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सामान्य मानसिक विकार नहीं है पीटीएसडी

क्या होता है पीटीएसडी. किस तरह पीड़ित के जीवन को प्रभावित करती है. क्या होते हैं पीटीएसडी के लक्षण. इस बारे में ईटीवी सुखीभवा की टीम ने देहरादून की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

सामान्य मानसिक विकार
जवानों को होता है पीटीएसडी
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Published : Dec 24, 2020, 5:37 PM IST

कई बार कोई दुख, कोई दुर्घटना हमारे दिमाग पर इस कदर असर छोड़ जाती है कि लंबे समय तक उसके प्रभाव से निकल पाना संभव नहीं हो पाता है. यह स्तिथि सामान्य नहीं होती है बल्कि ध्यान न देने पर यह बीमारी का रूप ले सकती है. ऐसी ही एक बीमारी है पीटीएसडी यानि 'पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर'.

हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी दुखद या झकझोर देने वाली घटना का साक्षी बनता है. ज्यादातर लोग ऐसी घटनाओं का दर्द मन में समेट कर जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन कई बार कुछ लोगों के दिल दिमाग पर इन दुखद घटनाओं का असर इस कदर होता है की वे सदमें का शिकार हो जाते है, और उदासी, तनाव और निराशा से घिर जाते है. ऐसे लोगों तथा उनकी समस्या पर यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो वह गंभीर मानसिक विकारों का कारण बन सकती है. ऐसी ही एक मनोविकार है ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ जिसे पीटीएसडी के नाम से भी जाना जाता है. क्या है पीटीएसडी और किस तरह पीड़ित के जीवन को प्रभावित करती है इस बारे में ईटीवी सुखीभवः की टीम ने देहरादून की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर

डॉ. वीणा कृष्णन बताती हैं की पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो किसी दुर्घटना, प्रियजन की मृत्यु या अपंगता, सदमा, अपराध का साक्षी बनना तथा इन कारणों के चलते उत्पन्न हुए गंभीर मनोवैज्ञानिक मानसिक और भावनात्मक तनाव के कारण होता है. यह समस्या किसी भी लिंग या उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. लेकिन ऐसे लोग जो पहले से ही तनाव, अवसाद या कमजोर मनःस्तिथि का शिकार होते है, उनमें इस समस्या के होने की आशंका काफी ज्यादा होती है.

इस विकार से प्रभावित लोगों की स्तिथि पर ध्यान न दिया जाए तो कई बार परिणाम गंभीर भी हो सकते है जैसे पीड़ित की मनः स्तिथि पूरी तरह से खराब हो जाए या फिर कई बार वह स्वयं की जान लेने तक का प्रयास कर सकता है.

आंकड़ों की माने तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस विकार के विकसित होने की आशंका अधिक होती है. कुछ शोध में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि युद्ध और दंगों से प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग इस मनोदशा से अधिक पीड़ित होते हैं.

पीटीएसडी के कारण

डॉ. कृष्णन बताती है की यह स्तिथि ज्यादातर प्राकृतिक या अप्राकृतिक किसी भी कारण से अपने प्रियजन को खो देने, किसी अपराध का चश्मदीद बनने, हिंसक माहौल में पैदा होने वाले बच्चों तथा मारपीट या किसी भी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण जैसी गंभीर घटनाओं का शिकार बनने के कारण हो सकती है. यह डिसऑर्डर बच्चे, वयस्क, बुजुर्ग तथा महिला या पुरुष किसी को भी हो सकता है.

पीटीएसडी पर की गई एक रिसर्च के अनुसार हमारे मस्तिष्क का भावनाओं को नियंत्रित कारण वाला भाग हिप्पोकैंपस यदि आकार में छोटा होता है तो भी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसे मानसिक विकारों के होने की आशंका बढ़ जाती है.

पीटीएसडी के लक्षण

  • व्यक्ति का चिड़चिड़ा हो जाना तथा चित्त एकाग्र करने में समस्या होना.
  • सामाजिक जीवन से दूरी बना लेना तथा नींद, भूख और प्यास में कमी होना.
  • दुखद घटनाओं के दृश्य बार-बार याद आना और उस अनुभव को बार-बार महसूस करना.
  • नींद में चौंक जाना और सपनों में भी उन्हीं घटनाओं को लेकर रोना.
  • दोबारा ऐसी घटना होने की आशंका लगे रहना.
  • मनोदशा नकारात्मक हो जाना और छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान होना.

