नई दिल्ली : चीन पूर्वी तिब्बत में यारलुंग त्संग्पो-ब्रह्मपुत्र नदी पर कम से कम दो और बिंदुओं पर बांध बनाने की योजना बना रहा है. बिजली उत्पन्न करने की चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना जैसा मानव इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता. इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश के निचले क्षेत्रों में खतरों के कम होने की कोई संभावना नहीं है.
इस मुद्दे का अध्ययन करने वाले दो वैज्ञानिकों ने ईटीवी भारत को बताया कि यह तकनीकी रूप बेहद चुनौतीपूर्ण परियोजना है, जिसमें 40-50 किमी लंबी सुरंगों के माध्यम से लगभग दो किमी तक लहराती पानी की लहरों को निकाला जाएगा.
दोनों बांध स्थलों की पहचान मेटोक (मेडोग या मोटूओ) और दादुओ में की गई है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से ज्यादा दूर नहीं हैं.
दो वैज्ञानिकों डॉ नयन शर्मा और डॉ धीरज कुमार द्वारा लिखे गए एक अप्रकाशित लेख के अनुसार दोनों (मेटोक और दादुओ बांध) एक मानव निर्मित शॉर्ट-कट सुरंग के माध्यम से नदी से पानी निकालने का कार्य करेंगे. इस परियोजना में ग्रेड बेंड को नजर अंदाज किया गया है.
उन्होंने लिखा कि वहां पहाड़ी के नीचे खोदाई कर सुंरगों का निर्माण किया जाएगा, इन पहाड़ियों में नमचा बरवा (7780 मीटर) और ग्याला पेरी (7293 मीटर) सहित दुनिया की कुछ सबसे ऊंची चोटियां मौजूद हैं, जिसके नीचे स्थित फ्रेंजिंग त्सेंगपो नदी 180 डिग्री का मोड़ लेती है जिसे ग्रेट बेंड कहा जाता है.
शर्मा और कुमार ने रिपोर्ट में लिखा है, 'यह (बांध परियोजना) भारी टरबाइनों को 2 किलोमीटर से अधिक चलाने के लिए कम पानी का उपयोग करती है और उस पैमाने पर बिजली का उत्पादन करता है, जो दुनिया के सबसे बड़े बिजली संयंत्र थ्री गोरजेस को भी बौना बना देता है.'
रिपोर्ट कहती है कि चीनी पनबिजली इंजीनियरों ने न केवल इस तरह की योजनाओं को शुरू किया है, बल्कि उन्होंने अल्ट्रा हाई वोल्टेज केबलों के लिए प्रस्तावित मार्गों को भी उजागर किया है, जिससे पश्चिमी चीन के मुख्य शहरों, चोंगकिंग और चेंगदू तक पहुंचने के लिए पास की नदियों के गहरे घाटों पर चीन अपना कदम रखेगा.
हाल ही में चीनी मीडिया ने यह भी बताया है कि उत्पन्न भारी बिजली का उपयोग नेपाल और चीन के पड़ोसी देशों को बिजली की आपूर्ति करने के लिए भी किया जाएगा. जहां मेटोक बांध में 38,000 मेगावाट (मेगावाट) बिजली उत्पादन क्षमता है, वहीं दादुओ बांध की क्षमता 43,800 मेगावाट होने की संभावना है.
इसके अलावा 18,600 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाला दुनिया का सबसे बड़ा थ्री गोरजेस डैम भी चीन में ही है.
जंगमो (510 मेगावाट) में एक बहुत छोटी क्षमता का बांध पहले से ही त्सांगपो पर परिचालन कर रहा है, हालांकि ग्रेट बेंड श्चिम में काफी दूरी पर है.
शर्मा के अनुसार, यारलुंग त्सांगपो पानी बांध स्थल पर लगभग 30 मीटर प्रति सेकंड के अद्भुत वेग से नीचे गिर सकता है, बेहद सस्ती कीमत पर अविश्वसनीय बिजली पैदा करेगा.इसका मतलब है कि पानी लगभग 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सफर तय करेगा.
मानसून की बाढ़ के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का औसत वेग गुवाहाटी के पास 5-6 मीटर प्रति सेकंड के बीच होता है, जबकि इसी अवधि के दौरान, पटना के पास गंगा 5 मीटर प्रति सेकंड पर होती है.
दोनों वैज्ञानिकों का तर्क है कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन या कृत्रिम प्रवाह के कारण यारलुंग त्संगपो में धारा प्रवाह में जरा सी भी कमी, भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र के बहाव क्षेत्रों में जल संसाधनों की मात्रा पर बहुत गंभीर प्रभाव डालेगी. इसके अलावा यह गैर-मानसून शुष्क मौसम के प्रवाह को कम करेगा.
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संभावित बड़े भूकंप की स्थिति में पूर्वी तिब्बत में असम के मैदानों में यारलुंग त्संग्पो पर बने बड़े बांधों की कोई भी संभावित विफलता अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य में भारतीय मैदानों के लिए बहुत ही गंभीर खतरा पैदा कर सकती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि यारलुंग त्संग्पो के किसी भी नदी के मोड़ के कारण, अन्य महत्वपूर्ण पानी का उपयोग अर्थात् - इकोलॉजी, अंतर्देशीय नेविगेशन ( inland navigation ) और पीने के पानी को विशेष रूप से गैर-मानसून मौसम में कम कर सकती है.
शर्मा ने आईआईटी रुड़की में फैकल्टी के रूप में दशकों तक दुनिया भर की नदी इंजीनियरिंग परियोजनाओं पर 45 वर्षों तक काम किया है.
50 से अधिक परामर्श परियोजनाओं को पूरा करने के बाद, कुमार ने जल संसाधन इंजीनियरिंग पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 20 से अधिक शोध पत्र और लेख लिखे हैं.