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बिहार: 'किंगमेकर' लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव गुरुवार को 73 साल के हो गए. बहुचर्चित चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू यादव का जन्मदिन इस बार आरजेडी ने सादगी से मनाया. लालू अपने मनोरंजक और चुटीले बयानों के कारण देशभर में जाने जाते हैं. जानिए लालू का राजनीतिक सफर...

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Published : Jun 11, 2020, 8:26 PM IST

Lalu Prasad Yadav
लालू प्रसाद यादव

पटना : देश की राजनीति में अपने मनोरंजक और चुटीले बयानों के साथ राजनीति की अलग लकीर खींचने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं. लोगों की सियासी नब्ज की पहचान रखने वाले राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव 2019 के पूरे सीन से गायब थे, जिसका खामियाजा उनके दल को भी उठाना पड़ा.

केंद्र में कभी 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाले लालू आज उस बिहार से करीब 350 किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं, जहां उनकी खनक सियासी गलियारे से लेकर गांव के गरीब तक में सुनाई देती थी.

Lalu Prasad
लालू प्रसाद यादव

गरीबों के नेता के रूप में उभरे लालू
बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले संतोष सिंह की चर्चित पुस्तक 'रूल्ड ऑर मिसरूल्ड द स्टोर एंड डेस्टीनी ऑफ बिहार' में कहा गया है कि बिहार में 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद लालू प्रसाद ने उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेता के रूप में पहचान बनाई और इसमें उन्होंने काफी सफलता भी पाई. सिंह कहते हैं कि उन्होंने गरीबों के बीच जाकर खास पहचान बनाई और गरीबों के नेता के रूप में खुद को स्थापित किया.

1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे
इससे पहले बिहार में जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन हो रहा था, तो लालू ने सक्रिय छात्र नेता के तौर पर उसमें भाग लेकर अपनी राजनीति का आगाज किया था. आंदोलन के बाद हुए चुनाव में लालू यादव को जनता पार्टी से टिकट मिला और वह 1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे. सांसद बनने के बाद लालू का कद राजनीति में बड़ा होने लगा और वह साल 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.

Lalu Prasad Yadav
लालू प्रसाद यादव

1997 में आरजेडी का गठन
साल 1997 में जनता दल से अलग होकर उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. इस दौरान लालू के विश्वासपात्र और बड़े नेता उनका साथ छोड़ते रहे. आरजेडी ने 1998 के लोकसभा चुनाव में 17 लोकसभा सीटें जीतीं. इसके बाद आरजेडी ने साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. हालांकि, फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल 75 सीटें जीत सकी और सत्ता से बाहर हो गई.

सुशासन और विकास का गठजोड़
किताब में कहा गया है कि 'भागलपुर दंगे के बाद मुस्लिम मतदाता जहां कांग्रेस से बिदककर आरजेडी की ओर बढ़ गए, वहीं यादव मतदाताओं ने स्वजातीय लालू को अपना नेता मान लिया.' इस बीच, नीतीश कुमार ने भी नए 'सोशल इंजीनियरिंग' का तानाबाना बुनकर उसमें सुशासन और विकास को जोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर बिहार की सत्ता से लालू को उखाड़ फेंका.

Lalu Prasad and Tejasvi Yadav
लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव

किंगमेकर की भूमिका में लालू
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 'लालू प्रसाद का वह स्वर्णिम काल था. इस समय में वह किंगमेकर तक की भूमिका में आ गए थे. हालांकि 1997 में चारा घोटाला मामले में आरोपपत्र दाखिल हुआ और 2013 में लालू को जेल भेज दिया गया. उसके बाद उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई. इसके बाद बिहार के लोगों को विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार मिल गए. जब मतदाता को स्वच्छ छवि का विकल्प उपलब्ध हुआ तो मतदाता उस ओर खिसक गए.'

लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप
हालांकि, विधानसभा चुनाव 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी और विजयी भी हो गई, परंतु कुछ ही समय के बाद लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे और नीतीश को लालू का साथ छोड़ना पड़ा.

नीतीश का अलग होना, लालू के लिए झटका
नीतीश कुमार का अलग होना लालू के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था. रातो रात लालू प्रसाद एक बार फिर राज्य की सत्ता से बाहर हो गए और उनकी पार्टी विपक्ष की भूमिका में आ गई. इसके बाद लालू को पुराने चारा घोटाले के कई अन्य मामलों में भी सजा हो गई.

जातीय गणित का तिलिस्म टूटा
लोकसभा चुनाव 2019 से पार्टी को बड़े परिणाम की आशा थी, मगर जातीय गणित का तिलिस्म भी इस चुनाव में काम नहीं आया और 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाले लालू की पार्टी को सीट के लाले पड़ गए.

मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी आरजेडी से दूर
लालू को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि 'इस चुनाव में मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी आरजेडी से दूर हो गया. यही कारण है कि कई मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी आरजेडी को करारी हार का सामना करना पड़ा.'

लालू यादव की बनती-बिगड़ती हैसियत
हालांकि, बिहार की सियासत में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की बनती-बिगड़ती हैसियत पिछले 30 वर्षों से चर्चा में रही है. लालू के जेल जाने के बाद दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप में विरासत की लड़ाई शुरू हो गई. दोनों में से तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति में खुद को स्थापित करने की कोशिश की है.

'2020, हटाओ नीतीश...'
नीतीश सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री 20 महीनों तक सरकार चलाने के तौर तरीके देखते-समझते रहे तेजस्वी यादव वक्त के साथ काफी कुछ सीख चुके हैं. इधर, विधानसभा चुनाव की आहट के बीच जेल से ही लालू ने नया नारा दे दिया है, 'दो हजार बीस, हटाओ नीतीश.'

