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हर जिले में भ्रष्टाचार रोधी विशेष कोर्ट स्थापित करने की मांग, पीआईएल दायर

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें प्रत्येक जिले में भ्रष्टाचार रोधी विशेष अदालतें स्थापित करने का अनुरोध किया गया है.

SPECIAL ANTI CORRUPTION COURTS
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Published : Dec 21, 2020, 10:18 PM IST

नई दिल्ली : धन शोधन और कर चोरी जैसे विभिन्न आर्थिक अपराधों के मामलों का एक साल के अंदर निपटारा के लिए प्रत्येक जिले में भ्रष्टाचार रोधी विशेष अदालतें स्थापित करने का अनुरोध वाली एक जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गई है.

भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर इस याचिका में उच्च न्यायालयों को आर्थिक अपराधों से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है.

याचिका में गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालय और विभिन्न राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया गया है.

याचिका में कहा गया कि मामलों के काफी समय तक लंबित रहने और अप्रभावी भ्रष्टाचार विरोधी कानून के कारण भारत कभी 'भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक' में शीर्ष 50 देशों में नहीं आ पाया. केंद्र और राज्य सरकार ने भी इस संबंध में कोई उचित कदम नहीं उठाए हैं.

उसने कहा कि कोई भी कल्याण योजना और सरकारी विभाग भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हैं.

पढ़ें- तबलीगी जमात के 36 विदेशी सदस्यों को घर भेजने में मदद करें अधिकारी : सुप्रीम कोर्ट

याचिका में कहा गया है कि मामलों के लंबित रहने और भ्रष्टचार विरोधी कानून के अप्रभावी होने के कारण आजादी के 73 साल और समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के 70 साल बाद भी कोई जिला, काले धन, बेनामी सम्पत्ति, बेमेल सम्पत्ति, घूस, धन शोधन, कर चोरी और अन्य आर्थिक अपराध संबंधी मामलों से मुक्त नहीं है.

याचिका में कहा गया कि भारत के भ्रष्टाचार विरोधी कानून बहुत कमजोर और अप्रभावी हैं. भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में विफल हैं. यहां तक कि 1988 में पारित बेनामी लेन-देन अधिनियम के तहत भी कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है.

नई दिल्ली : धन शोधन और कर चोरी जैसे विभिन्न आर्थिक अपराधों के मामलों का एक साल के अंदर निपटारा के लिए प्रत्येक जिले में भ्रष्टाचार रोधी विशेष अदालतें स्थापित करने का अनुरोध वाली एक जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गई है.

भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर इस याचिका में उच्च न्यायालयों को आर्थिक अपराधों से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है.

याचिका में गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालय और विभिन्न राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया गया है.

याचिका में कहा गया कि मामलों के काफी समय तक लंबित रहने और अप्रभावी भ्रष्टाचार विरोधी कानून के कारण भारत कभी 'भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक' में शीर्ष 50 देशों में नहीं आ पाया. केंद्र और राज्य सरकार ने भी इस संबंध में कोई उचित कदम नहीं उठाए हैं.

उसने कहा कि कोई भी कल्याण योजना और सरकारी विभाग भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हैं.

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याचिका में कहा गया है कि मामलों के लंबित रहने और भ्रष्टचार विरोधी कानून के अप्रभावी होने के कारण आजादी के 73 साल और समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के 70 साल बाद भी कोई जिला, काले धन, बेनामी सम्पत्ति, बेमेल सम्पत्ति, घूस, धन शोधन, कर चोरी और अन्य आर्थिक अपराध संबंधी मामलों से मुक्त नहीं है.

याचिका में कहा गया कि भारत के भ्रष्टाचार विरोधी कानून बहुत कमजोर और अप्रभावी हैं. भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में विफल हैं. यहां तक कि 1988 में पारित बेनामी लेन-देन अधिनियम के तहत भी कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है.

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