देश के आजाद होने के साढ़े पांच महीने पहले तक भारत का लोकतंत्र अपने नाजुक हालतों में था. फिर भी ये राष्ट्र 30 जनवरी, 1948 को भयावह और अविश्वास की स्थिति में आ गया. जब शुक्रवार की शाम को भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की खबर फैली.
महात्मा गांधी एक ऐसे पिता थे, जिनके पास अपने खुद के परिवार के लिए कम समय होता था.
गांधी का परिवार दुनिया में सबसे बड़ा था. उनका वह परिवार जिसकी न कोई जाति थी और न कोई धर्म था. वह परिवार जो सीमाओं से भी परे था. उस रात भारत के तीन सौ तीस करोड़ लोग रो रहे थे. उस रात भारत के तीन सौ तीस करोड़ लोगों ने खाना नहीं खाया.
उस वक्त समाचारों के त्वरित प्रसारण के लिए एकमात्र उपलब्ध माध्यम रेडियो था. जो सुरीले संगीत के साथ दुख के संदेशों का भी प्रसारण करता था.
उस समय हम सब अपने लड़कपन में थे. हम लड़के, जिन्हें इतने गहरे दुख की वजह तुरंत समझ नहीं आ रही थी. हम खेल के मैदान से क्रिकेट खेल कर घर लौटे थे.
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वहीं हम लोगों में से कुछ को इस बात से राहत थी की हमें अब कल स्कूल नहीं जाना होगा. लेकिन हम ये देख कर हैरान थे कि हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग रो रहे हैं. उस रात घर में खाना नहीं पाकाया गया. घरवाले रो रहे थे और उन्होंने पूरी रात रेडियो के साथ बिना कुछ खाए-पिए गुजार दी थी.
उसके बाद तो जब रेडियो पर सबने जवाहरलाल नेहरू का भाषण सुना, जिसमें उन्होंने कहा कि 'हमारे जीवन से रौशनी चली गई' तब तो हर किसी के आंसू निकल पड़े.
30 जनवरी 1948 को शुक्रवार का दिन हर भारतीय के लिए सबसे मनहूस दिन था. लेकिन 31 जनवरी भी उससे कुछ कम नहीं था. लाखों लोग बेतहाशा रो रहे थे.
सके बाद शनिवार शाम को गांधीजी के अंतिम संस्कार पर ऑल इंडिया रेडियो द्वारा मेलविले डी मोलो (Melville de Mellow) की लाइव कमेंटरी का प्रसारण किया जा रहा था.
आज 70 साल बाद यह सवाल किया जाता है कि 'हमारे लिए गांधीजी का क्या मतलब है.' ये अजीब लगता है. लेकिन फिर भी इसकी अपनी प्रासंगिकता है.
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भारत के एक अरब से अधिक लोगों के लिए गांधीजी आज भी 'प्रासंगिक' हैं. हालांकि, जो लोग गांधी के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, वे उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं. पिछले सात दशकों के दौरान शायद ही वह कभी राष्ट्रपिता के मूल्य को जान पाए हों.
हम अभी भी एक पिछड़े देश हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से हमारी आबादी ज्यादा है. हमारी आबादी संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी से भी ज्यादा है. उसके बावजूद हम गरीबी रेखा से भी नीचे हैं.
बेशक, समृद्धि के वह द्वीप भी हैं, जहां लोग खुद को मुख्यधारा से अलग महसूस करते हैं.
रोमेन रोलैंड (Romain Rolland) ने गांधीजी को 'क्राइस्ट विदाउट द क्रॉस' कहा है. गांधी ने मानव दुख और पीड़ा का भारी बोझ उठाया है और बड़े लंबे समय तक यही ईसा मसीह ने भी सहा था.
गांधी ने पवित्र और कठोर जीवन का नेतृत्व किया है. बिल्कुल उसी तरह जैसे हमारे महाकाव्यों में नायकों का जिक्र किया जाता है. गांधीजी का धर्म संपूर्ण मानवता के लिए था न कि किसी एक क्षेत्र या उसके लोगों के लिए था.
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गांधी ने कहा था कि धर्म वह है, जो दुनिया को सभी बुराईयों से मुक्त करे. सच्चा अर्थशास्त्र का मतलब सामाजिक न्याय है और स्वराज का अर्थ स्वतंत्रता है. यानि कमजोरों का सशक्तिकरण करना है.
अर्नेस्ट बार्कर (Ernest Barker) ने लिखा है कि गांधी में 'एक प्रेम भावना थी. गांधी का मानना था कि शासन और प्रशासनिक व्यक्तियों को सेवा भाव और संयम के साथ रहना चाहिए, बिना किसी फायदे की उम्मीद करते हुए.
लेकिन इस तरह के विचारों को आज के भारत में अजीब और 'असभ्य' माना जाएगा. जहां शीर्ष नेताओं और सिविल सेवकों को वेतन नियमित रूप से मिलता है और बढ़ाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें भी अपने संपन्न निजी क्षेत्र में दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है.
गांधीजी उन लोगों के लिए ज्यादा मायने नहीं रखते, जो राजनीति में हैं. खासकर सत्ता में रहने वालों के लिए. लेकिन गांधी न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत लोगों के लिए अहम हैं और मायने रखते हैं. क्योंकि गांधी प्यार से लोगों का दिल जीतने में विश्वास रखते थे और अपना जीवन मानव जाति के लिए जीते थे.
(लेखक- प्रो. ए प्रसन्ना कुमार)
(आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी है. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.)