श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को पिछले साल अगस्त में रद कर दिया गया. इसके बाद से ही कश्मीर में आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है.
सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल पांच अगस्त से औसतन पांच युवक प्रत्येक महीने आतंकवाद में शामिल हुए, जबकि इससे पहले प्रति महीने यह दर 14 थी.
बीते साल पांच अगस्त के पहले और इसके बाद के आतंकवाद से जुड़े घटनाक्रमों की तुलना करने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादियों की अंत्येष्टि में काफी भीड़ एकत्र होनी भी अतीत की बातें हो गई हैं, क्योंकि अब कब्रगाहों पर सिर्फ मुट्ठीभर करीबी रिश्तेदार ही देखे जाते हैं.
गौरतलब है कि आतंकवादियों के अंतिम संस्कार के समय काफी संख्या में युवक आतंकवाद का रास्ता चुनते थे.
रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह ऐसे दृष्टांत हैं, जब आतंकवादी महज दर्जनभर करीबी रिश्तेदारों की मौजूदगी में दफन किए जाते हैं.
इससे पहले सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए आतंकवादियों के जनाजे में काफी भीड़ जुटा करती थी. कई बार 10,000 से अधिक लोग जमा हो जाते थे.
आतंकवाद में शामिल होने के लिए स्थानीय युवाओं को एक आतंकी द्वारा अपने परिवार के सदस्यों से की गई आखिरी अपील भी प्रेरित करती थी. इस तरह की आवाज की रिकार्डिंग कुछ युवाओं को बंदूक उठाने के लिए प्रेरक के तौर पर काम करती थी.
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हालांकि, पांच अगस्त 2019 के बाद इस तरह की कोई अपील दर्ज नहीं की गई. ऐसा संचार माध्यमों पर पाबंदी और बदले हुए परिदृश्य के चलते आंशिक रूप से हुआ.
इसमें कहा गया है कि पथराव की घटनाओं में भी कमी दर्ज की गई है. आंसू गैस, पैलेट गन के इस्तेमाल में स्वाभाविक रूप से कमी आई है.
गौरतलब है कि पिछले साल पांच अगस्त को पूववर्ती जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित करने की घोषणा के बाद राज्य में कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं.