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भारत में हर मिनट दूसरा व्यक्ति हो रहा पैरालिसिस का शिकार - भारत में पैरालिसिस

पैरालिसिस (लकवा) से ग्रसित होने के बाद विकसित देशों ने समय के महत्व को माना और सही समय पर मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के को सही करने की पूरी कोशिश की. उचित समय में उपचार प्रदान करके पश्चिमी देशों ने पैरालिसिस को नियंत्रित किया है.

problem of paralysis in india
गंभीर बीमारी है पैरालिसिस
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Published : Oct 29, 2020, 9:56 PM IST

Updated : Oct 29, 2020, 10:18 PM IST

बेंगलुरु : आधुनिक युग में जैसे-जैसे लोगों की जीवन शैली बदल रही है, वैसे-वैसे स्वास्थ्य की समस्याएं भी बढ़ रही हैं. टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटल्स और मेडिसिन्स के विकास के बाद अधिक से अधिक मानव रोगग्रस्त हो रहे हैं. हाल के दिनों में लोग पक्षाघात से अधिक पीड़ित हैं और यदि उचित उपचार उपलब्ध है, तो इसे ठीक भी किया जा सकता है.

बता दें, ब्रेन में रक्त परिसंचरण में गड़बड़ी होने और रक्त वाहिकाओं के रुकने से पक्षाघात मानव शरीर पर हमला करता है. वहीं, जब मस्तिष्क की कोशिकाओं में रक्त का संचार कम या रुक जाता है, तो कोशिकाएं कुछ सेकंड में ही निष्क्रिय हो जाती हैं. अंत में हकलाना और मेमोरी लॉस और इसके अलावा स्टैमर की तरह बन जाता है और कभी-कभी यह बोलने की क्रिया को पूरी तरह से रोक देता है.

क्या कहती है वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार पैरालिसिस से वैश्विक मृत्यु दर का दूसरा स्थान है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैरालिसिस के अनुसार हर मिनट में एक व्यक्ति पक्षाघात से पीड़ित है. भारत में इनमें से 90% मामलों में समय पर उपचार की उचित सुविधा नहीं मिल पाती है. यदि किसी को पैरालिसिस (लकवा) पड़ता है तो दौरा पड़ने के 4 से 6 घंटे के बीच उचित इलाज दिया जाए, तो उसे बचाया जा सकता है. यह समय इलाज देने के लिए पर्याप्त होता है. उपचार को एक अच्छे समय में प्रदान करके उस प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकता है, जिसमें मस्तिष्क कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती हैं. यदि पक्षाघात वाले व्यक्ति को एक घंटे के भीतर उपचार मिलता है, तो निश्चित रूप से वह जल्द ही ठीक हो जाएगा. इन प्रकार की उपचार सेवाओं को समय पर प्रदान करने से 65% मामलों का इलाज होगा.

पढ़ें: दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका

पक्षाघात के आकड़े जानना आवश्यक

समग्र राष्ट्रीय आकड़ों पर विचार किया जाए, तो प्रति एक लाख लोगों में से 119 से 145 लोगों को पैरालिसिस पड़ता है. एक साल में एक करोड़ की आबादी में 12,000 से 15,000 मामले सामने आते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पैरालिसिस के मामलों की दर अधिक होगी. इसका मतलब कि प्रति एक लाख आबादी पर 164 से 205 लोगों को पैरालिसिस होगा. विकसित देशों में पक्षाघात नियंत्रण कार्यक्रम से 42% तक इस दर को कम किया गया है. पैरालिसिस से ग्रसित होने के बाद विकसित देशों ने समय के महत्व को माना और सही समय पर मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के को सही करने की पूरी कोशिश की. उचित समय में उपचार प्रदान करके पश्चिमी देशों ने पैरालिसिस को नियंत्रित किया है. अगर यही प्रक्रिया अपने देश में अपनाई जाए, तो पैरालिसिस के मामलों को नियंत्रित करने में सफलता मिल सकती है.

पैरालिसिस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका हमारा स्थानीय मॉडल

बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल द्वारा मॉडल विकसित दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सिस्टम से लैस एक राज्य का सबसे अच्छा मॉडल है. जानकारी के मुताबिक निमहंस अस्पताल में पैरालिसिस के ऐसे 25 फीसदी मामले आते हैं. बेंगलुरु का निमहंस अस्पताल हर महीने 200 से 250 पैरालिसिस के मामलों का इलाज करता है. बेंगलुरु और अन्य जिलों के आस-पास के विभिन्न अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल संगठन इन मामलों को सीधे निमहंस अस्पताल में भेज देते हैं. जिसका समय पर उपचार किया जाता है, लेकिन राज्य के अन्य हिस्सों में देरी से आने वाले मरीजों का इलाज नहीं किया जा रहा है.

