शिमला : नवरात्रि के विशेष अवसर पर आज हम आपको मां के एक ऐसे रूप के बारे में बताएंगे जो ना सिर्फ गरीबों के लिए धन, सोना, चांदी दान करती हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र में उनका अपना कानून है. इतना ही नहीं माता क्षेत्र के विकास के लिए खर्च भी उठाती हैं. जो कार्य प्रशासन नहीं कर पाता वह माता के दरबार में होता है.
हिमाचल प्रदेश का जनजातीय जिला किन्नौर अपनी संस्कृति व देव आस्था के लिए अपनी अलग पहचान बनाता है. यहां के अपने स्थानीय कानून हैं जो पूरे भारतवर्ष से अलग हैं. यहां अभी भी कई कानून देव समाज के लागू होते हैं.
आज हम बात करेंगे देवी चंडिका की जिन्हें साइराग की मालकिन भी कहा जाता है. साइराग में कल्पा, कोठी, दुंनी, युवारीनगी, बरेलेंगी, ख्वांगी, शुदारनग, रोघी, पांगी, तेलंगी, कश्मीर, दाखो आदि गांव जिसमें जिला मुख्यालय रिकांगपिओ भी शामिल हैं. इन सबकी ईष्ट देवी चंडिका हैं. इन सभी गांवों में अन्य स्थानीय देवी देवता भी हैं, लेकिन देवी मां इन सब पर अपना कानून लागू करती हैं.
पूरे साइराग में देवी चंडिका का अपना कानून चलता है, फिर चाहे गांव हो या प्रशासन सबको इनका आदेश सुनना पड़ता है. कहा जाता है माता आदि शक्ति दुर्गा का रूप है, जिनका रथ मंदिर के अंदर रहता है. आस्था का प्रतीक देवी चंडिका माता जिनका भव्य मंदिर जिला मुख्यालय रिकांगपिओ के साथ सटे हुए कोठी गांव में स्थित है.
सोने से बनी हैं देवी चंडिका के रथ की सभी मूर्तियां
देवी चंडिका के रथ में सभी मूर्तियां सोने से बनी हुई हैं. जब कोई बड़ा पर्व होता है तो देवी चंडिका माता अपने रथ पर मंदिर प्रांगण में निकलती हैं. वहीं, देवी चंडिका के साथ माता काली का रथ भी होता है. इस दौरान लोग अपने घरेलू झगड़े, कोर्ट कचहरी में जाने वाले मामलों जिनका निवारण नहीं हुआ हो, उन सभी विवादों का निपटारा करवाने मंदिर आते हैं. इन सभी समस्याओं का निवारण देवी चंडिका करती हैं.
इस इलाके में आज भी देव समाज के कानून लागू हैं. देवी के हर निर्णय को अंतिम निर्णय माना जाता है. जिला किन्नौर की सबसे अमीर व सबसे शक्तिशाली देवियों में इनका नाम शुमार है. देवी चंडिका अपने नियमों और कानूनों को सख्ती से लागू करने के लिए जानी जाती हैं.
जिला मुख्यालय रिकांगपिओ में जो कार्य प्रशासन के बस से बाहर होता हैं, उन्हें देवी चंडिका पूरा करती हैं. यही नहीं देवी अपने खर्चे पर गरीबों में अनाज, धन, सोना, चांदी बांटती हैं. घरेलू हों या फिर बड़े झगड़े लोग न्याय के लिए माता के दरबार पहुंचते हैं.
धंसते रिकांगपिओ को चंडिका माता ने बचाया
कहा जाता है कि एक बार रिकांगपिओ धंसने लगा था तो माता की पूजा करके तबाही को रोका गया था. बताते चले कि देवी चंडिका अपनी शक्तियों के साथ-साथ प्रशासन की ओर से अनदेखा किए गए कार्यों को स्वयं पूरा करवाती हैं. इसके प्रमाण जिला मुख्यालय के कई इलाकों में है.
