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कोरोना लॉकडाउन : आर्थिक आपात स्थिति लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका - plea in SC

कोरोना वायरस की महामारी की वजह से लॉकडाउन के मद्देनजर देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. याचिका में दावा किया गया है कि कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए अलग-अलग प्राधिकारी भिन्न कदम उठा रहे हैं, जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति है. पढे़ं खबर विस्तार से...

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उच्चतम न्यायालय
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Published : Mar 26, 2020, 10:45 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वायरस की महामारी की वजह से लॉकडाउन के मद्देनजर देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. याचिका में दावा किया गया है कि लॉकडाउन की वजह से देश में वित्तीय गतिविधियां ठहर गई हैं.

अधिवक्ता विराग गुप्ता के माध्यम से सेंटर फॉर अकाउंटिबिलिटी एंड सिस्टेमेटिक चेंज नामक संगठन ने यह याचिका दायर की है.

याचिका में दावा किया गया है कि कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए अलग-अलग प्राधिकारी भिन्न कदम उठा रहे हैं, जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति है.

याचिका के अनुसार ऐसी स्थिति में कानून के शासन की सुरक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपात स्थिति लगाने की आवश्यकता है.

याचिका के अनुसार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की है और इस दौरान अनेक पाबंदियां लगाई गई हैं.

याचिका में कहा गया है, 'विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा अलग-अलग कदम उठाये जाने की वजह से भ्रम पैदा हो रहा है और अराजकता कोविड-19 जैसी गंभीर समस्या का समाधान नहीं हो सकती. लॉकडाउन की वजह से वित्तीय गतिविधियां ठहर गई हैं. अत: संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू करने की आवश्यकता है.'

याचिका में लॉकडाउन के दौरान केंद्र को बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन, इंटरनेट जैसी आवश्यक सेवाओं के बिलों की वसूली और ईएमआई की अदायगी निलंबित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

पढे़ं : कोरोना संकट : गरीबों को राहत के लिए 1.70 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान

इसी तरह, राज्यों की पुलिस और संबंधित प्राधिकारियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है ताकि देश में आवश्यक सेवाएं बाधित न हों.

याचिका के अनुसार कोविड-19 की वजह से देश की मौजूदा स्थिति हो सकता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बड़ी आपात स्थिति हो और इसलिए इस पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच एकीकृत कमान के माध्यम से संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत विचार किया जाए.

याचिका में दलील दी गई है , 'ऐसा करना सिर्फ कोरोना वायरस को इसके खिलाफ जंग में हराने के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये भी जरूरी है.

इस लॉकडाउन की वजह से इस समय आवागमन की आजादी के अधिकार से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अधिकारों के साथ ही लगभग सारे मौलिक अधिकार इस समय निलंबित हैं.'

इस संगठन ने अपनी याचिका पर वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से तत्काल सुनवाई करने का न्यायालय से अनुरोध किया है.

न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर अपना कामकाज सीमित करते हुए यह निर्णय किया था कि वह अत्यधिक जरूरी मामलों की वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से ही सुनवाई करेगा.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस की महामारी की वजह से लॉकडाउन के मद्देनजर देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. याचिका में दावा किया गया है कि लॉकडाउन की वजह से देश में वित्तीय गतिविधियां ठहर गई हैं.

अधिवक्ता विराग गुप्ता के माध्यम से सेंटर फॉर अकाउंटिबिलिटी एंड सिस्टेमेटिक चेंज नामक संगठन ने यह याचिका दायर की है.

याचिका में दावा किया गया है कि कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए अलग-अलग प्राधिकारी भिन्न कदम उठा रहे हैं, जिसकी वजह से भ्रम की स्थिति है.

याचिका के अनुसार ऐसी स्थिति में कानून के शासन की सुरक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपात स्थिति लगाने की आवश्यकता है.

याचिका के अनुसार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की है और इस दौरान अनेक पाबंदियां लगाई गई हैं.

याचिका में कहा गया है, 'विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा अलग-अलग कदम उठाये जाने की वजह से भ्रम पैदा हो रहा है और अराजकता कोविड-19 जैसी गंभीर समस्या का समाधान नहीं हो सकती. लॉकडाउन की वजह से वित्तीय गतिविधियां ठहर गई हैं. अत: संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू करने की आवश्यकता है.'

याचिका में लॉकडाउन के दौरान केंद्र को बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन, इंटरनेट जैसी आवश्यक सेवाओं के बिलों की वसूली और ईएमआई की अदायगी निलंबित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

पढे़ं : कोरोना संकट : गरीबों को राहत के लिए 1.70 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान

इसी तरह, राज्यों की पुलिस और संबंधित प्राधिकारियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है ताकि देश में आवश्यक सेवाएं बाधित न हों.

याचिका के अनुसार कोविड-19 की वजह से देश की मौजूदा स्थिति हो सकता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बड़ी आपात स्थिति हो और इसलिए इस पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच एकीकृत कमान के माध्यम से संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत विचार किया जाए.

याचिका में दलील दी गई है , 'ऐसा करना सिर्फ कोरोना वायरस को इसके खिलाफ जंग में हराने के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये भी जरूरी है.

इस लॉकडाउन की वजह से इस समय आवागमन की आजादी के अधिकार से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अधिकारों के साथ ही लगभग सारे मौलिक अधिकार इस समय निलंबित हैं.'

इस संगठन ने अपनी याचिका पर वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से तत्काल सुनवाई करने का न्यायालय से अनुरोध किया है.

न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर अपना कामकाज सीमित करते हुए यह निर्णय किया था कि वह अत्यधिक जरूरी मामलों की वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से ही सुनवाई करेगा.

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