नई दिल्ली : 16 दिसंबर 2012 की उस काली रात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. वो रात, जिसने लोगों को घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया, सड़कों पर आने को बेबस कर दिया. जी हां, यह वही रात थी, जब दिल्ली की एक बस में इंसान के रूप में मौजूद कुछ भेड़ियों ने अपने दोस्त के साथ जा रही 26 वर्षीया युवती के साथ न सिर्फ हैवानियत की बल्कि बड़ी ही बेदर्दी से निर्वस्त्र चलती बस से बाहर फेंक दिया.
जी हां, हम बात कर रहे हैं निर्भया कांड की, जिसने हर देशवासी को सोचना पर मजबूर कर दिया कि सदियों से महिलाओं के साथ खेला जा रहा हैवानियत का यह खेल अब यहीं खत्म करना पड़ेगा. लेकिन इस हादसे के सात साल बीतने के बावजूद न तो हालात बदले हैं और न ही इंसान के रूप में छुपे भेड़ियों ने महिलाओं के साथ हैवानियत करना बंद किया है.
निर्भया कांड के बाद जिस तरह से लोग सड़कों पर उतरे और समाज में बदलाव लाने के लिए आवाज उठाई, उसे देखकर लगा कि शायद अब महिलाओं को लेकर समाज की सोच बदलेगी, लेकिन ऐसा कोई बदलाव नहीं दिखा, ऐसा हम नहीं बल्कि ये आंकड़े कह रहे हैं.
2013 में 1 लाख 14 हजार 785 मामले सामने आए,2014 में 1 लाख 25 हजार 431 मामले दर्ज किए गए, 2015 में 1 लाख 37 हजार 458,2016 मे 1 लाख 52 हजार 165 ,2017 में 1 लाख 46 हजार 201 घटनाएं सामने आईं.
वर्ष 2013 में 95.4 प्रतिशत मामलों में पुलिस द्वारा चार्जशीट दायर की गई. इसके अलावा वर्ष 2014 में 95.6 प्रतिशत, वर्ष 2015 में 96.1 प्रतिशत, वर्ष 2016 में 87.6 प्रतिशत और वर्ष 2017 में 86. 6 प्रतिशत मामलों में ही चार्जशाट दायर की गई.
वर्ष 2013 में जहां 47 हजार 457 मामलों की जांच हुई तो वहीं वर्ष 2014 में 51 हजार 623, वर्ष 2015 में 50 हजार 509, वर्ष 2016 में 55 हजार 71 और वर्ष 2017 में 46 हजार 984 लोगों के खिलाफ ही जांच हो सकी.
अगर बात की जाए इन मामलों में दोषी पाए गए लोगों की तो 2013 में 5 हजार 101 लोग ही दोषी साबित हो सके, जबकि 2014 में 4 हजार 944, वर्ष 2015 मे 5 हजार 514, वर्ष 2016 में 4 हजार 739 और वर्ष 2017 में 5 हजार 822 लोगों पर दोष साबित हो सका.
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पहली बार 21 मार्च, 2013 को देश में बलात्कार कानून में संशोधन किया गया. बलात्कार विरोधी नए कानून - आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 - में यौन अपराधों को दंडित करने के लिए बलात्कार को फिर से परिभाषित कर दंड को और अधिक कठोर बनाया गया- जिसमें बलात्कार के अपराधियों के लिए मौत की सजा भी शामिल है.
इसके अलावा 2012 में पोक्सो एक्ट भी बनाया गया . साथ ही जल्द न्याय के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट भी बनाए गए, लेकिन बावजूद उसके महिलाओं के खिलाफ यह जघन्य अपराध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है.