ETV Bharat / bharat

तमिलनाडु : पटाखा उद्योग के मजदूरों पर दोहरी मार, पहले कोरोना और अब एनजीटी प्रतिबंध - वायु प्रदूषण

तमिलनाडु का शिवकाशी पटाखों के उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां पर देश का 90 फीसदी पटाखे का उत्पादन होता है, लेकिन देशभर के कई शहरों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है. इसके मद्देनजर कई शहरों में दीपावली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. ऐसे में शिवकाशी में पटाखे के उद्योग में लगे लोगों को कोरोना महामारी और प्रतिबंध की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. पढ़े पूरी खबर..

शिवकाशी में पटाखा उद्योग
शिवकाशी में पटाखा उद्योग
author img

By

Published : Nov 9, 2020, 2:00 PM IST

चेन्नई : तमिलनाडु के शिवकाशी में पटाखा उद्योग को पटाखो पर प्रतिबंध और कोरोना महामारी की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, सिक्किम, चंडीगढ़ सहित कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने प्रदूषण की चिंताओं के कारण दीपावली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया.

बता दें, देश में जलाए जाने वाले 90 प्रतिशत पटाखों की पूर्ति शिवकाशी से होती है. पटाखा उद्योग के चलते 1100 से अधिक लघु-मध्यम उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष और चार लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है. तमिलनाडु पटाखे और Amorces निर्माता संघ (तनफामा-Tanfama) के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस वर्ष कोरोना लॉकडाउन और मांग में कमी के कारण उत्पादन 60% तक कम हो गया है.

हाल के वर्षों में पटाखों के लिए 28% जीएसटी, चीनी पटाखों की अवैध बिक्री और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारतीय राज्यों में पटाखा प्रतिबंध के कारण उद्योग परेशानी का सामना कर रहा है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इको-फ्रेंडली ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री को अनिवार्य कर दिया, जिसने उद्योगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

तनफामा के प्रतिनिधि आसई थम्बी ने कहा कि पटाखा उद्योग को उम्मीद है कि इस साल पटाखों की बिक्री पिछले पांच वर्ष में घटकर 2,500 से 6,000 करोड़ रुपये रह जाएगी. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन से पटाख उद्योग गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है. आमतौर पर दीपावली से तीन माह पहले राज्य के बाहर और स्थानीय रिटेलर द्वारा रखे जाते थे, लेकिन, इस साल ऑर्डर में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. उन्होंने बताया कि 1,500 करोड़ रुपये मूल्य के पटाखे नहीं बिके हैं.

पटाखे उद्योग में काम करने वाले मुत्थु राज कहते हैं कि यहां काम करने वाले मजदूर चिंतित हैं कि उन्हें मांग कम होने के कारण बहुत कम कार्यदिवस मिलते हैं. पहले हम एक दिन में 400 रुपये कमाते थे, लेकिन अब इसको घटाकर आधा कर दिया गया है.

इस बीच, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तीन अक्टूबर को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, सीपीसीबी और दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों से राय मांगी. उद्योग का भाग्य मंत्रालय के रुख पर निर्भर करता है. इस मामले पर बोलते हुए कांग्रेस सांसद विरुथुनगर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें शिवकाशी क्षेत्र का कहना है कि शिवकाशी का एमएसएमई उद्योग छह लाख से अधिक लोगों का जीविकोपार्जन करता है. उनके प्राथमिक उत्पाद पर प्रतिबंध लगाने का कोई भी कार्य उनके जीवन को नष्ट कर देगा.

सांसद ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे अपने पत्र में कहा है कि भारत के पटाखे निर्माण उद्योग ने अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंत्रालय द्वारा महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. सीएसआईआर-एनईईआरआई के साथ एक नया रासायनिक घटक विकसित किया गया था. अन्य गैसें राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों द्वारा निर्धारित मानक सीमा के भीतर हैं. किसी भी तरह के सल्फर का प्रयोग नहीं किया जाता है, बेरियम नाइट्रेट का प्रयोग अतिशबाजी में कम किया जाता है जो किसी भी जहरीली गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं. मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप इन बातों पर ध्यान दें. एनजीटी भी तथ्यों पर ध्यान दें.

आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण का प्रमुख घटक या कारण सड़क की धूल और वाहनों का उत्सर्जन है. सर्दियों के मौसम में उत्तरी राज्यों में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाना एक महत्वपूर्ण कारण है, फिर भी पटाखों को अन्य पर्यावरणीय अपराधियों के गलत काम के लिए दोषी माना जाता है.

