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कश्मीर मुद्दे पर PIL, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई टालने से इनकार

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Published : Nov 5, 2019, 11:19 AM IST

Updated : Nov 5, 2019, 5:16 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में बाल अधिकार कार्यकर्ता एकांक्षी गांगुली की याचिका पर सुनवाई की जा रही है. यह मामला कश्मीर में हुए संवैधानिक बदलावों से जुड़ा है. कोर्ट ने सुनवाई टालने की अपील खारिज कर दी है. जानें पूरा मामला...

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नई दिल्ली : बाल अधिकार कार्यकर्ता एकांक्षी गांगुली ने कश्मीर में हुए संवैधानिक बदलावों से संबंधित एक याचिक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है. शीर्ष अदालत मंगलवार को इस पीआईएल की सुनवाई कर रही है.

मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें एक अन्य कोर्ट में पेश होना है, इसलिए मामले को अगले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए.

लेकिन तुषार मेहता की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अहम मुद्दों को लंबित नहीं रखा जा सकता.

शीर्ष अदालत ने कहा कि तीन महीनों की पाबंदियों के बाद सुनवाई शुरू हुई है, ऐसे में सुनवाई में और देर नहीं की जा सकती.

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सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से कहा कि वह अपने जूनियर से नोट्स लेने के लिए कहें और बुधवार को जवाब देने का निर्देश दें.

इसी क्रम में हुफेजा अहमदी ने अपनी दलीलें दी. अहमदी ने विभिन्न मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए विशेष रूप से बच्चों को हिरासत में लिए जाने की बात कही.

न्यायाधीश रविंद्र भट्ट ने इस पर कहा, 'इन सब में एक पैटर्न है, क्यों लोग बरी हो जाते हैं. मामलों में छानबीन असफल है. हमें अपराध की गंभीरता और सजा की गंभीरता को देखना होगा.'

अहमदी ने जम्मू-कश्मीर HC की किशोर न्याय समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया. इस पर न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा कि किशोर न्याय समिति इसकी जांच करे. इसके बाद मामले की सुनवाई होगी.

तुषार मेहता ने JK उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अदालत सामान्य रूप से काम कर रही है और इस मामले से निबट सकती है.

अहमदी अपनी दलील में कहते हैं, यह एक अनुच्छेद 32 याचिका है, जो अपने आप में एक मौलिक अधिकार है. उच्चतम न्यायालय ने मौलिक अधिकार पर इस तरह की याचिका पर सुनवाई की है तो इस याचिका पर सुनवाई क्यों नहीं की जा सकती है.

अहमदी ने कहा कि समय की कमी के कारण समिति तथ्यात्मक जांच नहीं कर पाई होगी, लिहाजा समिति ने पुलिस द्वारा दी गई जानकारी को मान लिया.

जस्टिस बीआर गवई ने कहा, JK में उच्च न्यायालय सामान्य रूप से काम कर रहा है. जिन लोगों को बाल अधिकार उल्लंघन की शिकायतें हैं वह लोग वहां जा सकते हैं.

अहमदी ने कहा, रिपोर्ट के अनुसार कई बच्चों को निवारक हिरासत के तहत हिरासत में लिया गया है. बच्चों को सार्वजनिक सुरक्षा कानून में निवारक नजरबंदी के तहत हिरासत में लिया जाना प्रतिबंधित है.

राज्य में बाल अधिकारों के उल्लंघन पर SC अब J & K कानूनी समिति से नई रिपोर्ट मांग रहा है. मामले की अगली सुनवाई अब तीन दिसम्बर को होगी.

नई दिल्ली : बाल अधिकार कार्यकर्ता एकांक्षी गांगुली ने कश्मीर में हुए संवैधानिक बदलावों से संबंधित एक याचिक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है. शीर्ष अदालत मंगलवार को इस पीआईएल की सुनवाई कर रही है.

मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें एक अन्य कोर्ट में पेश होना है, इसलिए मामले को अगले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए.

लेकिन तुषार मेहता की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अहम मुद्दों को लंबित नहीं रखा जा सकता.

शीर्ष अदालत ने कहा कि तीन महीनों की पाबंदियों के बाद सुनवाई शुरू हुई है, ऐसे में सुनवाई में और देर नहीं की जा सकती.

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सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से कहा कि वह अपने जूनियर से नोट्स लेने के लिए कहें और बुधवार को जवाब देने का निर्देश दें.

इसी क्रम में हुफेजा अहमदी ने अपनी दलीलें दी. अहमदी ने विभिन्न मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए विशेष रूप से बच्चों को हिरासत में लिए जाने की बात कही.

न्यायाधीश रविंद्र भट्ट ने इस पर कहा, 'इन सब में एक पैटर्न है, क्यों लोग बरी हो जाते हैं. मामलों में छानबीन असफल है. हमें अपराध की गंभीरता और सजा की गंभीरता को देखना होगा.'

अहमदी ने जम्मू-कश्मीर HC की किशोर न्याय समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया. इस पर न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा कि किशोर न्याय समिति इसकी जांच करे. इसके बाद मामले की सुनवाई होगी.

तुषार मेहता ने JK उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अदालत सामान्य रूप से काम कर रही है और इस मामले से निबट सकती है.

अहमदी अपनी दलील में कहते हैं, यह एक अनुच्छेद 32 याचिका है, जो अपने आप में एक मौलिक अधिकार है. उच्चतम न्यायालय ने मौलिक अधिकार पर इस तरह की याचिका पर सुनवाई की है तो इस याचिका पर सुनवाई क्यों नहीं की जा सकती है.

अहमदी ने कहा कि समय की कमी के कारण समिति तथ्यात्मक जांच नहीं कर पाई होगी, लिहाजा समिति ने पुलिस द्वारा दी गई जानकारी को मान लिया.

जस्टिस बीआर गवई ने कहा, JK में उच्च न्यायालय सामान्य रूप से काम कर रहा है. जिन लोगों को बाल अधिकार उल्लंघन की शिकायतें हैं वह लोग वहां जा सकते हैं.

अहमदी ने कहा, रिपोर्ट के अनुसार कई बच्चों को निवारक हिरासत के तहत हिरासत में लिया गया है. बच्चों को सार्वजनिक सुरक्षा कानून में निवारक नजरबंदी के तहत हिरासत में लिया जाना प्रतिबंधित है.

राज्य में बाल अधिकारों के उल्लंघन पर SC अब J & K कानूनी समिति से नई रिपोर्ट मांग रहा है. मामले की अगली सुनवाई अब तीन दिसम्बर को होगी.

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Last Updated : Nov 5, 2019, 5:16 PM IST
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