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संकट में लघु उद्योग, केंद्र सरकार से भी नहीं  मिल रही मदद

केंद्र सरकार ने तीन महीने पहले घोषणा की थी कि पैकेज के तहत 3 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त ऋण संवितरण योजना से 45 लाख इकाइयों को मदद मिलेगी. लेकिन इस घोषणा के बाद भी उद्योगों की किस्मत नहीं बदल सकी. यही नहीं बैकों ने वसूली भी शुरू कर दी है, जिससे उद्यमी काफी परेशान हैं.

MSMEs
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Published : Aug 25, 2020, 7:53 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस से बचने के लिए लागू लॉकडाउन की वजह से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की हालत खराब है और एक तिहाई एमएसएमई बंद होने के कगार पर हैं. कोरोना की सबसे बड़ी मार लघु उद्योगों पर पड़ी है. लघु उद्योगों में देश के लगभग 12 करोड़ लोगों को नौकरियां मिलने क्षमता है. हालांकि आर्थिक मंदी पहले से ही खराब है और अब कोरोना ने गहरे संकट में डाल दिया है.

लॉकडाउन के कारण और व्यापार के संकट से त्रस्त सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को केंद्र सरकार के 'आत्मानिहार पैकेज' से बहुत उम्मीदें थीं. सरकार ने तीन महीने पहले घोषणा की थी कि पैकेज के तहत 3 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त ऋण संवितरण योजना से 45 लाख इकाइयों को मदद मिलेगी. लेकिन इस घोषणा से उनकी किस्मत नहीं बदल सकी. रिज़र्व बैंक द्वारा संकलित नवीनतम आंकड़ों में लघु उद्योग की दुर्दशा भी स्पष्ट है, जिन्होंने पिछले साल पुष्टि की है कि जमा राशि उपलब्धता का संकट लघु और माध्यम उद्योगों को आज भी सता रहा है.

बैंक कर रहे वसूली

लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, पिछले साल की तुलना में ऋण संवितरण में 17% की कमी आई है. नियमित रखरखाव के लिए धन की कमी, पुराने ऋणों पर ब्याज के बढ़ते बोझ और कुशल श्रम और कच्चे माल की कमी छोटे उद्यमों को परेशानी में दाल दिया है. वर्तमान संकट के मद्देनज़र, केंद्र ने घोषणा की थी और सक्रिय रूप से पुनर्भुगतान सुविधा के साथ मामूली ब्याज दर पर कम से कम दस साल के लिए एक उदारीकृत ऋण योजना को सक्रिय रूप से लागू किया गया, उनमें से अधिकांश अब तक वापस आ गये होंगे. वास्तव में, ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि बैंक छोटे उद्यमों से 9-14 प्रतिशत की ब्याज दर वसूल रहे हैं.

रिजर्व बैंक ऋण वितरण में गिरावट के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे समय में जब छोटे उद्यमों को समर्थन मिलना ही चाहिए जो राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि में बड़ा योगदान देते हैं, इसके बजाये उनपर भारी ब्याज दरों का बोझ दाल देना और उन पर उगाही के सख्त नियमों को लागू करना सरकार द्वारा घोषित पैकेज की मंशा पर संदेह पैदा करते हैं.

अधिकांश उद्यम अस्तित्व के लिए कर रहे संघर्ष

आज देश भर में स्थित 6.3 लाख लघु उद्योगों में से अधिकांश उद्यम असहाय अवस्था में हैं और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सीआईआई (भारतीय उद्योग परिसंघ) ने सिफारिश की है कि उन्हें महामारी वायरस के प्रकोप के मद्देनजर पुनर्जीवित करने के लिए कम से कम तीन साल के लिए सभी प्रकार के विनियमन से छूट दी जानी चाहिए. संसदीय समिति लगभग सीआईआई से सहमत है. केंद्र ने विभिन्न मंत्रालयों को सितंबर तक छोटे उद्यमों की वास्तविक स्थितियों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को एक युद्ध स्तर पर व्यवस्थित संस्था गत समर्थन प्रदान करना महत्वपूर्ण है. जबकि चीन छोटे उद्यमों द्वारा आवश्यक तत्काल ऋण देने के लिए एक हजार ग्रामीण वाणिज्यिक बैंकों को धन आवंटित कर रहा है.

जर्मनी 'मिट्टल स्टैंड' (लघु और मध्य उद्योग) कंपनियों को असीमित प्राथमिकता दे रहा है. न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और जापान में सरकार में अपनी पहचान बना रहे हैं सहकारिता, रचनात्मक डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपना कर छोटे उद्यमों से उच्च उत्पादन जुटाने में मदद प्रदान की है. कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले, केंद्र ने तय किया था कि सात वर्षों के भीतर छोटे उद्योगों की सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सेदारी को 29 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जायेगा. मगर जब तक ब्याज की ऊंची दर, ऋण की कम उपलब्धता और उगाही की सख्त प्रक्रिया छोटे उद्यमों को परेशान करती रहती हैं, तब तक वे समस्याओं के भंवर से बाहर नहीं निकल पाएंगे. जब लघु और मध्य उद्योग के सामने मौजूद बाधाओं को हटाकर उन्हें स्थिर कर दिया जायेगा तो वे दोबारा जीवन को व्यवस्थित कर उनकी रक्षा करने में सक्षम हो जायेंगे.

