नई दिल्ली : राजस्थान और गुजरात में शिशुओं की मौत से लगे झटके के बाद, एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स इन इंडिया (AHPI) ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से देशभर के बाल रोग विशेषज्ञों की कमी के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की अपील की है.
वस्तुतः एएचपीआई ने राजस्थान और गुजरात में शिशुओं की मौत के बाद एक रिपोर्ट तैयार की है. एएचपीआई के महानिदेशक डॉ गिरिधर ज्ञानी ने कहा, 'हमने रिपोर्ट तैयार कर ली है, हम इसे जल्द ही स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपेंगे.'
उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ने अपनी रिपोर्ट में, बाल रोग विशेषज्ञों की कमी, कुपोषण और प्रदूषित पेयजल को ऐसी शिशुओं की मौत का मुख्य कारण बताया है.
डॉ. ज्ञानी ने कहा, 'हमारे पास 25000 बाल रोग विशेषज्ञ हैं जबकि आवश्यकता लगभग 2 लाख है. 6500 सामुदायिक केंद्रों (30 बेड वाले अस्पतालों) में बाल रोग विशेषज्ञों के संबंध में 80 प्रतिशत की कमी है.
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उन्होंने कहा कि भारत में आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुनियादी ढांचा भी नहीं है. निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, डायरिया, खसरा, मलेरिया, संक्रामक वैक्सीन सहित संक्रामक रोग शिशुओं की मौतों के कुछ प्रमुख कारण हैं.
गौरतलब है कि गुजरात और राजस्थान में गत एक दिसंबर से अब तक 600 से अधिक शिशुओं की मौत हो चुकी है.
राजस्थान में तीन और गुजरात के दो अस्पतालों में उच्च दर पर शिशु मृत्यु की सूचना मिली है. लगभग सभी मौतें नवजात और प्रसवकालीन आईसीयू में हुईं है.
जन्म से 28 दिनों के भीतर हुई शिशुओं की मौत के बाद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला है कि ये मौतें गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद बुनियादी चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण हुईं हैं.
डॉ. ज्ञानी ने कहा कि 2017 में भारत में पानी, स्वच्छता, उचित पोषण और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा की कमी के कारण 802,000 शिशुओं की मृत्यु हुई (इनमें 605000 नवजात मृत्यु थी).