बेंगलुरु : आधुनिक युग में जैसे-जैसे लोगों की जीवन शैली बदल रही है, वैसे-वैसे स्वास्थ्य की समस्याएं भी बढ़ रही हैं. टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटल्स और मेडिसिन्स के विकास के बाद अधिक से अधिक मानव रोगग्रस्त हो रहे हैं. हाल के दिनों में लोग पक्षाघात से अधिक पीड़ित हैं और यदि उचित उपचार उपलब्ध है, तो इसे ठीक भी किया जा सकता है.

बता दें, ब्रेन में रक्त परिसंचरण में गड़बड़ी होने और रक्त वाहिकाओं के रुकने से पक्षाघात मानव शरीर पर हमला करता है. वहीं, जब मस्तिष्क की कोशिकाओं में रक्त का संचार कम या रुक जाता है, तो कोशिकाएं कुछ सेकंड में ही निष्क्रिय हो जाती हैं. अंत में हकलाना और मेमोरी लॉस और इसके अलावा स्टैमर की तरह बन जाता है और कभी-कभी यह बोलने की क्रिया को पूरी तरह से रोक देता है.

क्या कहती है वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार पैरालिसिस से वैश्विक मृत्यु दर का दूसरा स्थान है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैरालिसिस के अनुसार हर मिनट में एक व्यक्ति पक्षाघात से पीड़ित है. भारत में इनमें से 90% मामलों में समय पर उपचार की उचित सुविधा नहीं मिल पाती है. यदि किसी को पैरालिसिस (लकवा) पड़ता है तो दौरा पड़ने के 4 से 6 घंटे के बीच उचित इलाज दिया जाए, तो उसे बचाया जा सकता है. यह समय इलाज देने के लिए पर्याप्त होता है. उपचार को एक अच्छे समय में प्रदान करके उस प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकता है, जिसमें मस्तिष्क कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती हैं. यदि पक्षाघात वाले व्यक्ति को एक घंटे के भीतर उपचार मिलता है, तो निश्चित रूप से वह जल्द ही ठीक हो जाएगा. इन प्रकार की उपचार सेवाओं को समय पर प्रदान करने से 65% मामलों का इलाज होगा.

पढ़ें: दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका

पक्षाघात के आकड़े जानना आवश्यक

समग्र राष्ट्रीय आकड़ों पर विचार किया जाए, तो प्रति एक लाख लोगों में से 119 से 145 लोगों को पैरालिसिस पड़ता है. एक साल में एक करोड़ की आबादी में 12,000 से 15,000 मामले सामने आते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पैरालिसिस के मामलों की दर अधिक होगी. इसका मतलब कि प्रति एक लाख आबादी पर 164 से 205 लोगों को पैरालिसिस होगा. विकसित देशों में पक्षाघात नियंत्रण कार्यक्रम से 42% तक इस दर को कम किया गया है. पैरालिसिस से ग्रसित होने के बाद विकसित देशों ने समय के महत्व को माना और सही समय पर मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के को सही करने की पूरी कोशिश की. उचित समय में उपचार प्रदान करके पश्चिमी देशों ने पैरालिसिस को नियंत्रित किया है. अगर यही प्रक्रिया अपने देश में अपनाई जाए, तो पैरालिसिस के मामलों को नियंत्रित करने में सफलता मिल सकती है.

पैरालिसिस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका हमारा स्थानीय मॉडल

बेंगलुरु के निमहंस अस्पताल द्वारा मॉडल विकसित दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सिस्टम से लैस एक राज्य का सबसे अच्छा मॉडल है. जानकारी के मुताबिक निमहंस अस्पताल में पैरालिसिस के ऐसे 25 फीसदी मामले आते हैं. बेंगलुरु का निमहंस अस्पताल हर महीने 200 से 250 पैरालिसिस के मामलों का इलाज करता है. बेंगलुरु और अन्य जिलों के आस-पास के विभिन्न अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल संगठन इन मामलों को सीधे निमहंस अस्पताल में भेज देते हैं. जिसका समय पर उपचार किया जाता है, लेकिन राज्य के अन्य हिस्सों में देरी से आने वाले मरीजों का इलाज नहीं किया जा रहा है.

Last Updated : Oct 29, 2020, 10:18 PM IST
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