नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शासन के शुरुआती दिनों में न खाऊंगा-न खाने दूंगा, न मैं भ्रष्ट बनूंगा और न ही भ्रष्टाचार करने दूंगा की घोषणा की थी उस वक्त भारत दुनिया के 180 देशों में भ्रष्टाचार सूचकांक में 85वें स्थान पर था. पांच साल बीत जाने के बाद अब यह 80वें स्थान पर है.
निगरानी सप्ताह के दौरान आयोजित एक सम्मेलन मे प्रधानमंत्री ने सभी शक्तियों से एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी तरह से युद्ध छेड़ने का आग्रह किया था, क्योंकि भारत के आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य को हासिल करने में भ्रष्टाचार एक प्रमुख बाधक बन चुका है. प्रधानमंत्री का विश्लेषण है कि अपराध, मादक पदार्थों की तस्करी, जाली नोट और आतंकवादियों की पैसों की जरूरतें पूरी करना सब एक-दूसरे के मिले होने के संकेत देते हैं.
'देश का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार'
पीएम मोदी ने यह भी बताया कि भ्रष्टाचार किस तरह से विकास की गति को धीमा कर रहा था. देश की व्यवस्था का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार सामाजिक संतुलन को नष्ट कर रहा था और देश में वंशानुगत भ्रष्टाचार किस तरह से व्याप्त था. भ्रष्टाचार के मामलों में दोषियों को जल्द सजा नहीं मिलती, इसलिए दोषी निडर होकर अपनी मर्जी से और अधिक अपराधों को अंजाम देते. कटु सत्य यह है कि भ्रष्टाचार के सभी रूपों का मूल कारण राजनीतिक भ्रष्टाचार है.
उच्चतर अदालत ने जताई थी नाराजगी
सर्वोच्चय अदालत ने पांच साल पहले नाराजगी जताई थी कि भ्रष्टाचारियों को दंड देने के लिए एजेंसी के रूप में बना केंद्रीय सतर्कता आयोग प्रभावहीन हो गया है और राज्यों में केंद्रीय सतर्कता कार्यालयों का काम सिर्फ डाक भेजने तक रह गया है. समय के साथ अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को खत्म करने, परमिट के नियमों का सरलीकरण का क्या लाभ यदि राजनीतिक भ्रष्टाचार और चुनाव में अवैध नकदी की गंदगी बहती रहे और उसे निकाल बाहर नहीं किया जाए? अगर नेता निर्लज्ज होकर भ्रष्ट आचरण करेंगे तो नौकरशाही भी निडर होकर उनका अनुकरण करेंगे.
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भ्रष्टाचार है मूल कारण
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पिछले साल जनवरी में स्पष्ट किया था कि उन देशों में भ्रष्टाचार फैला हुआ है, जहां चुनावों में मुक्त होकर काले धन का इस्तेमाल होता है और जिनकी सरकारें धनी राजनेता नियंत्रित करते हैं. इस संस्था ने और विश्लेषण किया है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया की सरकारें भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में नाकाम हैं, क्योंकि राजनीतिक दल बिना किसी पारदर्शी तरीके के चुनावी चंदा जुटाते हैं. भारत जैसे निम्न मध्यम वर्गीय देश में राजनीतिक दल चुनाव खर्च में महाशक्ति अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इसका मूल कारण भ्रष्टाचार है. राजग सरकार ने राजनीतिक दलों को धन जुटाने और खर्च में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉन्ड पेश किया, लेकिन ये भी तय लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका.
दृढ़ संकल्प की ताकत का उदाहरण है सिंगापुर
सिंगापुर भ्रष्टाचार समाप्त करने के दृढ़ संकल्प की ताकत का उदाहरण है. भ्रष्टाचार मुक्त सिंगापुर का सपना देखने वाले ली कुआन यू ने दो कानून बनाए. इन कानूनों के तहत अगर नियमों की धज्जियां उड़ीं तो गंभीर परिणाम होंगे. नतीजा यह है कि सिंगापुर आज सबसे नैतिक देशों में से एक है और प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे अच्छा. इसके उलट भारत में नैतिकता की सभी झिझक को हवा में उड़ाते हुए कम जोखिम और अधिक आमदनी की सुरक्षित शर्त के रूप में भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है. निगरानी एजेंसियां जिनकी जिम्मेदारी कानून के शासन को कायम रखना है, वे भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था की बेशर्म निर्भीकता के समक्ष शक्तिहीन हो गई हैं.
भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने की जिम्मेदारी
राजनीतिक आकाओं के कहने पर कई काम हो रहे हैं, यह एक बार फिर साबित हो गया है कि जन सेवा और जनहित से जुड़े सभी क्षेत्र आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं. जिस तरह अनैतिक राजनीति भ्रष्टाचार का स्तंभ बन गई है, वैसे ही चुनावी अखाड़े में लूट के धन को लगाकर सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ने के प्रतिकार के रूप में लोकतंत्र खत्म हो रहा है. प्रधानमंत्री मोदी पर इस पुरानी अव्यवस्था को ठीक करने और देश को पटरी पर लाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.