यह भी पढ़ें- एनजीटी का फरमान- दिल्ली-एनसीआर में 30 नवंबर तक नहीं बिकेंगे पटाखे

उनका आरोप है कि इस बारे में चर्चा करने के लिए उन्होंने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलने के लिए दो दिन तक इंतजार किया. सांसद ने ट्वीट कर लिखा, 'लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, इसलिए अपने व्यक्ति को दिल्ली के एक घर में भेज दें. जैसा कि अब कोई समय नहीं बचा है. कृपया ध्वनि रहित शिवकाशी ग्रीन आतिशबाजी उद्योग की मदद करें.'

चेन्नई : तमिलनाडु के शिवकाशी में पटाखा उद्योग को पटाखो पर प्रतिबंध और कोरोना महामारी की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, सिक्किम, चंडीगढ़ सहित कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने प्रदूषण की चिंताओं के कारण दीपावली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया.

बता दें, देश में जलाए जाने वाले 90 प्रतिशत पटाखों की पूर्ति शिवकाशी से होती है. पटाखा उद्योग के चलते 1100 से अधिक लघु-मध्यम उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष और चार लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है. तमिलनाडु पटाखे और Amorces निर्माता संघ (तनफामा-Tanfama) के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस वर्ष कोरोना लॉकडाउन और मांग में कमी के कारण उत्पादन 60% तक कम हो गया है.

हाल के वर्षों में पटाखों के लिए 28% जीएसटी, चीनी पटाखों की अवैध बिक्री और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारतीय राज्यों में पटाखा प्रतिबंध के कारण उद्योग परेशानी का सामना कर रहा है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इको-फ्रेंडली ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री को अनिवार्य कर दिया, जिसने उद्योगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

तनफामा के प्रतिनिधि आसई थम्बी ने कहा कि पटाखा उद्योग को उम्मीद है कि इस साल पटाखों की बिक्री पिछले पांच वर्ष में घटकर 2,500 से 6,000 करोड़ रुपये रह जाएगी. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन से पटाख उद्योग गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है. आमतौर पर दीपावली से तीन माह पहले राज्य के बाहर और स्थानीय रिटेलर द्वारा रखे जाते थे, लेकिन, इस साल ऑर्डर में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. उन्होंने बताया कि 1,500 करोड़ रुपये मूल्य के पटाखे नहीं बिके हैं.

पटाखे उद्योग में काम करने वाले मुत्थु राज कहते हैं कि यहां काम करने वाले मजदूर चिंतित हैं कि उन्हें मांग कम होने के कारण बहुत कम कार्यदिवस मिलते हैं. पहले हम एक दिन में 400 रुपये कमाते थे, लेकिन अब इसको घटाकर आधा कर दिया गया है.

इस बीच, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तीन अक्टूबर को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, सीपीसीबी और दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों से राय मांगी. उद्योग का भाग्य मंत्रालय के रुख पर निर्भर करता है. इस मामले पर बोलते हुए कांग्रेस सांसद विरुथुनगर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें शिवकाशी क्षेत्र का कहना है कि शिवकाशी का एमएसएमई उद्योग छह लाख से अधिक लोगों का जीविकोपार्जन करता है. उनके प्राथमिक उत्पाद पर प्रतिबंध लगाने का कोई भी कार्य उनके जीवन को नष्ट कर देगा.

सांसद ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे अपने पत्र में कहा है कि भारत के पटाखे निर्माण उद्योग ने अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंत्रालय द्वारा महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. सीएसआईआर-एनईईआरआई के साथ एक नया रासायनिक घटक विकसित किया गया था. अन्य गैसें राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों द्वारा निर्धारित मानक सीमा के भीतर हैं. किसी भी तरह के सल्फर का प्रयोग नहीं किया जाता है, बेरियम नाइट्रेट का प्रयोग अतिशबाजी में कम किया जाता है जो किसी भी जहरीली गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं. मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप इन बातों पर ध्यान दें. एनजीटी भी तथ्यों पर ध्यान दें.

आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण का प्रमुख घटक या कारण सड़क की धूल और वाहनों का उत्सर्जन है. सर्दियों के मौसम में उत्तरी राज्यों में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाना एक महत्वपूर्ण कारण है, फिर भी पटाखों को अन्य पर्यावरणीय अपराधियों के गलत काम के लिए दोषी माना जाता है.

यह भी पढ़ें- एनजीटी का फरमान- दिल्ली-एनसीआर में 30 नवंबर तक नहीं बिकेंगे पटाखे

उनका आरोप है कि इस बारे में चर्चा करने के लिए उन्होंने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलने के लिए दो दिन तक इंतजार किया. सांसद ने ट्वीट कर लिखा, 'लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, इसलिए अपने व्यक्ति को दिल्ली के एक घर में भेज दें. जैसा कि अब कोई समय नहीं बचा है. कृपया ध्वनि रहित शिवकाशी ग्रीन आतिशबाजी उद्योग की मदद करें.'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.