हल्द्वानी: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को कुछ ही दिन बचे हैं, जन्माष्टमी को लेकर बाजार सज चुके हैं. इसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है और लोग मार्केट में जमकर खरीददारी कर रहे हैं. वहीं, लोग श्रीकृष्ण से जुड़े साजो सामान को बाजार से खरीद रहे हैं. श्रद्धालु अपने आराध्य की उपासना के लिए अंगवस्त्र से लेकर बांसुरी और मोर पंख की जमकर खरीददारी कर रहे हैं.
जन्माष्टमी की पूजा में भगवान का श्रृंगार अहम माना जाता है. माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जितना श्रृंगार कर पूजा की जाए उतना ही फलदाई होता है और श्री कृष्ण प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. भगवान कृष्ण बांसुरी और मोर पंख के बिना अधूरे लगते हैं. हल्द्वानी के बाजारों में इन दिनों बांसुरी और मोर पंख की बिक्री खूब देखने को मिल रही है.
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की मशहूर बांसुरी और मोर पंख यहां के लोगों को खूब भा रही है. लोग श्री कृष्ण भगवान के आराधना के लिए बांसुरी और मोर पंख की खूब खरीदारी कर रहे हैं. कृष्ण भक्तों का कहना है कि जन्माष्टमी के दिन मोर पंख और बांसुरी की पूजा करने से घर में सुख शांति मिलती है. पीलीभीत से आए बांसुरी और मोर पंख के बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि जन्माष्टमी के मौके पर बांसुरी और मोर पंखों की डिमांड बढ़ जाती है. हर साल हल्द्वानी पहुंचते हैं और यहां मोर पंख और बांसुरी बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं.
मोर पंख का महत्व
भगवान कृष्ण का नाम आते हैं हमारे मन में भगवान की बाल्य और युवावस्था की सुंदर छवि सामने आ जाती है. श्री कृष्ण के मस्तक पर मोर पंख और बांसुरी हमेशा ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करती रही है. मान्यता है कि राधा रानी की महल में बहुत मोर हुआ करते थे, जब भगवान कृष्ण बांसुरी बजाते थे तो राधा रानी बांसुरी की धुन पर नृत्य करती थी. जिसको देखकर वहां के मोर भी नृत्य क्या करते थे. बताया जाता है कि एक दिन भगवान कृष्ण मोर के गिरे हुए पंख को राधा रानी के प्रेम की निशानी के तौर पर उठाकर अपने मस्तक में लगा लिया.तभी से मोर का पंख राधा रानी और श्री कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है.
ये है बांसुरी का राज
बताया जाता है कि द्वापर युग के समय भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया तब सभी देवी देवता श्री कृष्ण से मिलने के लिए भेष बदलकर धरती पर आने लगे. भगवान शिव को भी श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने श्रीकृष्ण को उपहार देने के लिए सोचने लगे तभी भगवान शिव को विचार आया कि श्री कृष्ण को ऐसा उपहार दिया जाए जो श्री कृष्ण को प्रिय हो और हमेशा अपने पास रखे रहें. तभी भगवान शिव को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की मां शक्तिशाली हड्डी पड़ी हुई है.
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ऋषि दधीचि वही महान ऋषि थे जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया और अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दिया था. ऋषि दधीचि के हड्डियों से भगवान विश्वकर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गाण्डीव और सारंग तथा भगवान इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था.
जिसके बाद भगवान शिव ने ऋषि दधीचि के हड्डी को घिसकर एक सुंदर और सुरीली बांसुरी का निर्माण किया. जब भगवान शिव श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने वह बांसुरी भेंट स्वरूप श्री कृष्ण को दी. तभी से श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखने लगे और बांसुरी की धुन पर गोपियों से रास रचाते थे.