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छोटे धंधों पर भारी पड़ा लॉकडाउन, MSME को हुआ सबसे ज्यादा नुकसान

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Published : Dec 22, 2020, 12:20 PM IST

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन यदि कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन का सबसे बुरा असर यदि किसी सेक्टर पर पड़ा है, तो वह एमएसएमई सेक्टर है. आइए जानते हैं कि कैसे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग पर लॉकडाउन ने असर डाला है.

छोटे धंधों पर भारी पड़ा लॉकडाउन
छोटे धंधों पर भारी पड़ा लॉकडाउन

नई दिल्ली: वैश्विक महामारी कोरोना ने देश की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर डाला है, खासतौर पर जो छोटे उद्योग धंधे हैं, वो कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के बाद से बंद होने की कगार पर आ गए हैं.

छोटे धंधों पर भारी पड़ा लॉकडाउन

अलग-अलग सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों का लिया जायजा

कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद राजधानी दिल्ली में चल रहे सूक्ष्म, लघु उद्योगों पर क्या कुछ असर पड़ा है और अब जब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, तो क्या कुछ व्यवस्था है, इसको लेकर ETV भारत की टीम ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में मौजूद फ्लैटटेड फैक्ट्री में पहुंची, जहां पर एक्सपोर्ट और अलग अलग गाड़ियों के पार्ट्स आदि से लेकर प्लास्टिक का कई सामान बनाने वाली छोटी छोटी फैक्ट्रियां सालों से चल रही हैं.

रो मटेरियल के बढ़ गए कई गुना तक दाम

प्लास्टिक के स्विच बोर्ड बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक राजेंद्र कुमार ने बताया कि पिछले करीब 20 सालों से वही फैक्ट्री चला रहे हैं, लेकिन इस साल जैसी स्थिति पिछले किसी भी साल में देखने को नहीं मिली. पहली बार हुआ जब फैक्ट्री पूरी तरीके से 2 महीने तक बंद रही.

ऐसे में जहां जो मजदूर फैक्ट्री में काम करते थे उन्हें भी सैलरी देनी पड़ी, वहीं काफी नुकसान भी हुआ. उन्होंने बताया कि उनके पास 10 से 15 कारीगर काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन में सभी अपने गांव चले गए थे, जिसके बाद अब केवल चार से पांच ही मजदूर हैं, जो फैक्ट्री में काम कर रहे हैं.

ओखला इंडस्ट्री में बंद हो गई कई फैक्ट्रियां

उन्होंने बताया कि इस एरिया में करीब 295 फैक्ट्री चलती थीं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से केवल 200 फैक्ट्री ही चल रही हैं, 100 के करीब फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, बिजनेस पूरी तरीके से ठप है.

उन्होंने बताया कि यहां पर प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक, सीसीटीवी कैमरा, इनवर्टर ट्रांसफॉर्मर, इलेक्ट्रिक पार्ट्स समेत कई ऑफिस भी हैं, जहां के लिए रॉ मैटेरियल देश के अलग-अलग राज्यों समेत दूसरे देश चाइना आदि से भी आता है.

फैक्ट्रियों में काम करने के लिए नहीं है लेबर

लोहे और प्लास्टिक के अलग-अलग पार्ट्स बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक नरेंद्र सिंह ने कहा की लॉक डाउन के बाद से कच्चे माल के दाम में कई गुना तक इजाफा हो गया है. वही जो दूसरे देशों से सामान आता था, वह भी काफी महंगा मिल रहा है, साथ ही जो सामान आसानी से कुछ समय में मिल जाता था, अब उसे यहां आने में काफी समय लग रहा है.

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा प्लास्टिक और मेटल के दाम बढ़े हैं.इसके अलावा लॉक डाउन के बाद से फैक्ट्री में काम करने वाली लेबर भी नहीं है, यहां करीब 1000 मजदूर काम करते थे लेकिन अब 500 से 600 ही वर्कर बचे हुए हैं.

