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जानिए क्यों कहते हैं अटल रोहतांग टनल को 'दोस्ती की सुरंग'

पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2000 में रोहतांग टनल की नींव रखी थी. यह टनल लाहौल स्पीति के रहने वाले टशी दावा को अटलजी की दोस्ती का एक तोहफा था. यह टनल बेशक आज अपना अस्तित्व खुद लिख रही है, लेकिन इसे हमेशा दो दोस्तों की दोस्ती के रूप में याद किया जाएगा.

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पीएम मोदी 3 अक्टूबर को करेंगे टनल का लोकार्पण
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Published : Sep 29, 2020, 4:02 PM IST

Updated : Sep 29, 2020, 7:40 PM IST

कुल्लू : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने बचपन के दोस्त टशी दावा के मांगने पर रोहतांग टनल को तोहफे में दिया था. इससे बड़ी मित्रता की मिसाल और क्या हो सकती है. पीएम मोदी तीन अक्टूबर को इस टनल का लोकार्पण करेंगे.

सीनियर जर्नलिस्ट धनेश गौतम ने बताया कि टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल लाहौल जिला के ठोलंग गांव के रहने वाले थे. आजादी से पहले टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस में एक साथ सक्रिय थे. दोनों वर्ष 1942 में गुजरात के बड़ोदरा में आयोजित संघ के एक प्रशिक्षण शिविर में मिले थे, जिस दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. रोहतांग में बनी दुनिया की यह सबसे लंबी टनल आज इनकी दोस्ती का प्रतीक है.

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अटल जी का स्वागत करते हुए उनके दोस्त टशी दावा. (फाइल फोटो)

रोहतांग अटल टनल के बनने की वजह केवल अटल बिहारी और टशी दावा की दोस्ती ही नहीं, बल्कि दो अन्य लोगों की मेहनत का भी नतीजा है. इसमें इतिहासकार छेरिंग दोरजे और लाहौल के अभय चंद राणा का नाम भी जुड़ा हुआ है.

इन दो शख्स ने भी की थी टनल की मांग
साल 1998 में टशी दावा, छेरिंग दोरजे और अभय चंद राणा ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से टनल बनाने की मांग की थी. अटलजी और टशी दावा से जुड़ी यादें अब भी इस दुनिया में हैं. उनकी दोस्ती को लेकर 86 साल के छेरिंग दोरजे के जेहन में आज भी उस मुलाकात की यादें ताजा हैं.

अटल रोहतांग टनल को 'दोस्ती की सुरंग'.

'दोस्ती की सुरंग' के नाम से भी जानी जाती है रोहतांग टनल
इस मामले पर समाजसेवी कृष ठाकुर बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2000 में इस टनल की नींव रखी थी. उन्होंने बताया कि यह टनल लाहौल स्पीति के टशी दावा को अटलजी का दोस्ती का एक तोहफा था. यह टनल बेशक आज अपना अस्तित्व खुद लिख रही है, लेकिन इसे हमेशा दो दोस्तों की दोस्ती के रूप में याद किया जाएगा. स्थानीय लोग भी अटल रोहतांग टनल को 'दोस्ती की सुरंग' कहते हैं.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हिमाचल दौरे की तस्वीर. (फाइल फोटो)

पूरा होने जा रहा पूर्व प्रधानमंत्री का सपना
अटल रोहतांग टनल के बारे में वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे का कहना है कि अटलजी 16 अगस्त 2018 में दुनिया को अलविदा कह गए. ये विडंबना ही रही कि वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को लोकार्पित नहीं कर पाए, लेकिन उनकी ये देन हिमाचल और देश कभी नहीं भूल पाएगा. आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है.

लाहौल घाठी की बदलेगी सूरत
तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटल रोहतांग टनल का लोकार्पण करेंगे. इस टनल के बनने से छह महीने तक बर्फबारी और खराब मौसम की वजह से दुनिया से कटी रहने वाली लाहौल घाटी की सूरत बदल जाएगी. भारतीय सेना के लिए भी चीन के साथ लगती सीमाओं तक पहुंचने में ये सुरंग मदद करेगी.

कुल्लू : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने बचपन के दोस्त टशी दावा के मांगने पर रोहतांग टनल को तोहफे में दिया था. इससे बड़ी मित्रता की मिसाल और क्या हो सकती है. पीएम मोदी तीन अक्टूबर को इस टनल का लोकार्पण करेंगे.

सीनियर जर्नलिस्ट धनेश गौतम ने बताया कि टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल लाहौल जिला के ठोलंग गांव के रहने वाले थे. आजादी से पहले टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस में एक साथ सक्रिय थे. दोनों वर्ष 1942 में गुजरात के बड़ोदरा में आयोजित संघ के एक प्रशिक्षण शिविर में मिले थे, जिस दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. रोहतांग में बनी दुनिया की यह सबसे लंबी टनल आज इनकी दोस्ती का प्रतीक है.

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अटल जी का स्वागत करते हुए उनके दोस्त टशी दावा. (फाइल फोटो)

रोहतांग अटल टनल के बनने की वजह केवल अटल बिहारी और टशी दावा की दोस्ती ही नहीं, बल्कि दो अन्य लोगों की मेहनत का भी नतीजा है. इसमें इतिहासकार छेरिंग दोरजे और लाहौल के अभय चंद राणा का नाम भी जुड़ा हुआ है.

इन दो शख्स ने भी की थी टनल की मांग
साल 1998 में टशी दावा, छेरिंग दोरजे और अभय चंद राणा ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से टनल बनाने की मांग की थी. अटलजी और टशी दावा से जुड़ी यादें अब भी इस दुनिया में हैं. उनकी दोस्ती को लेकर 86 साल के छेरिंग दोरजे के जेहन में आज भी उस मुलाकात की यादें ताजा हैं.

अटल रोहतांग टनल को 'दोस्ती की सुरंग'.

'दोस्ती की सुरंग' के नाम से भी जानी जाती है रोहतांग टनल
इस मामले पर समाजसेवी कृष ठाकुर बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2000 में इस टनल की नींव रखी थी. उन्होंने बताया कि यह टनल लाहौल स्पीति के टशी दावा को अटलजी का दोस्ती का एक तोहफा था. यह टनल बेशक आज अपना अस्तित्व खुद लिख रही है, लेकिन इसे हमेशा दो दोस्तों की दोस्ती के रूप में याद किया जाएगा. स्थानीय लोग भी अटल रोहतांग टनल को 'दोस्ती की सुरंग' कहते हैं.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हिमाचल दौरे की तस्वीर. (फाइल फोटो)

पूरा होने जा रहा पूर्व प्रधानमंत्री का सपना
अटल रोहतांग टनल के बारे में वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे का कहना है कि अटलजी 16 अगस्त 2018 में दुनिया को अलविदा कह गए. ये विडंबना ही रही कि वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को लोकार्पित नहीं कर पाए, लेकिन उनकी ये देन हिमाचल और देश कभी नहीं भूल पाएगा. आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है.

लाहौल घाठी की बदलेगी सूरत
तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटल रोहतांग टनल का लोकार्पण करेंगे. इस टनल के बनने से छह महीने तक बर्फबारी और खराब मौसम की वजह से दुनिया से कटी रहने वाली लाहौल घाटी की सूरत बदल जाएगी. भारतीय सेना के लिए भी चीन के साथ लगती सीमाओं तक पहुंचने में ये सुरंग मदद करेगी.

Last Updated : Sep 29, 2020, 7:40 PM IST
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