नई दिल्ली/अमरावती : अदालती मामलों के फैसले में सामान्य देरी, भले ही वो चाहे जिस कारण से हो, देश भर में असंख्य मुकद्दमों के लिए गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है. ये स्थिति उन लोगों के लिए और भी असहनीय बन जाती है, जिन्होंने न्याय की आस में अपना पूरा जीवन अदालतों के चक्कर लगाते हुए बिताया है.
एक सराहनीय नवीनतम आदेश में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने दो वृद्ध व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका में बिना किसी वैध कारणों के नौ साल से लंबित मामले पर नाराजगी जाहिर की है.
वरिष्ठ नागरिकों को अदालती मामलों में भी प्राथमिकता
उच्च न्यायालय ने एक सराहनीय टिप्पणी की कि वरिष्ठ नागरिकों को न केवल बस, ट्रेन और हवाई यात्रा में रियायतों को सीमित रखा जाये, बल्कि उनके अदालती मामलों को प्राथमिकता के आधार पर हल करके सच्चा सम्मान दिया जा सकता है.
फैसला सुनाए जाने में लगे 35 साल
वर्तमान मामले में उच्च न्यायालय 80 वर्ष की उम्र के याचिकाकर्ताओं से संबंधित एक भूमि के मुद्दे पर एक नागरिक संशोधन याचिका का निपटारा किया जा रहा था. लगभग तीन साल पहले, हमने एक 80 वर्षीय महिला का उदाहरण देखा, जिसने कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा जीता था, जिसने उनके पति को नौकरी से निकाल दिया था. उनके मामले में फैसला सुनाए जाने में 35 साल लग गए.
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जमनालाल पटेल और मोतीलाल परमार की तरह के कानूनी संघर्ष वरिष्ठ नागरिकों द्वारा झेली गयी प्रताड़ना के उदाहरण के रूप में उजागर हुए हैं, जिनके मामले सालों तक नहीं सुलझते हैं.
सही समय पर सुनायें फैसले
वृद्ध बीमार स्वास्थ्य, परिवार की समस्याओं, अपने बच्चों से जुदाई के कारण होने वाली परेशानी, असहायता और बच्चों द्वारा की जाने वाली उपेक्षा, आजीविका की कमी और इस तरह के अन्य वजहों से परेशान रहते हैं. ऐसी स्थिति में यदि अदालतें भी उनके उनके अपरिहार्य मुकद्दमों में सही समय पर फैसले ना सुनाकर उनके साथ अन्याय करती हैं.
वृद्धों के कल्याण के लिए बनी थी राष्ट्रीय नीति
लगभग दो दशक पहले केंद्र सरकार ने वृद्धों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई थी. उस समय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा था कि देश की 21 प्रतिशत आबादी 2050 तक 60 वर्ष से अधिक आयु की होगी, इस नीति का उद्देश्य उन्हें भोजन, स्वास्थ्य और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है. मानो केंद्रीय नीति से संकेत लेते हुए ही, आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायिक अधिकारियों को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें 65 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों द्वारा दायर किए गए मुकद्दमों में जल्द निपटान करने की बात कही गई थी.
मामलों के समाधान के लिए आदेश जारी
गुजरात उच्च न्यायालय ने भी छह महीने के भीतर वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े सभी मामलों के समाधान के लिए आदेश जारी किए थे.
लगभग सात साल पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन मामलों के तेजी से समाधान के लिए आह्वान किया था, जिनमें याचिकाकर्ताओं की आयु 60 वर्ष से अधिक थी.
न्यायिक मामले अभी भी अदालतों में लंबित
कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या आदेश दिया, वृद्ध द्वारा दायर किए गए न्यायिक मामले अभी भी अदालतों में लंबित हैं. देश में एक दीवानी मामले के समाधान में औसतन 15 साल लग जाते हैं. इसी तरह एक औसत आपराधिक मामले के समाधान के लिए सात साल इंतजार करना पड़ता है.
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इस बात को देखना दिलचस्प है कि देश भर में 3.2 करोड़ लंबित मामलों में से 83,000 मामले 30 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित हैं.
न्यायालयों को सभी स्तरों पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो व्यक्ति दशकों तक मुकदमेबाजी में उलझे रहे, उन्हें कम से कम अपने जीवन के अंतिम छोर पर न्याय का फल प्राप्त होना ही चाहिए.
कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश
लगभग पांच महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पटना और बॉम्बे की उच्च न्यायालयों को लंबे समय से लंबित आपराधिक मामलों के समाधान के लिए कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिए थे.
जिन मामलों में वृद्ध न्याय की आस लगाये बैठे हैं, उन मामलों के शीघ्र समाधान के लिए सामूहिक और प्रतिबद्ध प्रयासों की आवश्यकता होती है.