हैदराबाद : कोरोना वायरस से बचने के लिए लागू लॉकडाउन की वजह से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की हालत खराब है और एक तिहाई एमएसएमई बंद होने के कगार पर हैं. कोरोना की सबसे बड़ी मार लघु उद्योगों पर पड़ी है. लघु उद्योगों में देश के लगभग 12 करोड़ लोगों को नौकरियां मिलने क्षमता है. हालांकि आर्थिक मंदी पहले से ही खराब है और अब कोरोना ने गहरे संकट में डाल दिया है.

लॉकडाउन के कारण और व्यापार के संकट से त्रस्त सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को केंद्र सरकार के 'आत्मानिहार पैकेज' से बहुत उम्मीदें थीं. सरकार ने तीन महीने पहले घोषणा की थी कि पैकेज के तहत 3 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त ऋण संवितरण योजना से 45 लाख इकाइयों को मदद मिलेगी. लेकिन इस घोषणा से उनकी किस्मत नहीं बदल सकी. रिज़र्व बैंक द्वारा संकलित नवीनतम आंकड़ों में लघु उद्योग की दुर्दशा भी स्पष्ट है, जिन्होंने पिछले साल पुष्टि की है कि जमा राशि उपलब्धता का संकट लघु और माध्यम उद्योगों को आज भी सता रहा है.

बैंक कर रहे वसूली

लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, पिछले साल की तुलना में ऋण संवितरण में 17% की कमी आई है. नियमित रखरखाव के लिए धन की कमी, पुराने ऋणों पर ब्याज के बढ़ते बोझ और कुशल श्रम और कच्चे माल की कमी छोटे उद्यमों को परेशानी में दाल दिया है. वर्तमान संकट के मद्देनज़र, केंद्र ने घोषणा की थी और सक्रिय रूप से पुनर्भुगतान सुविधा के साथ मामूली ब्याज दर पर कम से कम दस साल के लिए एक उदारीकृत ऋण योजना को सक्रिय रूप से लागू किया गया, उनमें से अधिकांश अब तक वापस आ गये होंगे. वास्तव में, ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि बैंक छोटे उद्यमों से 9-14 प्रतिशत की ब्याज दर वसूल रहे हैं.

रिजर्व बैंक ऋण वितरण में गिरावट के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे समय में जब छोटे उद्यमों को समर्थन मिलना ही चाहिए जो राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि में बड़ा योगदान देते हैं, इसके बजाये उनपर भारी ब्याज दरों का बोझ दाल देना और उन पर उगाही के सख्त नियमों को लागू करना सरकार द्वारा घोषित पैकेज की मंशा पर संदेह पैदा करते हैं.

अधिकांश उद्यम अस्तित्व के लिए कर रहे संघर्ष

आज देश भर में स्थित 6.3 लाख लघु उद्योगों में से अधिकांश उद्यम असहाय अवस्था में हैं और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सीआईआई (भारतीय उद्योग परिसंघ) ने सिफारिश की है कि उन्हें महामारी वायरस के प्रकोप के मद्देनजर पुनर्जीवित करने के लिए कम से कम तीन साल के लिए सभी प्रकार के विनियमन से छूट दी जानी चाहिए. संसदीय समिति लगभग सीआईआई से सहमत है. केंद्र ने विभिन्न मंत्रालयों को सितंबर तक छोटे उद्यमों की वास्तविक स्थितियों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को एक युद्ध स्तर पर व्यवस्थित संस्था गत समर्थन प्रदान करना महत्वपूर्ण है. जबकि चीन छोटे उद्यमों द्वारा आवश्यक तत्काल ऋण देने के लिए एक हजार ग्रामीण वाणिज्यिक बैंकों को धन आवंटित कर रहा है.

जर्मनी 'मिट्टल स्टैंड' (लघु और मध्य उद्योग) कंपनियों को असीमित प्राथमिकता दे रहा है. न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और जापान में सरकार में अपनी पहचान बना रहे हैं सहकारिता, रचनात्मक डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपना कर छोटे उद्यमों से उच्च उत्पादन जुटाने में मदद प्रदान की है. कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले, केंद्र ने तय किया था कि सात वर्षों के भीतर छोटे उद्योगों की सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सेदारी को 29 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जायेगा. मगर जब तक ब्याज की ऊंची दर, ऋण की कम उपलब्धता और उगाही की सख्त प्रक्रिया छोटे उद्यमों को परेशान करती रहती हैं, तब तक वे समस्याओं के भंवर से बाहर नहीं निकल पाएंगे. जब लघु और मध्य उद्योग के सामने मौजूद बाधाओं को हटाकर उन्हें स्थिर कर दिया जायेगा तो वे दोबारा जीवन को व्यवस्थित कर उनकी रक्षा करने में सक्षम हो जायेंगे.

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