पॉट्सडैम (जर्मनी) : प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित एक शोध में जलवायु परिवर्तन को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. शोध में बताया गया है कि तत्कालीन पेरिस समझौते के बाद के 15 सालों में किया जाने वाला उत्सर्जन समुद्र के जलस्तर को 20 सेंटीमीटर तक बढ़ा देगा.
यह शोध पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (Potsdam Institute for Climate Impact Research) में किया गया है. इस शोध में बताया गया है कि 2030 तक किये गये उत्सर्जन के कारण वर्ष 2300 में समुद्र स्तर कितना होगा.
यह पहला शोध है, जिससे यह पता लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक मानवजनित ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के कारण समुद्र के जलस्तर में कितनी वृद्धि होगी.
आपको बता दें कि यह तब होगा, अगर सभी देश 2015 में हुए पेरिस समझौते पर अमल करते हैं. गौरतलब है कि यह समझौता वर्ष 2030 में खत्म होगा.
शोधार्थियों ने पाया है कि पेरिस समझौते के दौरान (2015-2030) उत्सर्जित गैसों के कारण वर्ष 2300 तक समुद्र का जलस्तर 20 सेमी तक बढ़ जाएगा. गौरतलब है कि इस शोध में अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ की चादर के असर को नहीं जोड़ा गया है.
मुख्य शोधार्थी अलेक्जेंडर नूल्स (Alexander Nauels) ने कहा, 'शोध के परिणाम बताते हैं कि हम आज जो भी करेंगे, उसका असर वर्ष 2300 में देखने को मिलेगा. समुद्र स्तर में 20 सेमी की बढ़त होना बहुत बड़ी बात है. उन्होंने कहा कि यह पूरी 20वीं शताब्दी के दौरान बढ़े जलस्तर के बराबर होगा.'
उन्होंने कहा, 'उत्सर्जन के परिणाम सामने आने में सदियों लग जाते हैं. हम अभी जितना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं, भविष्य में समुद्र का जलस्तर उतना ज्यादा बढ़ जाएगा.'
पढ़ें - जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक खतरा भारत, बांग्लादेश, चीन, जापान पर : UN महासचिव
शोधार्थियों ने यह भी पाया कि जलस्तर में 20 सेमी की बढ़त आधे से ज्यादा शीर्ष प्रदूषक देश - चीन, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, भारत और रूस के कारण होगी. पेरिस समझौते के खत्म होने तक इन देशों द्वारा उत्सर्जन से वर्ष 2300 तक समुद्र का जलस्तर 12 सेमी बढ़ेगा.
समुद्र के बढ़ते जलस्तर से बाढ़ के खतरे बढ़ जाएंगे. अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पैनल (Intergovernmental panel on climate change- IPCC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक समुद्र से जुड़ी घटनाएं जो सदियों में एक बार घटित हुआ करती थीं, वे वर्ष 2050 तक हर वर्ष होंगी.