पीटीएसडी के उपचार

डॉ. कृष्णन बताती हैं की इस बीमारी के इलाज के लिए मरीज की काउंसलिंग, हिप्नोसिस और दवाइयों का सहारा लिया जाता है. चूंकि पीटीएसडी के कारण अलग-अलग होते है और और यह प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. इसलिए हर मरीज के इलाज भी अलग हो सकता है. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के मरीजों के लिए जरूरी है की इस विकार के बारे में जानकारी मिलते ही तुरंत मनोचिकित्सक की सलाह ले.

इस मनोविकार से पीड़ित लोगों के लिए प्राथमिक उपचारों में दवाइयां और टॉक थेरेपी शामिल हैं. पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का पता चलने के बाद मनोचिकित्सक मरीज को एंटीडिप्रेसेंट्स दवाओं, टॉक थेरेपी, एकल या ग्रुप साइकोथेरेपी, एक्सपोजर थेरेपी तथा कॉगनिटिव रिस्ट्रक्चरिंग थेरेपी की मदद से ठीक करने का प्रयास करते है.

पीटीएसडी पीड़ितों की कैसे करें मदद

इस मनोविकार से पीड़ित व्यक्तियों के परिजनों और दोस्तों के लिए जरूरी है की वे उनके साथ बड़े ही संयम और धैर्य के साथ पेश आए और उनके साथ नियमित संवाद बनाए रखें. उनके आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाने का प्रयास करें और उनसे हमेशा सकारात्मक बातें करें. जिससे वे ज्यादा बेहतर महसूस कर सके.

पीटीएसडी पीड़ितों के लिए जरूरी टिप्स

  • सोच और विचार दोनों को सकारात्मक बनाए रखने के लिए जरूरी है की पीटीएसडी मनोविकार से पीड़ित लोग तनाव से दूरी बनाकर रखें. जिसके लिए उन्हें नियमित तौर पर ध्यान और योग का अभ्यास करना चाहिए.
  • नियमित तौर पर व्यायाम भी सोच में सकरात्मकता ला सकता है तथा मूड और ऊर्जा को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है. इसके अलावा डांस, तैराकी और वॉक भी मन और सोच को प्रसन्न कर सकते हैं.
  • इस स्थिति में शराब या ड्रग्स का सेवन न केवल स्थिति को खराब करता है बल्कि कई अन्य मानसिक विकारो के पैदा होने की आशंका बढ़ा सकता है.
  • पीटीएसडी पीड़ितों को चाहिए की अपने चिकित्सक के अलावा अपने परिजनों और दोस्तों से संवाद बनाए रखें और उन्हे अपनी समस्या या चिंता से अवगत कराने का प्रयास करें.

कई बार कोई दुख, कोई दुर्घटना हमारे दिमाग पर इस कदर असर छोड़ जाती है कि लंबे समय तक उसके प्रभाव से निकल पाना संभव नहीं हो पाता है. यह स्तिथि सामान्य नहीं होती है बल्कि ध्यान न देने पर यह बीमारी का रूप ले सकती है. ऐसी ही एक बीमारी है पीटीएसडी यानि 'पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर'.

हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी दुखद या झकझोर देने वाली घटना का साक्षी बनता है. ज्यादातर लोग ऐसी घटनाओं का दर्द मन में समेट कर जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन कई बार कुछ लोगों के दिल दिमाग पर इन दुखद घटनाओं का असर इस कदर होता है की वे सदमें का शिकार हो जाते है, और उदासी, तनाव और निराशा से घिर जाते है. ऐसे लोगों तथा उनकी समस्या पर यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो वह गंभीर मानसिक विकारों का कारण बन सकती है. ऐसी ही एक मनोविकार है ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ जिसे पीटीएसडी के नाम से भी जाना जाता है. क्या है पीटीएसडी और किस तरह पीड़ित के जीवन को प्रभावित करती है इस बारे में ईटीवी सुखीभवः की टीम ने देहरादून की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर

डॉ. वीणा कृष्णन बताती हैं की पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो किसी दुर्घटना, प्रियजन की मृत्यु या अपंगता, सदमा, अपराध का साक्षी बनना तथा इन कारणों के चलते उत्पन्न हुए गंभीर मनोवैज्ञानिक मानसिक और भावनात्मक तनाव के कारण होता है. यह समस्या किसी भी लिंग या उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. लेकिन ऐसे लोग जो पहले से ही तनाव, अवसाद या कमजोर मनःस्तिथि का शिकार होते है, उनमें इस समस्या के होने की आशंका काफी ज्यादा होती है.

इस विकार से प्रभावित लोगों की स्तिथि पर ध्यान न दिया जाए तो कई बार परिणाम गंभीर भी हो सकते है जैसे पीड़ित की मनः स्तिथि पूरी तरह से खराब हो जाए या फिर कई बार वह स्वयं की जान लेने तक का प्रयास कर सकता है.

