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पत्रकारिता में आने से पहले फौजदारी के मुकदमों का लें प्रशिक्षण - शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर

कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में एक टीवी चैनल द्वारा की गई समांतर जांच-पड़ताल पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाराजगी जताई है. जिम्मेदार पत्रकारिता को समय की जरूरत बताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि वह यह नहीं कहा जा रहा कि कोई मीडिया पर पाबंदी लगाएगा. साथ ही कोर्ट ने कहा कि लोगों को पत्रकारिता में आने से पहले फौजदारी के मुकदमों का प्रशिक्षण लेकर आना चाहिए.

दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय
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Published : Sep 10, 2020, 11:04 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में एक पत्रकार द्वारा टीवी चैनल पर की गई कथित समांतर जांच-पड़ताल पर नाखुशी जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि लोगों को आपराधिक मुकदमेबाजी में प्रशिक्षण लेना चाहिए और फिर पत्रकारिता में आना चाहिए.

जिम्मेदार पत्रकारिता को समय की जरूरत बताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि वह यह नहीं कह रहा कि कोई मीडिया पर पाबंदी लगाएगा, लेकिन जांच की शुचिता बनाकर रखी जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा क्या जांच एजेंसी द्वारा दाखिल आरोपपत्र के खिलाफ अपील में मीडिया शामिल हो सकता है?

उन्होंने कहा इसका असर वादी (थरूर) पर नहीं, बल्कि जांच एजेंसी पर होता है. क्या समांतर जांच या मुकदमा चल सकता है? क्या आप नहीं चाहेंगे कि अदालतें अपना काम करें?'

उच्च न्यायालय कांग्रेस सांसद थरूर के एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक न्यूज चैनल के प्रधान संपादक को सांसद के विरुद्ध अपमानजनक बयान देने से रोकने के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा लागू करने का अनुरोध किया गया था.

थरूर की शिकायत जुलाई और अगस्त में टीवी चैनल पर उनके नाम से कार्यक्रम के प्रसारण से संबंधित है. प्रसारण में पत्रकार ने दावा किया था कि उन्होंने सुनंदा पुष्कर मामले में पुलिस से बेहतर जांच की है और उन्हें अब भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पुष्कर की हत्या की गई थी.

उच्च न्यायालय ने आपराधिक मामले में मुकदमा लंबित रहने के दौरान पत्रकार द्वारा किए गए दावों पर अप्रसन्नता जाहिर की.

न्यायाधीश ने कहा लोगों को आपराधिक मुकदमेबाजी में पाठ्यक्रम करना चाहिए और फिर पत्रकारिता में आना चाहिए.

उन्होंने कहा कृपया संयम बरतिए, जब आपराधिक मामले में पुलिस की जांच चल रही है, तो मीडिया समांतर जांच नहीं कर सकता.

पढ़ें - दफ्तर पहुंचीं कंगना, बीएमसी की कार्रवाई पर 22 तक टली सुनवाई

उच्च न्यायालय ने मामले में एक दिसंबर, 2017 के आदेश का जिक्र किया जिसमें कहा गया कि प्रेस किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती या इस तरह का संकेत नहीं दे सकती कि वह दोषी है या प्रेस कोई अन्य अपुष्ट दावा नहीं कर सकती. प्रेस को विचाराधीन मामलों में रिपोर्टिंग करते समय सावधानी और सतर्कता बरतनी होगी.

सुनंदा पुष्कर 17 जनवरी, 2014 की रात को दक्षिण दिल्ली के एक पांच-सितारा होटल के सुइट में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत मिली थीं.

नई दिल्ली : कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में एक पत्रकार द्वारा टीवी चैनल पर की गई कथित समांतर जांच-पड़ताल पर नाखुशी जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि लोगों को आपराधिक मुकदमेबाजी में प्रशिक्षण लेना चाहिए और फिर पत्रकारिता में आना चाहिए.

जिम्मेदार पत्रकारिता को समय की जरूरत बताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि वह यह नहीं कह रहा कि कोई मीडिया पर पाबंदी लगाएगा, लेकिन जांच की शुचिता बनाकर रखी जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा क्या जांच एजेंसी द्वारा दाखिल आरोपपत्र के खिलाफ अपील में मीडिया शामिल हो सकता है?

उन्होंने कहा इसका असर वादी (थरूर) पर नहीं, बल्कि जांच एजेंसी पर होता है. क्या समांतर जांच या मुकदमा चल सकता है? क्या आप नहीं चाहेंगे कि अदालतें अपना काम करें?'

उच्च न्यायालय कांग्रेस सांसद थरूर के एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक न्यूज चैनल के प्रधान संपादक को सांसद के विरुद्ध अपमानजनक बयान देने से रोकने के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा लागू करने का अनुरोध किया गया था.

थरूर की शिकायत जुलाई और अगस्त में टीवी चैनल पर उनके नाम से कार्यक्रम के प्रसारण से संबंधित है. प्रसारण में पत्रकार ने दावा किया था कि उन्होंने सुनंदा पुष्कर मामले में पुलिस से बेहतर जांच की है और उन्हें अब भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पुष्कर की हत्या की गई थी.

उच्च न्यायालय ने आपराधिक मामले में मुकदमा लंबित रहने के दौरान पत्रकार द्वारा किए गए दावों पर अप्रसन्नता जाहिर की.

न्यायाधीश ने कहा लोगों को आपराधिक मुकदमेबाजी में पाठ्यक्रम करना चाहिए और फिर पत्रकारिता में आना चाहिए.

उन्होंने कहा कृपया संयम बरतिए, जब आपराधिक मामले में पुलिस की जांच चल रही है, तो मीडिया समांतर जांच नहीं कर सकता.

पढ़ें - दफ्तर पहुंचीं कंगना, बीएमसी की कार्रवाई पर 22 तक टली सुनवाई

उच्च न्यायालय ने मामले में एक दिसंबर, 2017 के आदेश का जिक्र किया जिसमें कहा गया कि प्रेस किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती या इस तरह का संकेत नहीं दे सकती कि वह दोषी है या प्रेस कोई अन्य अपुष्ट दावा नहीं कर सकती. प्रेस को विचाराधीन मामलों में रिपोर्टिंग करते समय सावधानी और सतर्कता बरतनी होगी.

सुनंदा पुष्कर 17 जनवरी, 2014 की रात को दक्षिण दिल्ली के एक पांच-सितारा होटल के सुइट में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत मिली थीं.

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