नई दिल्ली: सीबीआई मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करना प्रशांत भूषण को महंगा बड़ गया. सुप्रीम कोर्ट उन्हें अवमानना का नोटिस भेजा है. अटॉर्नी जनरल और केन्द्र सरकार ने भूषण पर मीडिया में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया था. हालांकि, एजी ने कहा कि वे भूषण को सजा दिलवाना नहीं चाहते हैं. पर केन्द्र सरकार चाहती है कि उन्हें सबक मिले.
एजी केके वेणुगोपाल ने कहा कि वह प्रशांत भूषण के आरोपों से आहत हैं. उन्होंने कहा कि पेंडिंग मामलों में एक वकील को किस तरह से टिप्पणी करनी चाहिए, ये उन्हें अवश्य जानना चाहिए.
णुगोपाल ने कहा कि वकीलों को केस के तथ्यों पर सुनवाई के दौरान बात नहीं करनी चाहिए. यह अदालत की गंभीर अवमानना है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम बड़े मुद्दे पर बहस कर रहे हैं कि जब कोई मामला अदालत में लंबित हो, तो क्या कोर्ट की आलोचना की जा सकती है. क्या कोई भी वकील पब्लिक ऑपिनियन बनाकर किसी पक्ष के न्याय पाने के अधिकार को प्रभावित करता है.
याचिका की सुनावई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि कोर्ट की कार्यवाही की रिपोर्टिंग की जा सकती है. लेकिन जो केस लंबित हैं, उन पर किसी भी वकील को मीडिया में बयान देने से बचना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि अवमानना के साथ-साथ किसी वकील को सजा देने का कदम सबसे आखिरी होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. बार न्यायपालिका की सरंक्षक है. बार को कोई गाइडलाइन तैयार करनी चाहिए. वो तय कर लें कि कब मीडिया को ब्रीफ करना है और कब नहीं.
केन्द्र सरकार की ओर से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी ने ऐसा कहा है. ऐसा बार-बार होता है. अब वक्त आ गया है कि कोर्ट इस तरह के मामले में सजा सुनाए. वो बताए कि वह कमजोर नहीं है.
मेहता ने कहा कि आखिर कोर्ट और जज पर सवाल उठाए जाते हैं. बताया जाता है कि यह कोर्ट के लिए काला दिन है.
दरअसल, प्रशांत भूषण ने सीबीआई के अंतरिम प्रमुख एम नागेश्वर राव की नियुक्ति पर गलत बयान दिया था. उनका कहना था कि अटॉर्नी जनरल ने केन्द्र सरकार की तरफ से पेश होकर राव की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गलत जानकारी दी है.