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कारगिल युद्ध : भारतीय सेना को अलर्ट करने वाले चरवाहे की कहानी

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था, जिसमें दोनों पक्षों के सैकड़ों सैनिक मारे गए थे. करीब तीन महीने तक चले इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह परास्त किया था. भारतीय सेना को पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी सबसे पहले कारगिल के एक चरवाहे ने दी थी. जनिए चरवाहे की कहानी...

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Published : Jul 23, 2020, 6:36 PM IST

Updated : Jul 24, 2020, 2:42 PM IST

ताशी नामग्याल
ताशी नामग्याल

हैदराबाद : कारगिल युद्ध से पहले जम्मू-कश्मीर (अब लद्दाख) में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठ की सूचना सबसे पहले स्थानीय चरवाहे ताशी नामग्याल ने दी थी. ताशी नामग्याल अपने लापता याक की तलाश कर रहे थे, इस दौरान उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा.

नामग्याल ने समझदारी दिखाते हुए फौरन सेना की पोस्ट को सूचित किया. जब सेना के जवानों ने क्रॉस-चेक किया, तो जानकारी को सही निकली.

गरखुन के एक छोटे गांव के तीन चरवाहे ताशी नामग्याल, मोरुप त्सेरिंग और अली रज़ा स्तांबा भेड़ों के झुंड के साथ बंजू पहाड़ पर जाते थे.

कारगिल पहाड़ियों में चरवाहे नियमित रूप से अपने जानवरों को झुंड में रखते हैं. दो या तीन चरवाहे एक साथ अक्सर उच्च मैदानी क्षेत्रों में जानवरों को चराने के लिए जाते हैं.

नामग्याल और उनके दोस्त गर्मी के मौसम में सुबह के समय जुब्बर पहाड़ी की ओर जाने से थोड़ा संकोच कर रहे थे, लेकिन उन्हें लगा कि वह अपने समय को क्षेत्र के पसंदीदा खेल (पहाड़ी बकरियों का शिकार) में व्यतीत करेंगे.

त्सरिंग अपने साथ दो शक्तिशाली दूरबीन ले गए थे, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले लेह में खरीदा था. यहां लोग दूरबीन का इस्तेमाल शिकार के लिए करते हैं.

3 मई, 1999 की सुबह नामग्याल जुब्बर पहाड़ी पर लगभग पांच किलोमीटर तक आगे चले गए थे. जब उन्होंने त्सरिंग के दूरबीन से पहाड़ को देखा किया, तो उन्होंने पठानी सूट में पुरुषों के समूह को देखा, जो जमीन की खुदाई कर अस्थाई बंकर बना रहे थे.

हालांकि यह संभव नहीं था कि वह उनकी संख्या और ताकत का अंदाजा लगा सकें. नामग्याल ने तुरंत वहां तैनात तीन पंजाब रेजिमेंट के अधिकारियों को सूचित किया.

नामग्याल के शब्द
'3 मई की सुबह, मैं एक दोस्त के साथ अपने लापता याक की तलाश में जुब्बर लांग्पा नाले के साथ लगभग पांच किलोमीटर दूर चला गया था. मैं दूरबीन के माध्यम से पहाड़ी की ओर देख रहा था और फिर मैंने पठानी पोशाक में पुरुषों के समूह और पाकिस्तानी सैनिकों को बंकरों की खुदाई करते हुए देखा. उनमें से कुछ हथियार लिए हुए थे. हालांकि, उनकी संख्या का पता लगाना मेरे लिए संभव नहीं था, लेकिन मुझे यकीन था कि वह एलओसी के दूसरी तरफ से आए थे.'

नामग्याल का बयान

नामग्याल ने कहा, 'मैं नीचे आया और तुरंत भारतीय सेना की निकटतम पोस्ट को सूचित किया. मेरी सूचना से भारतीय सेना सतर्क हुई और उन्होंने क्रॉस चेक किया और पाया कि पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में मेरी जानकारी सही थी.'

हैदराबाद : कारगिल युद्ध से पहले जम्मू-कश्मीर (अब लद्दाख) में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठ की सूचना सबसे पहले स्थानीय चरवाहे ताशी नामग्याल ने दी थी. ताशी नामग्याल अपने लापता याक की तलाश कर रहे थे, इस दौरान उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा.

नामग्याल ने समझदारी दिखाते हुए फौरन सेना की पोस्ट को सूचित किया. जब सेना के जवानों ने क्रॉस-चेक किया, तो जानकारी को सही निकली.

गरखुन के एक छोटे गांव के तीन चरवाहे ताशी नामग्याल, मोरुप त्सेरिंग और अली रज़ा स्तांबा भेड़ों के झुंड के साथ बंजू पहाड़ पर जाते थे.

कारगिल पहाड़ियों में चरवाहे नियमित रूप से अपने जानवरों को झुंड में रखते हैं. दो या तीन चरवाहे एक साथ अक्सर उच्च मैदानी क्षेत्रों में जानवरों को चराने के लिए जाते हैं.

नामग्याल और उनके दोस्त गर्मी के मौसम में सुबह के समय जुब्बर पहाड़ी की ओर जाने से थोड़ा संकोच कर रहे थे, लेकिन उन्हें लगा कि वह अपने समय को क्षेत्र के पसंदीदा खेल (पहाड़ी बकरियों का शिकार) में व्यतीत करेंगे.

त्सरिंग अपने साथ दो शक्तिशाली दूरबीन ले गए थे, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले लेह में खरीदा था. यहां लोग दूरबीन का इस्तेमाल शिकार के लिए करते हैं.

3 मई, 1999 की सुबह नामग्याल जुब्बर पहाड़ी पर लगभग पांच किलोमीटर तक आगे चले गए थे. जब उन्होंने त्सरिंग के दूरबीन से पहाड़ को देखा किया, तो उन्होंने पठानी सूट में पुरुषों के समूह को देखा, जो जमीन की खुदाई कर अस्थाई बंकर बना रहे थे.

हालांकि यह संभव नहीं था कि वह उनकी संख्या और ताकत का अंदाजा लगा सकें. नामग्याल ने तुरंत वहां तैनात तीन पंजाब रेजिमेंट के अधिकारियों को सूचित किया.

नामग्याल के शब्द
'3 मई की सुबह, मैं एक दोस्त के साथ अपने लापता याक की तलाश में जुब्बर लांग्पा नाले के साथ लगभग पांच किलोमीटर दूर चला गया था. मैं दूरबीन के माध्यम से पहाड़ी की ओर देख रहा था और फिर मैंने पठानी पोशाक में पुरुषों के समूह और पाकिस्तानी सैनिकों को बंकरों की खुदाई करते हुए देखा. उनमें से कुछ हथियार लिए हुए थे. हालांकि, उनकी संख्या का पता लगाना मेरे लिए संभव नहीं था, लेकिन मुझे यकीन था कि वह एलओसी के दूसरी तरफ से आए थे.'

नामग्याल का बयान

नामग्याल ने कहा, 'मैं नीचे आया और तुरंत भारतीय सेना की निकटतम पोस्ट को सूचित किया. मेरी सूचना से भारतीय सेना सतर्क हुई और उन्होंने क्रॉस चेक किया और पाया कि पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में मेरी जानकारी सही थी.'

Last Updated : Jul 24, 2020, 2:42 PM IST
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