ETV Bharat / bharat

दार्जिलिंग के चाय बागानों में कीटनाशक छोड़ अब जैविक खेती पर जोर - टी रिसर्च एसोसिएशन

जब चाय की बात आती है तो उस समय दार्जिलिंग की चाय की बात जरूर होती है. दार्जिलिंग में अब चाय बागान मालिक कीटनाशकों का उपयोग धीरे-धीरे कम कर रहे हैं. क्षेत्र में अब चाय की खेती जैविक तरीके से की जा रही है. बागान मालिकों का कहना है कि देश में जैविक चाय की मांग बढ़ रही है. इसे देखते हुए हम धीरे-धीर जैविक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं. हम अब वहीं कीटनाशक दवाएं उपयोग करते हैं, जिसे सरकार द्वारा प्रमाणित किया गया हो. पढ़ें पूरी खबर...

pesticide story
दार्जिलिंग के चाय बागानों में कीटनाशक छोड़ अब जैविक खेती पर जोर
author img

By

Published : Jun 18, 2020, 1:01 PM IST

कोलकाता : केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इनमें से कुछ दवाएं चाय बागानों में भी प्रयोग की जाती हैं. हालांकि, पश्चिम बंगाल खासकर, दार्जिलिंग क्षेत्र में जैविक तरीके से चाय की खेती की जा रही है. पहाड़ी और तराई क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम किया जा रहा है. बागान मालिकों का कहना है कि हम सिर्फ उन्हीं कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, जो सरकार द्वारा प्रमाणित हैं.

सुकना टी गार्डन के प्रबंधक भास्कर चक्रवर्ती ने कहा कि चाय की फसलों को सूक्ष्म कीटों और फंगल से नुकसान होता है. फसलों को इन कीटनाशकों से बचाने के लिए हम पीपीसी के तहत चाय बोर्ड के सूचीबद्ध कीटनाशक और माइटीसाइड का उपयोग करते हैं.

दागापुर चाय बागान के प्रबंधक संदीप घोष कहते हैं कि छोटे किसान भी अब शिक्षित हो गए हैं. किसी भी रासायनिक या कीटनाशक का उपयोग करने से पहले वह विशेषज्ञों से परामर्श लेते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय और टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने चाय बागानों में कीटनाशकों के उपयोग को लेकर सख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं. बोर्ड ने भारत में टी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के लिए टीम बनाई है, जिसमें पूर्वोत्तर भारत के लिए टी रिसर्च एसोसिएशन और दक्षिण भारत के लिए यूपीएसएआई (यूपीएसएआई) टी रिसर्च फाउंडेशन के साथ मिलकर एक चाय प्लांट प्रोटेक्शन कोड तैयार किया है.

इंडियन टी प्लांटर्स एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार अमृतांशु चक्रवर्ती ने कहा कि चाय बागानों में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों और रसायनों को टी रिसर्च एसोसिएशन (टीईए) और टी बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जो चाय की गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करता.

उन्होंने बताया कि बेहतर गुणवत्ता वाली चाय से हमें बेहतर कीमत मिलती है. इसके लिए हम चाय बागानों में केवल सरकार द्वारा सुझाए गए रसायनों का उपयोग करते हैं.

दार्जिलिंग टी एसोसिएशन बोर्ड के अध्यक्ष विनोद मोहन ने बताया कि सभी कीटनाशक के अवशेषों पर ईपीए, एफएओ और डब्ल्यूएचओ, कोडेक्स और अन्य समितियों जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ मिलकर काम कर रहा है. दार्जिलिंग में चाय की खेती जैविक तरीकों से की जा रही है.

इसके साथ ही चाय की अधिकतम मात्रा जर्मनी, जापान, स्विट्जरलैंड, यूरोप संयुक्त राज्य अमेरिका आदि विभिन्न देशों को निर्यात की जाती है. देश में रसायन मुक्त और जैविक चाय की मांग है.

पढ़ें : कीटनाशकों पर बैन : फैसला अच्छा, लेकिन बढ़ जाएगी फसलों की लागत

उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य दार्जिलिंग की चाय को 100 फीसदी जैविक बनाना है. हमारी एसोसिएशन ने सरकार से दार्जिलिंग को ऑर्गेनिक चाय क्षेत्र बनाने की मांग की है. दार्जिलिंग में चाय की फसल की दो बार छंटाई की जाती है. इसके बाद सर्दियों में चाय की छटनी की जाती है, जिसकी पैकिंग की जाती है.

टीएआई डॉपर्स यूनिट के सचिव राम अवतार शर्मा ने बताया कि वर्तमान में केवल चाय बोर्ड द्वारा बताए गए कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है. इसके साथ ही रसायनों का केवल एक विशिष्ट कीट पर छिड़काव किया जाता है. पिछले तीन वर्षों में खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग भी काफी कम किया गया है.

