हैदराबाद : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. हम हमेशा से ही इंसानों के साथ छोटे या बड़े समूहों में रहते आए हैं और यही हमारा स्वभाव है. लेकिन आज समय बदल गया है. अब हम एक ऐसे समय में रहते हैं, जहां वहीं मानव टेक्नोलॉजी की दुनिया में घूमने लगा है और इस नए कोरोना वायरस ने आज हमें इसकी सच्चाई से परिचित करा दिया. इसने हमें दिखा दिया है कि हम चाहे कितना आगे क्यों न बढ़ जाएं लेकिन अंत में सब कुछ प्रकृति के ही नियंत्रण में है. इसने हमें बताया है कि यदि प्रकृति चाहे तो हमें अपने घुटनों पर लाकर खड़ा कर सकती है.
हम इंसान हमेशा मजबूत सामाजिक बंधनों को बनाए रखने की अपनी क्षमता पर गर्व करते रहे हैं. हमें हमेशा अपने भाईचारे पर गर्व रहा है, लेकिन कोविड-19 ने हमसे यह सब भी छीन लिया है और आज हम वर्चुअल वर्ल्ड के और करीब होते जा रहे हैं.
आज लोग उत्साह के साथ सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. सोशल मीडिया भी न सिर्फ लोगों को जोड़ने के लिए एक पुल के रूप में काम कर रहा है, बल्कि यह लोगों तक जानकारी पहुंचाने के लिए भी मुख्य स्रोत का काम कर रहा है.
हालांकि, सोशल मीडिया कंपनियां गलत सूचना के प्रसार पर अंकुश लगाने में अपनी विफलता के लिए हमेशा सवालों के घेरे में रही हैं, लेकिन इस बार असफलता को कोई विकल्प नहीं है.
महामारी न केवल इन कंपनियों के लिए एक चुनौती के रूप में उभरी है, बल्कि उनके लिए अतीत की गलतियों को ठीक करने का भी एक तरीका है. हालांकि, कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाले के बाद से सोशल मीडिया ने लाखों लोगों का विश्वास खो दिया है.
इसके बाद से फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे अन्य सोशल मीडिया के दिग्गजों ने गलत सूचना के प्रवाह को रोकने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं. लेकिन इतना काफी नहीं है.
सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफार्म से किस कंटेंट को बढ़ावा देना है, उसे डिमोट, प्रोमोट या फिर ब्लॉक भी कर सकती हैं. फेसबुक के अनुसार, औसत उपयोगकर्ता अपने न्यूज फीड का केवल 10% देखता है और प्लेटफार्म यह निर्धारित करते हैं कि उपयोगकर्ता क्या देखते हैं.
इसका मतलब यह है कि पोस्ट को डिमोट करना और बढ़ावा देना उतना ही आवश्यक हो सकता है, जितना कि उन्हें रोकना. अब किसी भी पोस्ट को ब्लॉक करना भी मुश्किल साबित हो सकता है क्योंकि यह भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के खिलाफ माना जाता है.
फेसबुक जैसी कंपनी गलत सूचना के प्रवाह को रोकती है. इतना ही नहीं वह इंस्टाग्राम पर भी गलत सूचना और हैशटैग को ब्लॉक करती है. वहीं दूसरी ओर ट्विटर और यूट्यूब गलत सूचना के प्रवाह को रोकने में उतने सक्षम साबित नहीं नजर आते हैं.
हालांकि, कोरोना को लेकर ट्विटर का कहना है कि वह भी गलत सूचना को फैलने से रोकता है. ट्विटर के ट्रस्ट और सुरक्षा के उपाध्यक्ष डेल हार्वे ने कहा कि वह गलत सूचना देने वोले पोस्ट को शेयर होने से रोकते हैं.
वहीं यूट्यूब का भी कहना है कि वह गलत जानकारी देने वाले वीडियो को हटाते हैं. जबकि अपने इन कथनों के लिए कोई भी कंपनी किसी तरह के ठोस तथ्य इस बात की जांच के दौरान पेश नहीं कर सकी.
तीनों ही प्लेटफॉर्म गलत सूचना के प्रवाह को रोकने का दावा करते हैं, जबकि जमीनी हकीकत में ऐसा कुछ सामने नहीं आया और खासकर ट्विटर इस बात को साबित करने में असफल रहा.
आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल खड़े करना भी समस्या पैदा कर सकता है. उदाहरण के लिए, @realDonaldTrump को अमेरिका के राष्ट्रपति होने के नाते एक आधिकारिक व्यक्ति कहा जा सकता है, लेकिन पोट्स (POTUS) खुद गलत सूचना ट्वीट करता है.
वहीं कई अन्य प्रभावशाली व्यक्तित्व जो सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं, वह भी गलत सूचना प्रसारित कर देते हैं. जैसे टेस्ला और स्पेसएक्स (Tesla and SpaceX) के संस्थापक एलोन मस्क (Elon Musk) ने ट्वीट कर कोरोनो वायरस के बारे में गलत सूचना ट्वीट की, जिसे उनके 32 मिलियन फॉलोअर्स ने देखा. हद तो तब हो गई जब ट्विटर ने भी उनके ट्वीट को हटाने से मना कर दिया.
एपोनिमस सिक्योरिटी सॉल्यूशन कंपनी (eponymous security solutions company) के संस्थापक जॉन मैक्एफी (John McAfee) ने भी कोरोना वायरस के बारे में गलत दावा किया था. हालांकि, उस ट्वीट को हटा दिया गया था लेकिन इससे पहले ही उनका यह ट्वीट व्यापक स्तर पर साझा किया जा चुका था.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता के अनुभव को ध्यान में रखते हुए, उन्हें आकर्षित करने लिए बनाए जाते हैं. ऐसे में कोविड-19 महामारी के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को सही सूचना जारी करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
फेसबुक उपयोगकर्ताओं के लिए निजी संदेश भेजना आज तेजी से बढ़ रहा है. लोग इसके जरिए कोरोना से संबंधित गलत सूचनाओं को भी साझा कर सकते हैं. वह अपने दोस्तों, परिवार, सहकर्मियों औऱ अन्य लोगों से गलत जानकारी साझा कर सकते हैं.
व्हाट्सएप पर भी लोग आज बड़ी संख्या में एक दूसरे के साथ गलत जानकारी साझा कर रहे हैं और एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की वजह से इसकी निगरानी करना भी मुश्किल है. ट्विटर को इन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए और किसी भी तरह की गलत सूचना पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए.
यूट्यूब ने इसके लिए एक अलग ही विक्लप खोजा है. वह किसी भी भ्रामक कोरोना वायरस सामग्री के साथ रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र या विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे विश्वसनीय स्रोत के लिंक साझा करता है लेकिन देखने वाले के लिए इससे ये भ्रम पैदा होता है कि इन संस्थानों द्वारा परखा गया है.
दूसरी ओर, प्रकोप से संबंधित उत्पादों की पेशकश करने वाले विज्ञापनों पर भी रोक लगानी चाहिए. फेसबुक ने मेडिकल फेस मास्क के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया है.
सोशल मीडिया कोरोना वायरस के रोग के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक स्रोत हो सकता है. ऐसे में यह जरूरी है कि इससे संबंधित सही सूचना का प्रसार किया जाए. सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस पर विचार करना चाहिए.
आज कोरोना वायरस महामारी पूरी दुनिया में फैल रही है. लाखों की संख्या में लोग इससे संक्रमित हैं और इस बीमारी ने हजारों की संख्या में लोगों की जान ले ली है.