरानी हो गई हैं. कुछ ढह गए हैं. कुछ जगह आपको खंडहर भी मिल जाएंगे. मंदिर भी वैसा ही दिखता है. पर, इसकी रखवाली करने वाला कोई नहीं है.यहां के स्कूलों में बच्चे मिल जाएंगे, लेकिन वहां पर कोई भी पंडित नहीं है.

nadimarg village jammu kashmir etv bharat
गांव में सैनिकों की तैनाती है (साभार-गेटी इमेज)

पास में ही एक अन्य गांव है. हंसाया गांव. यहां के लोग मानते हैं कि पंडितों के रहने से यहां रौनक थी. उन दिनों दोनों धर्मो के लोग आपस में एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देते थे. उनके मुताबिक नाडीमर्ग के पंडित आस पास के सभी जमीनदारों की मदद करते थे.

क्यों शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नरसंहार
1986 में विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में गुलाम मुहम्मद शाह की सरकार बनी. उसके पहले फारूख अब्दुल्ला की सरकार थी. थोड़े ही दिनों बाद शाह की सरकार विवादों में आ गई. कहा जाता है कि एक इलाके में उनकी सरकार ने मस्जिद बनवाने का फैसला किया. वहां पर पहले से मंदिर था. इसे लेकर तनाव उत्पन्न हो गया. दूसरा बड़ा कारण था, कश्मीर में मुजाहिदीन का सक्रिय होना. ये लोग अफगानिस्तान में रूसी ताकत के खिलाफ काम कर रहे थे.

इन लोगों ने पंडितों पर हमले शुरू कर दिए. इस्लाम खतरे में है, ऐसा नारा लगाना शुरू कर दिया. राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था का हवाला देकर तत्कालीन गवर्नर जगमोहन ने शाह की सरकार बर्खास्त कर दी. इसके बाद राज्य के हालात और ज्यादा बदतर हो गए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 में भाजपा नेता टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई थी. इसे पंडितों की पहली हत्या मानी गई. इसके बाद तो जैसे वहां का पूरा माहौल खराब हो गया. इसी साल नीलकंठ गंजू की हत्या हुई. गंजू सेवानिवृत न्यायाधीश थे. उन्होंने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को सजा सुनाई थी. उसे मौत की सजा दी गई थी. इस मामले में शामिल वकील की भी हत्या कर दी गई.

अगले साल 1990 में भी कश्मीरी पंडितों की हत्या जारी रही. जहां पंडित रहते थे, उन्हें बार-बार निशाना बनाया जाता रहा. इस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी. सरकार पर आरोप लगता रहा कि उसने कई कट्टरपंथियों को जेल से रिहा कर दिया. ये सब किसी न किसी जुर्म के आरोप में जेल में थे.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक आतंकी बिट्टा कराटे ने 20 लोगों को मारा था. 1997, 1998 और 2003 में भी नरसंहार हुए.

तकरीबन चार लाख कश्मीरी विस्थापित हुए थे. मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों को दोबारा बसाने के लिए पैकेज की घोषणा की, लेकिन कुछ भी नहीं हो सका.

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Last Updated : Mar 26, 2019, 8:51 PM IST
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