पढ़ें : आम के पेड़ पर कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल पर बैन को लेकर बंटे किसान

चाय के बागानों में कीटों के हमलों को कम करने के लिए गाय के गोबर, नीम और सरसों की खली, नीम का तेल और एजोटोबैक्टर बैक्टीरिया का आमतौर पर रसायनों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा है.

कोलकाता : केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इनमें से कुछ दवाएं चाय बागानों में भी प्रयोग की जाती हैं. हालांकि, पश्चिम बंगाल खासकर, दार्जिलिंग क्षेत्र में जैविक तरीके से चाय की खेती की जा रही है. पहाड़ी और तराई क्षेत्रों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम किया जा रहा है. बागान मालिकों का कहना है कि हम सिर्फ उन्हीं कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, जो सरकार द्वारा प्रमाणित हैं.

सुकना टी गार्डन के प्रबंधक भास्कर चक्रवर्ती ने कहा कि चाय की फसलों को सूक्ष्म कीटों और फंगल से नुकसान होता है. फसलों को इन कीटनाशकों से बचाने के लिए हम पीपीसी के तहत चाय बोर्ड के सूचीबद्ध कीटनाशक और माइटीसाइड का उपयोग करते हैं.

दागापुर चाय बागान के प्रबंधक संदीप घोष कहते हैं कि छोटे किसान भी अब शिक्षित हो गए हैं. किसी भी रासायनिक या कीटनाशक का उपयोग करने से पहले वह विशेषज्ञों से परामर्श लेते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय और टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने चाय बागानों में कीटनाशकों के उपयोग को लेकर सख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं. बोर्ड ने भारत में टी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के लिए टीम बनाई है, जिसमें पूर्वोत्तर भारत के लिए टी रिसर्च एसोसिएशन और दक्षिण भारत के लिए यूपीएसएआई (यूपीएसएआई) टी रिसर्च फाउंडेशन के साथ मिलकर एक चाय प्लांट प्रोटेक्शन कोड तैयार किया है.

इंडियन टी प्लांटर्स एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार अमृतांशु चक्रवर्ती ने कहा कि चाय बागानों में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों और रसायनों को टी रिसर्च एसोसिएशन (टीईए) और टी बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाता है, जो चाय की गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करता.

उन्होंने बताया कि बेहतर गुणवत्ता वाली चाय से हमें बेहतर कीमत मिलती है. इसके लिए हम चाय बागानों में केवल सरकार द्वारा सुझाए गए रसायनों का उपयोग करते हैं.

दार्जिलिंग टी एसोसिएशन बोर्ड के अध्यक्ष विनोद मोहन ने बताया कि सभी कीटनाशक के अवशेषों पर ईपीए, एफएओ और डब्ल्यूएचओ, कोडेक्स और अन्य समितियों जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ मिलकर काम कर रहा है. दार्जिलिंग में चाय की खेती जैविक तरीकों से की जा रही है.

इसके साथ ही चाय की अधिकतम मात्रा जर्मनी, जापान, स्विट्जरलैंड, यूरोप संयुक्त राज्य अमेरिका आदि विभिन्न देशों को निर्यात की जाती है. देश में रसायन मुक्त और जैविक चाय की मांग है.

पढ़ें : कीटनाशकों पर बैन : फैसला अच्छा, लेकिन बढ़ जाएगी फसलों की लागत

उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य दार्जिलिंग की चाय को 100 फीसदी जैविक बनाना है. हमारी एसोसिएशन ने सरकार से दार्जिलिंग को ऑर्गेनिक चाय क्षेत्र बनाने की मांग की है. दार्जिलिंग में चाय की फसल की दो बार छंटाई की जाती है. इसके बाद सर्दियों में चाय की छटनी की जाती है, जिसकी पैकिंग की जाती है.

टीएआई डॉपर्स यूनिट के सचिव राम अवतार शर्मा ने बताया कि वर्तमान में केवल चाय बोर्ड द्वारा बताए गए कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है. इसके साथ ही रसायनों का केवल एक विशिष्ट कीट पर छिड़काव किया जाता है. पिछले तीन वर्षों में खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग भी काफी कम किया गया है.

पढ़ें : आम के पेड़ पर कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल पर बैन को लेकर बंटे किसान

चाय के बागानों में कीटों के हमलों को कम करने के लिए गाय के गोबर, नीम और सरसों की खली, नीम का तेल और एजोटोबैक्टर बैक्टीरिया का आमतौर पर रसायनों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.