गुवाहाटी: राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के स्टेट को-ऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने गुवाहाटी के नागरिक फोरम द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है. हजेला ने दावा किया, 'नागरिक फोरम असम के लोगों को गुमराह कर रहा है, और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के प्रमाणीकरण व्यवस्था के मूल तत्वों से 'अनभिज्ञ' है.'
दरअसल एनआरसी से जुड़े मुद्दे को उठाने के लिए 'सचेतन नागरिक मंच' को नागरिक समूह द्वारा स्थापित किया गया है. इस फोरम ने हजेला और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को ज्ञापन इस महीने के शुरू में सौंपा था.
ज्ञापन में गलत तरीके से दस्तावेज़ का उपयोग और अवैध नाम जोड़ने का आरोप लगाया है. वहीं, अंतिम सूची शनिवार को जारी होगी.
इस मंच ने हाल ही में त्रुटि-मुक्त NRC के लिए नई दिल्ली में प्रदर्शन किया था. इनकी मांग थी असमिया पहचान के लिए सही प्रमाण वाले डेटा का अवैध तरीके से उपयोग का सीबीआई जांच की जाए.
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मंच द्वारा एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बिंदु-दर-बिंदु खंडन करते हुए हजेला ने मंच के अध्यक्ष को पत्र लिखा है. पत्र में लिखा है, 'ऐसा लगता है कि आपका संगठन केवल बयानबाजी में शामिल है. जिम्मेदारी निभाने से आप दूर है.आपके आरोप में लेशमात्र का सबूत नहीं हैं.'
29 अगस्त की तारीख में हजेला ने पत्र में लिखा है कि एनआरसी को अपडेट करने जैसे संवेदनशील मामले में असम की जनता को गुमराह करने के उद्देश्य से आरोप लगाया गया है.
मंच ने दावा किया है, उसके ज्ञापन में 25 लाख लोगों क हस्ताक्षर हैं. इस पर उन्होंने कहा कि इसमें 1,84,734 नाम के सामने केवल 1,67,758 व्यक्तियों के हस्ताक्षर हैं.
उन्होंने कहा, 'असम के 25 लाख स्थायी नागरिकों के दावे के मुताबिक हस्ताक्षर है. लेकिन ज्ञापन पर कोई साक्ष्य नहीं है.'
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हजेला ने कहा कि फोरम ने 'एआरएन नंबर 30071, 301664' जैसे कुछ पंजीकरण नंबरों का उल्लेख किया है, जो संदिग्ध लोगों की सूची में शामिल हैं. लेकिन एनआरसी में 'एआरएन' नंबर 21 संख्या की होती है, जबकि दिए हुए अंकों की संख्या सिर्फ 5 अंकों की है. इसलिए वह ARN नंबर नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा कि फोरम ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई है, हालांकि सिर्फ आरोप लगाया गया है कि NRC के मसौदे में बड़ी संख्या में विदेशियों को शामिल किया गया है.
हजेला ने कहा, 'वास्तव में यह संगठन 30/07/2018 को आखिरी NRC का ड्राफ्ट के प्रकाशन तक एक भी गलत मामला नहीं ला पाया है.'
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NRC सूची के प्रकाशन के बाद किसी भी गलत नाम पर आपत्ति दर्ज करने का एक वैधानिक प्रावधान है.
ज्ञापन में यह भी आरोप लगाया गया कि एनआरसी अपडेट की प्रक्रिया की जांच में किसी भी वैज्ञानिक प्रणाली का पालन नहीं किया गया है.
इस मसले पर राज्य समन्वयक ने कहा कि सभी दस्तावेजों को अधिकारियों के ने जांचा था. सभी कागजात रिकॉर्ड में उपलब्ध थे.
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उन्होंने कहा कि बेहद नवीन सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित प्रणाली की मदद से चार वर्षों से छह करोड़ दस्तावेज संभाले गए थे.
हालांकि हजेला ने कहा कि, 'ऐसा मालूम होता है कि दस्तावेजों की प्रामाणिकता का सत्यापन न करने का आरोप NRC जांच प्रणाली की अज्ञानता के कारण उपजा है.'
उन्होंने कहा कि सत्यापन का एक और वैज्ञानिक तरीका पारिवारिक वंशानुगत है, जिसमें एक ही पूर्वज से वंशज होने का दावा करने वाले सभी व्यक्तियों की पीढ़ी की जांच शामिल है.
दरअसल राज्य समन्वयक ने इस आरोप पर सवाल उठाया कि भारत-बांग्लादेश की सीमा वाले जिलों में अन्य जगहों की तुलना में कम बहिष्कार देखा गया है.
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हजेला ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि विशेष क्षेत्र से घुसपैठ लगभग एक सदी से हो रहा है. 'यह कैसे पता चलेगा की 1971 के बाद सभी घुसपैठिए सीमावर्ती जिलों में ही सीमित है.'
उन्होंने इस फोरम को सलाह दी कि वे सीमावर्ती जिलों के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा घोषित अवैध प्रवासियों की संख्या से संबंधित जानकारी अधिकारियों से पता करें.
उल्लेखनीय है असम 20 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों से ही बांग्लादेश के लोगों की घुसपैठ का सामना किया था. इसलिए 1951 में पहली बार एनआरसी तैयार किया गया था.
तब से पहली बार अब एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है.