पढ़ें-बिहार की वर्चुअल रैली में बोले शाह- चुनाव नहीं, आत्मनिर्भर भारत की है तैयारी

पटना : देश की राजनीति में अपने मनोरंजक और चुटीले बयानों के साथ राजनीति की अलग लकीर खींचने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं. लोगों की सियासी नब्ज की पहचान रखने वाले राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव 2019 के पूरे सीन से गायब थे, जिसका खामियाजा उनके दल को भी उठाना पड़ा.

केंद्र में कभी 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाले लालू आज उस बिहार से करीब 350 किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं, जहां उनकी खनक सियासी गलियारे से लेकर गांव के गरीब तक में सुनाई देती थी.

Lalu Prasad
लालू प्रसाद यादव

गरीबों के नेता के रूप में उभरे लालू
बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले संतोष सिंह की चर्चित पुस्तक 'रूल्ड ऑर मिसरूल्ड द स्टोर एंड डेस्टीनी ऑफ बिहार' में कहा गया है कि बिहार में 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद लालू प्रसाद ने उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेता के रूप में पहचान बनाई और इसमें उन्होंने काफी सफलता भी पाई. सिंह कहते हैं कि उन्होंने गरीबों के बीच जाकर खास पहचान बनाई और गरीबों के नेता के रूप में खुद को स्थापित किया.

1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे
इससे पहले बिहार में जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन हो रहा था, तो लालू ने सक्रिय छात्र नेता के तौर पर उसमें भाग लेकर अपनी राजनीति का आगाज किया था. आंदोलन के बाद हुए चुनाव में लालू यादव को जनता पार्टी से टिकट मिला और वह 1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुंचे. सांसद बनने के बाद लालू का कद राजनीति में बड़ा होने लगा और वह साल 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.

Lalu Prasad Yadav
लालू प्रसाद यादव

1997 में आरजेडी का गठन
साल 1997 में जनता दल से अलग होकर उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. इस दौरान लालू के विश्वासपात्र और बड़े नेता उनका साथ छोड़ते रहे. आरजेडी ने 1998 के लोकसभा चुनाव में 17 लोकसभा सीटें जीतीं. इसके बाद आरजेडी ने साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. हालांकि, फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल 75 सीटें जीत सकी और सत्ता से बाहर हो गई.

सुशासन और विकास का गठजोड़
किताब में कहा गया है कि 'भागलपुर दंगे के बाद मुस्लिम मतदाता जहां कांग्रेस से बिदककर आरजेडी की ओर बढ़ गए, वहीं यादव मतदाताओं ने स्वजातीय लालू को अपना नेता मान लिया.' इस बीच, नीतीश कुमार ने भी नए 'सोशल इंजीनियरिंग' का तानाबाना बुनकर उसमें सुशासन और विकास को जोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर बिहार की सत्ता से लालू को उखाड़ फेंका.

Lalu Prasad and Tejasvi Yadav
लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव

किंगमेकर की भूमिका में लालू
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 'लालू प्रसाद का वह स्वर्णिम काल था. इस समय में वह किंगमेकर तक की भूमिका में आ गए थे. हालांकि 1997 में चारा घोटाला मामले में आरोपपत्र दाखिल हुआ और 2013 में लालू को जेल भेज दिया गया. उसके बाद उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई. इसके बाद बिहार के लोगों को विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार मिल गए. जब मतदाता को स्वच्छ छवि का विकल्प उपलब्ध हुआ तो मतदाता उस ओर खिसक गए.'

लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप
हालांकि, विधानसभा चुनाव 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टी गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी और विजयी भी हो गई, परंतु कुछ ही समय के बाद लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे और नीतीश को लालू का साथ छोड़ना पड़ा.

नीतीश का अलग होना, लालू के लिए झटका
नीतीश कुमार का अलग होना लालू के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था. रातो रात लालू प्रसाद एक बार फिर राज्य की सत्ता से बाहर हो गए और उनकी पार्टी विपक्ष की भूमिका में आ गई. इसके बाद लालू को पुराने चारा घोटाले के कई अन्य मामलों में भी सजा हो गई.

जातीय गणित का तिलिस्म टूटा
लोकसभा चुनाव 2019 से पार्टी को बड़े परिणाम की आशा थी, मगर जातीय गणित का तिलिस्म भी इस चुनाव में काम नहीं आया और 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाले लालू की पार्टी को सीट के लाले पड़ गए.

मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी आरजेडी से दूर
लालू को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि 'इस चुनाव में मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी आरजेडी से दूर हो गया. यही कारण है कि कई मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी आरजेडी को करारी हार का सामना करना पड़ा.'

लालू यादव की बनती-बिगड़ती हैसियत
हालांकि, बिहार की सियासत में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की बनती-बिगड़ती हैसियत पिछले 30 वर्षों से चर्चा में रही है. लालू के जेल जाने के बाद दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप में विरासत की लड़ाई शुरू हो गई. दोनों में से तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति में खुद को स्थापित करने की कोशिश की है.

'2020, हटाओ नीतीश...'
नीतीश सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री 20 महीनों तक सरकार चलाने के तौर तरीके देखते-समझते रहे तेजस्वी यादव वक्त के साथ काफी कुछ सीख चुके हैं. इधर, विधानसभा चुनाव की आहट के बीच जेल से ही लालू ने नया नारा दे दिया है, 'दो हजार बीस, हटाओ नीतीश.'

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