नई दिल्ली: दक्षिण भारत में हिंदी भाषा का एक बार फिर विरोध शुरू हो गया है. दक्षिण भारत के नेता खुला कर इस मामले पर सामने आ रहे हैं और अपनी-अपनी बात रख रहे हैं. डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन, कमल हसन आदि ने अपना अपना पक्ष साफ किया है. इस पर केंद्र सरकार की ओर से प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा कि किसी पर इसे थोपना सरकार की मंश नहीं है.
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि किसी के ऊपर कोई भाषा थोपने की सरकार की किसी भी प्रकार की मंशा नहीं है. प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, 'नई शिक्षा नीति पर सिर्फ एक रिपोर्ट सौंपी गई है, सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है, सरकार ने इसे अभी देखा तक नहीं है. इसलिए ये गलतफहमी फैल गई है और ये झूठ है.'
इसी सिलसिले में डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने ट्वीट कर कहा है कि तामिल लोगों के खून में हिंदी की कोई जगह नहीं है. यदि हमारे राज्य के लोगों पर इसे थोपने की कोशिश की गई तो हम इसे रोकने के लिए युद्ध करने को भी तौयार हैं. नए चुने गए एमपी संसद में अपनी आवाज बुलंद करेंगे.
डीएमके और कमल हासन की पार्टी मक्कल निधि मैय्यम ने साफ कर दिया है कि उनके राज्य में हिंदी पढ़ाए जाने की किसी भी कोशिश का हर तरीके से विरोध किया जाएगा.
डीएमके सांसद के शिवा ने कहा कि तामिलनूडू में हिंदूी लीगू करने का प्रयास कर केंद्र सरकार आग से खेलने का प्रयास कर रही है. टी शिवा ने कहा, 'तमिलनाडु पर हिंदी भाषा थोपने की कोशिश को लोगों द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, हम लोग हिंदी भाषा को स्कूलों में पढ़ाने को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.'
मशहूर अभिनेका और मक्कल निधि मैय्यम के नेता कमल हसन भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसी के ऊपर हिंदी भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए. आगे वे कहते हैं कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया है, मेरे विचार से किसी पर भी हिंदी भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए.
बता दें, राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति नया ड्राफ्ट मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाव निशंक को ड्राफ्ट कमेटी ने दिया है. फॉर्मूला 1968 के तहत शिक्षा मंत्रालय ने तीन भाषाएं पढ़ाने पर जोर दिया था. इसमें हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा पढ़ाए जाने की बात कही गई है, लेकिन ये फॉर्मूला 1968 का तामिलनाडु में विरोध हुआ और ये लागू नही हो सका.