हैदराबाद : गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब हालात सामान्य होने के आसार नजर आ रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि चीनी सेना पहले ही गलवान घाटी में गश्ती बिंदु प्वॉइंट 14 से अपने तंबुओं को हटा चुकी है और उसके सैनिक पीछे चल गए हैं. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे गोग्रा (पीपी 17) और हॉट स्प्रिंग्स (पीपी 15) टकराव वाले ऐसे बिंदु हैं, जहां पिछले आठ सप्ताह से दोनों देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष की स्थिति बनी थी. पेंगोंग लेक (फिंगर 4) इलाकों में भी सैनिकों की संख्या में कमी देखी गई है.
सूत्रों ने बताया कि इन दो क्षेत्रों से सैनिकों के पीछे हटने का काम दो दिन में पूरा होने की संभावना है और इन क्षेत्रों से चीनी सैनिकों की पर्याप्त वापसी भी हुई है. यह प्रक्रिया कुछ दिनों में पूरी हो जाएगी.
इसे 'टोकन मूवमेंट' के तौर पर समझा जा रहा है, ताकि इस तरह की प्रक्रिया को अपनाकर दुनिया की दो सबसे बड़ी फौजों को कुछ दूरी पर रखा जा सके. चूंकि 15 जून को गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ था, उसे पूरी दुनिया ने देखा. यहां दुनिया ने दो देशों की सेनाओं के बीच क्रूर हिंसक झड़प देखी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इस झड़प में चीन के भी कई सैनिकों के मारे जाने की खबर थी. हालांकि चीन ने इसकी कोई जानकारी नहीं दी. लेकिन एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के अनुसार चीन की तरफ हताहतों की संख्या 35 बताई गई थी.
बता दें कि चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स और गोग्रा में झड़प वाले क्षेत्रों से अस्थायी ढांचों को हटा दिया है और मंगलवार को लगातार दूसरे दिन सैनिकों की वापसी का सिलसिला जारी रहा. वहीं भारत ने पर्वतीय क्षेत्रों में रात के समय भी हवाई गश्त जारी रखी है और भारतीय सेना चीनी सेना के पीछे हटने की गतिविधि पर कड़ी नजर रख रही है. सूत्रों ने यह जानकारी दी.
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गोग्रा और हॉट स्प्रिंग्स टकराव वाले ऐसे बिंदु हैं, जहां पिछले आठ सप्ताह से दोनों देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी.
सेना के एक सूत्र ने ईटीवी भारत के बताया कि वर्तमान में चूंकि दोनों सेनाओं की जो मनोदशा है, उसको देखते हुए उन्हें पीछे हटने को कहा गया है.
सूत्रों के हवाले से मिली खबर के मुताबिक दोनों देशों के बीच विश्वास को प्रगाढ़ बनाने के लिए 'पुलबैक' प्रक्रिया आवश्यक है.
गौरतलब है कि गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद स्थिति बिगड़ गई. इस घटना के बाद दोनों देशों ने एलएसी से लगते अधिकतर क्षेत्रों में अपनी-अपनी सेनाओं की तैनाती और मजबूत कर दी. एलएसी पर स्थिति ऐसी बिगड़ गई कि दोनों देशों के एक लाख से अधिक सैनिक आसपास के इलाकों में तोप और वायुसेना के विमानों के साथ गश्त लगाने लगे. तनाव के दौरान यहां चौकसी काफी बढ़ा दी गई.
दोनों देश की सेनाओं को इस बात का भी अंदाजा है कि यथास्थिति बहाल करने की प्रक्रिया में वक्त लगेगा. कई बातें ऐसी हैं, जिनकी वजह से यथास्थिति बहाल करने में वक्त लग सकता है क्योंकि सीमा विवाद को लेकर उत्पन्न परिस्थिति के बाद बड़े पैमाने पर सैनिकों की गश्त बढ़ा दी गई थी.
दुनिया जानती है कि पूर्वी लद्दाख एक दुर्गम पहाड़ी है. यहां कुछ समय के बाद भारी बर्फबारी होगी, जो मौसम को बेरहम बना देगी और ऐसी स्थिति में दोनों सेनाओं को वहां जमे रहना काफी कष्टकारी साबित हो सकता है.
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यहां सर्दी के मौसम में भारी हिमपात होता है. यहां तापमान शून्य से लगभग 40 डिग्री नीचे चला जाता है. ऑक्सीजन की कमी होने से लोगों को काफी मुश्किलों का समाना करना पड़ता है. अगर समय रहते सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो चीन और भारत की सेनाओं को इन विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा.
हिमालय की गोद में स्थित पूर्वी लद्दाख समुद्र तल से 4,000-6,500 मीटर की ऊंचाई पर है. यह क्षेत्र काराकोरम के पास तक फैला हुआ है. सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है, जो लद्दाख का हिस्सा है.
यहां की दुर्गम पहाड़ी में जीवित रहना एक बड़ी चुनौती है. इस क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी के साथ-साथ लोगों के डिप्रेशन (अवसाद) में चले जाने की आशंका प्रबल होती है. यहां अत्यधिक थकान, अनिद्रा जैसी कई बीमारियों से लोगों को जूझना पड़ता है.