कोठी गांव में कई वर्षों से सड़क सुविधा नहीं थी. प्रशासन भी सड़क खोलने के लिए कई कारणों से अपने हाथ पीछे कर चुका था. ऐसे में कोठी के लोगों ने देवी चंडिका के समक्ष इस बात को रखा तो देवी ने स्वयं रथ पर निकलकर विभाग को बुलाकर सड़क निर्माण करवाया.
वहीं, कोठी गांव में स्कूल में बारहवीं कक्षा तक ना भवन था ना ही प्रशासन स्कूल में बारहवीं कक्षा देने को तैयार था. ऐसे में देवी चंडिका ने वहां भी स्वयं जाकर अपने खजाने से धनराशि देकर और स्कूल का भवन बनाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को बुलाकर भवन निर्माण के आदेश दिए. माता के खजाने से भवन निर्माण व सीसीटीवी कैमरों के लिए धनराशि दी थी.
रिकांगपिओ में व्यापारियों से लेकर सभी विभाग देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते और देवी चंडिका ने कई व्यापारियों को तो अपनी भूमि व्यापार के लिए दे रखी है. बता दें कि कभी भी इस इलाके में अकाल पड़े तो राशन भंडार से अनाज देकर देवी लोगों का पेट भरती हैं. देवी ने कई गरीबों में लाखों के सोने व चांदी के आभूषण भी दिए हैं और कई गरीबों को पेंशन भी देती रही हैं.
जिला प्रशासन की भी मंदिर में लगती है पेशी
देवी पूरे साइराग का सालभर में कम से कम तीन से चार बार इलाके का निरीक्षण भी करती हैं. यदि कहीं भी गड़बड़ी दिखी तो प्रशासन के अधिकारियों से लेकर स्थानीय लोगों की कोर्ट की तरह पेशी लगती है और उसी वक्त सजा भी सुनवाई जाती है. लोगों की आस्था है कि आज तक जिस किसी ने भी कोठी मंदिर में दर्शन के बाद जो भी इच्छा प्रकट की है वह पूरी हुई है.
पूरे साइराग में देवी चंडिका के आदेश के बिना कोई शादी नहीं होती. यहां तक कि प्रशासन भी राज्य स्तरीय किन्नौर महोत्सव मनाने के लिए देवी की इजाजत लेता है और देवी चंडिका इस मेले के लिए भी कई लाखों की धनराशि प्रशासन को देती हैं. देवी के आदेश के खिलाफ अगर कोई भी साइराग में अपनी मर्जी से कुछ भी करता है तो उसे देवी चंडिका के प्रांगण में सजा सुनाई जाती है.
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मंदिर में बिना टोपी और गाची के जाना वर्जित
बुजुर्ग बताते हैं कि देवी चंडिका के फैसलों से आज तक सभी को फायदा हुआ है और साइराग में देवी के कानून से बाहर कोई काम नहीं करता है. देवी चंडिका मन्दिर में सैकड़ों भक्त प्रदेश व देश से आते हैं. कई बार देवी खुश होती है तो बाहर से आए व्यक्तियों को भी दान देती हैं. मंदिर में बिना टोपी और गाची के जाना वर्जित है. देवी मां के कारदार भी देवी के कानून के हिसाब से पूरे वर्दी और नियमानुसार ही मंदिर में प्रवेश करते हैं.
जब देवी मां का रथ मंदिर प्रांगण में निकलता है तो कोई शोर नहीं होता. महिलाओं व पुरूषों को पूरे वेशभूषा में मंदिर आकर देवी के समक्ष हाजिरी देनी पड़ती है. देवी के मंदिर में सभी को नौकरी करनी पड़ती है. अगर कोई भी ग्रामीण मंदिर नहीं आया और अपनी ड्यूटी नहीं की तो मंदिर में देवी माता के समक्ष जुर्माना भी लगता है.