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आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान

श्रम बल के आंकड़ों की नियमित उपलब्धता के महत्व को देखते हुए, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) शुरू किया. जिसका उद्देश्य अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना था. पढ़ें विस्तार से...

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Published : Jun 5, 2020, 9:20 PM IST

हैदराबाद : निरंतर अंतराल पर श्रम बल के आंकड़ों की उपलब्धता की आवश्यकता को ध्‍यान में रखते हुए सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय ने वर्ष 2017-18 के दौरान आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) शुरू किया था. इसके के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं.

वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना.

प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना.

शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के यहां चार बार आगमन सुनिश्चित किया गया और इसके साथ ही तीन तिमाहियों के लिए एक रोलिंग पैनल का गठन किया गया इससे शहरी क्षेत्रों में सीजनल रोजगार में हुए होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ रोजगार से जुड़ी विशिष्‍टताओं का विश्‍लेषण करने में सुविधा हुई.

पीएलएफएस के तहत नमूने की संरचना
साल 2017-18 के दौरान इस्तेमाल किया गया तरीका के तहत शहरी क्षेत्रों में नमूने (सैंपल) की संरचना तैयार करने वाले एक रोटेशनल पैनल का उपयोग किया गया. इस रोटेशनल पैनल स्‍कीम में शहरी क्षेत्रों के चयनित परिवार के यहां चार बार आगमन होता है. प्रथम आगमन कार्यक्रम के साथ इसकी शुरुआत की जाती है और बाद में पुनर्आगमन कार्यक्रम के साथ समय-समय पर तीन बार आगमन सुनिश्चित किया जाता है. शहरी क्षेत्रों में प्रत्‍येक स्‍तर के भीतर एक पैनल के लिए नमूने दरअसल दो स्‍वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए.रोटेशन योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रथम चरण वाली नमूना इकाइयों (एफएसयू) के 75 प्रतिशत का मिलान दो निरंतर आगमन के बीच हो जाए.ग्रामीण क्षेत्रों में स्ट्रेटम / सब-स्ट्रोटम के लिए नमूने को अलग-अलग समय पर दो स्वतंत्र उप-नमूनों ते रूप में लिया गया.

पहली वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2017- जून 2018) ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को कवर किया गया. जो सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) में रोजगार और बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों का अनुमान लगाया और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस ) को मई 2019 में जारी किया गया था. जुलाई 2018-जून 2019 के दौरान किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर एनएसओ द्वारा यह दूसरी वार्षिक रिपोर्ट लाई जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सर्वेक्षण अवधि के प्रत्येक तिमाही में, वार्षिक आवंटन के 25% एफएसयू को कवर किया गया था. इन परिवर्तनों के मद्देनजर, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण अनुमान 2011-12 के रोजगार बेरोजगारी सर्वेक्षण (ईयूएस) और पिछले वर्षों के परिणामों के साथ तुलनीय नहीं हैं.

जुलाई 2017-जून 2018 की सर्वे अवधि की प्रत्‍येक तिमाही में शहरी क्षेत्रों में नमूने का आकार : शहरी क्षेत्रों में नमूने (सैंपल) की संरचना तैयार करने वाले एक रोटेशनल पैनल का उपयोग किया गया, जैसा कि पहले विस्‍तार से बताया गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में केवल एक बार आगमन सुनिश्चित किया गया. सर्वेक्षण अवधि (जुलाई 2017-जून 2018) के दौरान प्रथम आगमन और फि‍र पुनर्आगमन कार्यक्रमों के अंतर्गत एकत्रित आंकड़ों का उपयोग रोजगार से आय अर्जित करने, कार्य की अवधि और अतिरिक्‍त कार्य के लिए उपलब्‍ध अवधि के अनुमानों को सृजित करने में किया गया.

* पीएस - प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति – ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिस पर किसी व्‍यक्ति ने सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (अवधि संबंधी प्रमुख पैमाना) व्‍यतीत किया था, उसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

* एसएस - सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति – ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिसमें किसी व्‍यक्ति ने अपने सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप के अलावा सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिन या उससे अधिक समय तक कुछ अन्‍य आर्थिक गतिविधि की थी, उसे उस व्‍यक्ति के सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।

कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (डब्‍ल्‍यूपीआर): डब्‍ल्‍यूपीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

कार्यकलाप की स्थिति- सामान्‍य स्थिति : किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है। जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.

कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) के रूप में जाना जाता है.

हैदराबाद : निरंतर अंतराल पर श्रम बल के आंकड़ों की उपलब्धता की आवश्यकता को ध्‍यान में रखते हुए सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय ने वर्ष 2017-18 के दौरान आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) शुरू किया था. इसके के मुख्‍यत: दो उद्देश्य हैं.

वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों (अर्थात श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोजगारी दर) का अनुमान लगाना.

प्रति वर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) और सीडब्‍ल्‍यूएस दोनों में रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना.

शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के यहां चार बार आगमन सुनिश्चित किया गया और इसके साथ ही तीन तिमाहियों के लिए एक रोलिंग पैनल का गठन किया गया इससे शहरी क्षेत्रों में सीजनल रोजगार में हुए होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ रोजगार से जुड़ी विशिष्‍टताओं का विश्‍लेषण करने में सुविधा हुई.

पीएलएफएस के तहत नमूने की संरचना
साल 2017-18 के दौरान इस्तेमाल किया गया तरीका के तहत शहरी क्षेत्रों में नमूने (सैंपल) की संरचना तैयार करने वाले एक रोटेशनल पैनल का उपयोग किया गया. इस रोटेशनल पैनल स्‍कीम में शहरी क्षेत्रों के चयनित परिवार के यहां चार बार आगमन होता है. प्रथम आगमन कार्यक्रम के साथ इसकी शुरुआत की जाती है और बाद में पुनर्आगमन कार्यक्रम के साथ समय-समय पर तीन बार आगमन सुनिश्चित किया जाता है. शहरी क्षेत्रों में प्रत्‍येक स्‍तर के भीतर एक पैनल के लिए नमूने दरअसल दो स्‍वतंत्र उप-नमूनों के रूप में लिए गए.रोटेशन योजना के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रथम चरण वाली नमूना इकाइयों (एफएसयू) के 75 प्रतिशत का मिलान दो निरंतर आगमन के बीच हो जाए.ग्रामीण क्षेत्रों में स्ट्रेटम / सब-स्ट्रोटम के लिए नमूने को अलग-अलग समय पर दो स्वतंत्र उप-नमूनों ते रूप में लिया गया.

पहली वार्षिक रिपोर्ट (जुलाई 2017- जून 2018) ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को कवर किया गया. जो सामान्य स्थिति (पीएस + एसएस) में रोजगार और बेरोजगारी के सभी महत्वपूर्ण मापदंडों का अनुमान लगाया और वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस ) को मई 2019 में जारी किया गया था. जुलाई 2018-जून 2019 के दौरान किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर एनएसओ द्वारा यह दूसरी वार्षिक रिपोर्ट लाई जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सर्वेक्षण अवधि के प्रत्येक तिमाही में, वार्षिक आवंटन के 25% एफएसयू को कवर किया गया था. इन परिवर्तनों के मद्देनजर, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण अनुमान 2011-12 के रोजगार बेरोजगारी सर्वेक्षण (ईयूएस) और पिछले वर्षों के परिणामों के साथ तुलनीय नहीं हैं.

जुलाई 2017-जून 2018 की सर्वे अवधि की प्रत्‍येक तिमाही में शहरी क्षेत्रों में नमूने का आकार : शहरी क्षेत्रों में नमूने (सैंपल) की संरचना तैयार करने वाले एक रोटेशनल पैनल का उपयोग किया गया, जैसा कि पहले विस्‍तार से बताया गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में केवल एक बार आगमन सुनिश्चित किया गया. सर्वेक्षण अवधि (जुलाई 2017-जून 2018) के दौरान प्रथम आगमन और फि‍र पुनर्आगमन कार्यक्रमों के अंतर्गत एकत्रित आंकड़ों का उपयोग रोजगार से आय अर्जित करने, कार्य की अवधि और अतिरिक्‍त कार्य के लिए उपलब्‍ध अवधि के अनुमानों को सृजित करने में किया गया.

* पीएस - प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति – ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिस पर किसी व्‍यक्ति ने सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय (अवधि संबंधी प्रमुख पैमाना) व्‍यतीत किया था, उसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

* एसएस - सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति – ऐसे कार्यकलाप की स्थिति जिसमें किसी व्‍यक्ति ने अपने सामान्‍य प्रमुख कार्यकलाप के अलावा सर्वेक्षण की तिथि से ठीक पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिन या उससे अधिक समय तक कुछ अन्‍य आर्थिक गतिविधि की थी, उसे उस व्‍यक्ति के सहायक आर्थिक कार्यकलाप की स्थिति माना गया.

श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर): एलएफपीआर को कुल आबादी में श्रम बल के अंतर्गत आने वाले व्‍यक्तियों (अर्थात कहीं कार्यरत या काम की तलाश में या काम के लिए उपलब्‍ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।

कामगार-जनसंख्‍या अनुपात (डब्‍ल्‍यूपीआर): डब्‍ल्‍यूपीआर को कुल आबादी में रोजगार प्राप्‍त व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

बेरोजगारी दर (यूआर) : इसे श्रम बल में शामिल कुल लोगों में बेरोजगार व्‍यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है.

कार्यकलाप की स्थिति- सामान्‍य स्थिति : किसी भी व्‍यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्‍ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्‍यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर किया जाता है। जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति के सामान्‍य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है.

कार्यकलाप की स्थिति – वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) : जब सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्‍यक्ति की वर्तमान साप्‍ताहिक स्थिति (सीडब्‍ल्‍यूएस) के रूप में जाना जाता है.

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