आंकड़ों की माने तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस विकार के विकसित होने की आशंका अधिक होती है. कुछ शोध में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि युद्ध और दंगों से प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग इस मनोदशा से अधिक पीड़ित होते हैं.

पीटीएसडी के कारण

डॉ. कृष्णन बताती है की यह स्तिथि ज्यादातर प्राकृतिक या अप्राकृतिक किसी भी कारण से अपने प्रियजन को खो देने, किसी अपराध का चश्मदीद बनने, हिंसक माहौल में पैदा होने वाले बच्चों तथा मारपीट या किसी भी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण जैसी गंभीर घटनाओं का शिकार बनने के कारण हो सकती है. यह डिसऑर्डर बच्चे, वयस्क, बुजुर्ग तथा महिला या पुरुष किसी को भी हो सकता है.

पीटीएसडी पर की गई एक रिसर्च के अनुसार हमारे मस्तिष्क का भावनाओं को नियंत्रित कारण वाला भाग हिप्पोकैंपस यदि आकार में छोटा होता है तो भी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसे मानसिक विकारों के होने की आशंका बढ़ जाती है.

पीटीएसडी के लक्षण

  • व्यक्ति का चिड़चिड़ा हो जाना तथा चित्त एकाग्र करने में समस्या होना.
  • सामाजिक जीवन से दूरी बना लेना तथा नींद, भूख और प्यास में कमी होना.
  • दुखद घटनाओं के दृश्य बार-बार याद आना और उस अनुभव को बार-बार महसूस करना.
  • नींद में चौंक जाना और सपनों में भी उन्हीं घटनाओं को लेकर रोना.
  • दोबारा ऐसी घटना होने की आशंका लगे रहना.
  • मनोदशा नकारात्मक हो जाना और छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान होना.

पीटीएसडी के उपचार

डॉ. कृष्णन बताती हैं की इस बीमारी के इलाज के लिए मरीज की काउंसलिंग, हिप्नोसिस और दवाइयों का सहारा लिया जाता है. चूंकि पीटीएसडी के कारण अलग-अलग होते है और और यह प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. इसलिए हर मरीज के इलाज भी अलग हो सकता है. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के मरीजों के लिए जरूरी है की इस विकार के बारे में जानकारी मिलते ही तुरंत मनोचिकित्सक की सलाह ले.

इस मनोविकार से पीड़ित लोगों के लिए प्राथमिक उपचारों में दवाइयां और टॉक थेरेपी शामिल हैं. पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का पता चलने के बाद मनोचिकित्सक मरीज को एंटीडिप्रेसेंट्स दवाओं, टॉक थेरेपी, एकल या ग्रुप साइकोथेरेपी, एक्सपोजर थेरेपी तथा कॉगनिटिव रिस्ट्रक्चरिंग थेरेपी की मदद से ठीक करने का प्रयास करते है.

पीटीएसडी पीड़ितों की कैसे करें मदद

इस मनोविकार से पीड़ित व्यक्तियों के परिजनों और दोस्तों के लिए जरूरी है की वे उनके साथ बड़े ही संयम और धैर्य के साथ पेश आए और उनके साथ नियमित संवाद बनाए रखें. उनके आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाने का प्रयास करें और उनसे हमेशा सकारात्मक बातें करें. जिससे वे ज्यादा बेहतर महसूस कर सके.

पीटीएसडी पीड़ितों के लिए जरूरी टिप्स

  • सोच और विचार दोनों को सकारात्मक बनाए रखने के लिए जरूरी है की पीटीएसडी मनोविकार से पीड़ित लोग तनाव से दूरी बनाकर रखें. जिसके लिए उन्हें नियमित तौर पर ध्यान और योग का अभ्यास करना चाहिए.
  • नियमित तौर पर व्यायाम भी सोच में सकरात्मकता ला सकता है तथा मूड और ऊर्जा को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है. इसके अलावा डांस, तैराकी और वॉक भी मन और सोच को प्रसन्न कर सकते हैं.
  • इस स्थिति में शराब या ड्रग्स का सेवन न केवल स्थिति को खराब करता है बल्कि कई अन्य मानसिक विकारो के पैदा होने की आशंका बढ़ा सकता है.
  • पीटीएसडी पीड़ितों को चाहिए की अपने चिकित्सक के अलावा अपने परिजनों और दोस्तों से संवाद बनाए रखें और उन्हे अपनी समस्या या चिंता से अवगत कराने का प्रयास करें.
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