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देश के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों को केंद्र से मदद की दरकार

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Published : Feb 10, 2021, 5:35 PM IST

Updated : Feb 10, 2021, 6:46 PM IST

प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध में गैर सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की स्थिति खराब होती जा रही है. मामूली फीस पर शिक्षा देने वाले इन स्कूलों को केंद्र सरकार से मदद की दरकार है.

प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय
प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय

नई दिल्ली : प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर लाखों की संख्या में स्कूल शिक्षा दे रहे हैं. इन विद्यालयों को सरकार से मान्यता प्राप्त है और इनमें प्रशिक्षित शिक्षक ही बच्चों को पढ़ाते रहे हैं.

मामूली फीस के साथ इस तरह की शिक्षण व्यवस्था देश के अलग-अलग राज्यों में पिछले पांच दशक से चल रही है लेकिन आज ऐसे विद्यालयों की स्थिति दिन ब दिन दयनीय होती जा रही है. ऐसे स्कूलों को केंद्र से मदद की दरकार है.

प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर लंबे अरसे से आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्ग को शिक्षा देने के कार्य में लाखों स्कूल जुटे हैं लेकिन प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध में इनकी स्थिति खराब होती जा रही है. रंगनाथन कमेटी को दिए सुझाव में उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन ने मांग की थी कि नई शिक्षा नीति में ऐसे विद्यालयों को सरकारी मदद देने का प्रावधान किया जाए.

इस तरह के विद्यालय ज्यादातर सामाजिक संगठनों द्वारा चलाए जाते हैं जो दलित और पिछड़े वर्ग के बीच काम करते हैं, ऐसे में यहां पढ़ने वाले बच्चे 25 रुपये से 100 रुपये तक की मामूली फीस भी नहीं भर पाते.

इतना ही नहीं, यहां पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूल की तरह मिड डे मील, यूनिफॉर्म, किताबें आदि की सुविधा भी प्राप्त नहीं होती क्योंकि ये सरकारी विद्यालय की श्रेणी में नहीं आते और न ही कोई सरकारी वित्तीय सहायता इन्हें मिलती है.

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ऐसे ही एक विद्यालय का संचालन राम नरेश भारतीय कई वर्षों से कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन के अध्यक्ष राम नरेश भारतीय कहते हैं कि ऐसे विद्यालयों के पास पुराने समय से परिसर, क्लासरूम एवं अन्य व्यवस्थाएं सरकारी विद्यालय के तर्ज पर ही सामाजिक सहयोग से ही रही हैं, लेकिन आज के समय में ये व्यवस्था प्राइवेट और अत्याधुनिक शिक्षा के बीच चरमरा चुकी है. मान्यता प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के लिए नई शिक्षा नीति में कोई प्रावधान नहीं किए जाने से ऐसा हुआ.

एनजीओ की मदद काफी नहीं
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए अनुदान जरूर दिया जाता है. उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन की मांग पर कुछ एनजीओ भी विद्यालयों को अनुदान देकर संचालित करने में मदद कर रहे हैं लेकिन ये काफी नहीं है. इन स्कूलों को केंद्र सरकार से बजटीय प्रावधान कर वित्तीय सहायता की दरकार है.

पढ़ें- जानें कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में छात्राओं के नामांकन की क्या है स्थिति

राम नरेश भारतीय कहते हैं कि इस तरह के विद्यालयों का शिक्षा के स्तर बढ़ाने में योगदान है इसलिए सरकार को जरूर मदद करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और शिक्षा मंत्री को भी इस बाबत ज्ञापन सौंपा था. अब एक बार फिर वह इन विद्यालयों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं.

नई दिल्ली : प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर लाखों की संख्या में स्कूल शिक्षा दे रहे हैं. इन विद्यालयों को सरकार से मान्यता प्राप्त है और इनमें प्रशिक्षित शिक्षक ही बच्चों को पढ़ाते रहे हैं.

मामूली फीस के साथ इस तरह की शिक्षण व्यवस्था देश के अलग-अलग राज्यों में पिछले पांच दशक से चल रही है लेकिन आज ऐसे विद्यालयों की स्थिति दिन ब दिन दयनीय होती जा रही है. ऐसे स्कूलों को केंद्र से मदद की दरकार है.

प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर लंबे अरसे से आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्ग को शिक्षा देने के कार्य में लाखों स्कूल जुटे हैं लेकिन प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध में इनकी स्थिति खराब होती जा रही है. रंगनाथन कमेटी को दिए सुझाव में उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन ने मांग की थी कि नई शिक्षा नीति में ऐसे विद्यालयों को सरकारी मदद देने का प्रावधान किया जाए.

इस तरह के विद्यालय ज्यादातर सामाजिक संगठनों द्वारा चलाए जाते हैं जो दलित और पिछड़े वर्ग के बीच काम करते हैं, ऐसे में यहां पढ़ने वाले बच्चे 25 रुपये से 100 रुपये तक की मामूली फीस भी नहीं भर पाते.

इतना ही नहीं, यहां पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूल की तरह मिड डे मील, यूनिफॉर्म, किताबें आदि की सुविधा भी प्राप्त नहीं होती क्योंकि ये सरकारी विद्यालय की श्रेणी में नहीं आते और न ही कोई सरकारी वित्तीय सहायता इन्हें मिलती है.

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ऐसे ही एक विद्यालय का संचालन राम नरेश भारतीय कई वर्षों से कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन के अध्यक्ष राम नरेश भारतीय कहते हैं कि ऐसे विद्यालयों के पास पुराने समय से परिसर, क्लासरूम एवं अन्य व्यवस्थाएं सरकारी विद्यालय के तर्ज पर ही सामाजिक सहयोग से ही रही हैं, लेकिन आज के समय में ये व्यवस्था प्राइवेट और अत्याधुनिक शिक्षा के बीच चरमरा चुकी है. मान्यता प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के लिए नई शिक्षा नीति में कोई प्रावधान नहीं किए जाने से ऐसा हुआ.

एनजीओ की मदद काफी नहीं
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए अनुदान जरूर दिया जाता है. उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन की मांग पर कुछ एनजीओ भी विद्यालयों को अनुदान देकर संचालित करने में मदद कर रहे हैं लेकिन ये काफी नहीं है. इन स्कूलों को केंद्र सरकार से बजटीय प्रावधान कर वित्तीय सहायता की दरकार है.

पढ़ें- जानें कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में छात्राओं के नामांकन की क्या है स्थिति

राम नरेश भारतीय कहते हैं कि इस तरह के विद्यालयों का शिक्षा के स्तर बढ़ाने में योगदान है इसलिए सरकार को जरूर मदद करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और शिक्षा मंत्री को भी इस बाबत ज्ञापन सौंपा था. अब एक बार फिर वह इन विद्यालयों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं.

Last Updated : Feb 10, 2021, 6:46 PM IST

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