लॉकडाउन के चलते गांव चले गए थे मजदूर

फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने कहा कि लॉकडाउन के बाद जब फैक्ट्री खुली तो आने जाने में काफी दिक्कत हुई, वहीं लॉकडाउन के चलते काम पूरी तरीके से बंद हो गया था, घर चलाने के लिए काफी मुश्किल हो रही थी, ऐसे में परिवार को लेकर गांव जाना पड़ा अब वापस आए हैं, लेकिन काम नहीं मिल पा रहा है.

नई दिल्ली: वैश्विक महामारी कोरोना ने देश की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर डाला है, खासतौर पर जो छोटे उद्योग धंधे हैं, वो कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के बाद से बंद होने की कगार पर आ गए हैं.

छोटे धंधों पर भारी पड़ा लॉकडाउन

अलग-अलग सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों का लिया जायजा

कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद राजधानी दिल्ली में चल रहे सूक्ष्म, लघु उद्योगों पर क्या कुछ असर पड़ा है और अब जब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, तो क्या कुछ व्यवस्था है, इसको लेकर ETV भारत की टीम ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में मौजूद फ्लैटटेड फैक्ट्री में पहुंची, जहां पर एक्सपोर्ट और अलग अलग गाड़ियों के पार्ट्स आदि से लेकर प्लास्टिक का कई सामान बनाने वाली छोटी छोटी फैक्ट्रियां सालों से चल रही हैं.

रो मटेरियल के बढ़ गए कई गुना तक दाम

प्लास्टिक के स्विच बोर्ड बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक राजेंद्र कुमार ने बताया कि पिछले करीब 20 सालों से वही फैक्ट्री चला रहे हैं, लेकिन इस साल जैसी स्थिति पिछले किसी भी साल में देखने को नहीं मिली. पहली बार हुआ जब फैक्ट्री पूरी तरीके से 2 महीने तक बंद रही.

ऐसे में जहां जो मजदूर फैक्ट्री में काम करते थे उन्हें भी सैलरी देनी पड़ी, वहीं काफी नुकसान भी हुआ. उन्होंने बताया कि उनके पास 10 से 15 कारीगर काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन में सभी अपने गांव चले गए थे, जिसके बाद अब केवल चार से पांच ही मजदूर हैं, जो फैक्ट्री में काम कर रहे हैं.

ओखला इंडस्ट्री में बंद हो गई कई फैक्ट्रियां

उन्होंने बताया कि इस एरिया में करीब 295 फैक्ट्री चलती थीं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से केवल 200 फैक्ट्री ही चल रही हैं, 100 के करीब फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, बिजनेस पूरी तरीके से ठप है.

उन्होंने बताया कि यहां पर प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक, सीसीटीवी कैमरा, इनवर्टर ट्रांसफॉर्मर, इलेक्ट्रिक पार्ट्स समेत कई ऑफिस भी हैं, जहां के लिए रॉ मैटेरियल देश के अलग-अलग राज्यों समेत दूसरे देश चाइना आदि से भी आता है.

फैक्ट्रियों में काम करने के लिए नहीं है लेबर

लोहे और प्लास्टिक के अलग-अलग पार्ट्स बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक नरेंद्र सिंह ने कहा की लॉक डाउन के बाद से कच्चे माल के दाम में कई गुना तक इजाफा हो गया है. वही जो दूसरे देशों से सामान आता था, वह भी काफी महंगा मिल रहा है, साथ ही जो सामान आसानी से कुछ समय में मिल जाता था, अब उसे यहां आने में काफी समय लग रहा है.

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा प्लास्टिक और मेटल के दाम बढ़े हैं.इसके अलावा लॉक डाउन के बाद से फैक्ट्री में काम करने वाली लेबर भी नहीं है, यहां करीब 1000 मजदूर काम करते थे लेकिन अब 500 से 600 ही वर्कर बचे हुए हैं.

लॉकडाउन के चलते गांव चले गए थे मजदूर

फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने कहा कि लॉकडाउन के बाद जब फैक्ट्री खुली तो आने जाने में काफी दिक्कत हुई, वहीं लॉकडाउन के चलते काम पूरी तरीके से बंद हो गया था, घर चलाने के लिए काफी मुश्किल हो रही थी, ऐसे में परिवार को लेकर गांव जाना पड़ा अब वापस आए हैं, लेकिन काम नहीं मिल पा रहा है.

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